राजस्थान की सुनहरी रेत के बीच बसा एक ऐसा गाँव, जो दिन में तो पर्यटकों की चहल-पहल से गूंजता है, लेकिन रात होते ही वीरान, रहस्यमय और डरावना हो जाता है। हम बात कर रहे हैं जैसलमेर से करीब 18 किलोमीटर दूर स्थित कुलधरा गाँव की, जो आज भले ही एक ऐतिहासिक धरोहर बन चुका है, लेकिन इसके पीछे छिपी कहानी आज भी रोंगटे खड़े कर देने वाली है। स्थानीय लोग बताते हैं कि जैसे ही सूरज ढलता है, यहां डरावने साए घूमने लगते हैं और यही कारण है कि सूर्यास्त के बाद किसी को यहां रुकने की अनुमति नहीं दी जाती।
वीरान गलियां और उजड़े मकान: कुलधरा का पहला दृश्य ही डर पैदा कर देता है
कुलधरा गाँव में प्रवेश करते ही ऐसा लगता है जैसे वक्त ठहर गया हो। टूटे-फूटे मकान, बिखरी हुई ईंटें और सन्नाटा—ये सब मिलकर एक भूतिया माहौल रचते हैं। यहाँ आज भी सैकड़ों घरों के खंडहर मौजूद हैं, जो एक समय समृद्ध पालीवाल ब्राह्मणों की बस्ती हुआ करती थी। माना जाता है कि यहाँ करीब 84 गाँवों की एक श्रृंखला थी, जिसमें कुलधरा सबसे प्रमुख था। लेकिन एक रात ऐसा क्या हुआ कि पूरा गाँव देखते ही देखते खाली हो गया?
श्रापित गाँव की रहस्यमयी कहानीलोककथाओं के अनुसार, कुलधरा के उजड़ने की कहानी 18वीं शताब्दी से जुड़ी है। कहा जाता है कि उस समय जैसलमेर के तत्कालीन दीवान की नजर एक पालीवाल ब्राह्मण की सुंदर पुत्री पर पड़ गई थी। दीवान ने जबरन विवाह का दबाव बनाया और यह धमकी दी कि अगर लड़की उसे नहीं मिली, तो वह पूरे गाँव को नुकसान पहुंचाएगा। अपने आत्मसम्मान और संस्कृति की रक्षा के लिए कुलधरा और उसके आस-पास के सभी 83 गाँवों के लोग एक ही रात में रहस्यमय ढंग से गाँव छोड़कर चले गए। सबसे रहस्यमयी बात यह है कि जाते-जाते उन्होंने गाँव को श्राप दे दिया कि यहाँ दोबारा कोई बस नहीं पाएगा।
रात का डर: क्यों सूर्यास्त के बाद नहीं रुकता कोई?आज भी राजस्थान पर्यटन विभाग और स्थानीय प्रशासन ने सूरज ढलने के बाद कुलधरा में प्रवेश पर पाबंदी लगा रखी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि कई बार लोगों ने यहाँ अजीबोगरीब घटनाओं का अनुभव किया है। जैसे—अचानक ठंडी हवाएं चलना, झोपड़ियों से किसी के चलने की आवाजें आना, और कभी-कभी तो किसी महिला के रोने या गहनों की छन-छन सुनाई देना। कुछ लोगों ने तो यह भी दावा किया है कि उन्हें कोई अदृश्य शक्ति धक्का दे रही थी या पीछे से कोई देख रहा था।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: क्या ये सिर्फ भ्रम है?हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि यह सब सिर्फ मन का वहम है। वैज्ञानिकों और इतिहासकारों की एक टीम ने कुलधरा की मिट्टी और मकानों की संरचना की जांच भी की, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कोई जहरीली गैस या भूकंपीय हलचल तो गाँव छोड़ने का कारण नहीं बनी। लेकिन आज तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला। फिर भी, वहाँ रात को रुकने की हिम्मत कोई नहीं करता।
अब पर्यटन स्थल, लेकिन डर अब भी कायमराजस्थान सरकार ने कुलधरा को एक हेरिटेज साइट के रूप में विकसित किया है। दिन के समय पर्यटक बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं और इतिहास के इस अनोखे अध्याय को अपनी आंखों से देखना चाहते हैं। यहाँ एक गाइडेड टूर भी कराया जाता है, जिसमें गाँव के रहस्य, पालीवाल समाज की समृद्धि और उसके पतन की कहानी सुनाई जाती है। इसके अलावा, कई यूट्यूब चैनल और टीवी शो भी कुलधरा को भारत के सबसे डरावने स्थानों में गिनते हैं।
क्या कुलधरा का श्राप आज भी प्रभावी है?यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है। गाँव छोड़ने के इतने वर्षों बाद भी न तो यहाँ कोई दोबारा बस पाया, न ही कोई व्यक्ति यहाँ रात भर रुकने की हिम्मत कर पाया। हर प्रयास या तो असफल रहा या फिर अजीब घटनाओं के कारण छोड़ दिया गया। क्या सचमुच कोई अदृश्य शक्ति यहाँ निवास करती है, या यह सिर्फ एक ऐतिहासिक दुर्घटना थी जिसने गाँव को हमेशा के लिए वीरान कर दिया?
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