राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में, जो अब तक अमरूद की उत्कृष्ट खेती के लिए प्रसिद्ध था, अब सौंफ की खुशबू भी फैलने लगी है। पहली बार जिले में किसानों ने सौंफ (Fennel) की व्यावसायिक खेती शुरू की है, और यह प्रयोग इतना सफल रहा कि अब इसे कृषि नवाचार का नया उदाहरण माना जा रहा है।
जिले के कई गांवों में किसानों ने रबी सीजन में सौंफ की बुवाई की थी। मौसम की अनुकूलता और मिट्टी की उपजाऊ प्रकृति के कारण इस बार बेहतरीन उत्पादन मिला है। किसान न सिर्फ अपनी आय में बढ़ोतरी देख रहे हैं, बल्कि फसल की लागत भी अपेक्षाकृत कम आई है।
कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सवाई माधोपुर की मिट्टी में पहले से ही फल-सब्जी की खेती का अच्छा अनुभव रहा है, और अब सौंफ जैसी मसाला फसल ने जिले की खेती का स्वरूप बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
कृषि अधिकारी आर.एस. मीणा ने बताया, “सौंफ की फसल यहां की जलवायु और मिट्टी के लिए उपयुक्त साबित हुई है। किसानों को इसे उगाने में सिंचाई की कम जरूरत होती है, और बाजार में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। इससे किसानों को अच्छा दाम मिल रहा है।”
किसानों का कहना है कि एक बीघा जमीन में सौंफ की खेती पर करीब 12 से 15 हजार रुपये का खर्च आता है, जबकि फसल कटाई के बाद यह 35 से 40 हजार रुपये तक की आमदनी देती है। यानी अमरूद की तुलना में कम मेहनत और ज्यादा मुनाफा।
मालपुरा और चौथ का बरवाड़ा क्षेत्र के किसान बताते हैं कि उन्होंने अमरूद के बागों के बीच खाली जगह में सौंफ की बुवाई की, जिससे जमीन का बेहतर उपयोग हुआ और दोहरी आय का स्रोत बना। सौंफ की खुशबू ने खेतों का माहौल ही बदल दिया है।
स्थानीय मंडियों में भी इस नए बदलाव की झलक देखने को मिल रही है। व्यापारी बताते हैं कि सवाई माधोपुर से अब सौंफ की खेप जयपुर, कोटा और दिल्ली की मंडियों में भेजी जा रही है।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सौंफ की खेती जिले के लिए दीर्घकालिक रूप से फायदेमंद साबित हो सकती है। इसमें रोग और कीटों का प्रकोप कम होता है, और यह फसल जैविक पद्धति से भी आसानी से उगाई जा सकती है।
इस तरह सवाई माधोपुर, जो अब तक अपने मीठे और रसदार अमरूद के लिए जाना जाता था, अब धीरे-धीरे सुगंधित सौंफ की पहचान भी बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह बदलाव न सिर्फ जिले की कृषि अर्थव्यवस्था को नई दिशा देगा, बल्कि किसानों को आत्मनिर्भरता की ओर भी प्रेरित करेगा।
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