राजस्थान में जोधपुर से लगभग नौ किलोमीटर दूर स्थित मंडोर अपने ऐतिहासिक महत्व और पौराणिक कथाओं के लिए प्रसिद्ध है। यही वह मंडोर है जहाँ आज भी रावण के मंदिर में उनकी पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका था और यहीं उनका विवाह भी हुआ था।
रावण मंदिर की विशेषता
मंदोर के अमरनाथ महादेव मंदिर परिसर में स्थित यह रावण मंदिर अपनी अनूठी परंपरा के लिए जाना जाता है। यहाँ रावण की पूजा देवता की तरह की जाती है। मंदोदरी की मूर्ति मंदिर के ठीक सामने 90 डिग्री के कोण पर स्थापित है। भक्तों का मानना है कि यह व्यवस्था रावण और मंदोदरी के वैवाहिक संबंधों का प्रतीक है।
रावण के गुणों की पूजा
मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहाँ रावण के अच्छे गुणों की पूजा की जाती है, न कि उसके बुरे स्वरूप की। रावण को शिव का परम भक्त और प्रकांड विद्वान माना जाता है। इसी भक्ति और ज्ञान के कारण भक्त उन्हें देवता की तरह पूजते हैं।
स्थानीय मान्यता और परंपरा
लोगों का कहना है कि मंडोर रावण का ससुराल था, इसलिए यहाँ उनकी पूजा का विशेष महत्व है। जोधपुर के मुद्गल और दवे ब्राह्मण रावण के वंशज माने जाते हैं। यही कारण है कि यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है।
पौराणिक कथाओं की अलग व्याख्या
जहाँ एक ओर विजयादशमी पर पूरे देश में रावण दहन करके बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है, वहीं मंडोर का यह मंदिर पौराणिक कथाओं की एक अलग व्याख्या प्रस्तुत करता है। यहाँ रावण की शिवभक्ति और ज्ञान का सम्मान किया जाता है। यह मंदिर दर्शाता है कि पौराणिक पात्रों की विभिन्न दृष्टिकोणों से व्याख्या करना संभव है और उनके गुणों को आज भी समाज द्वारा अपनाया जाता है।
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