अमेरिका के शहर कोलोराडो स्प्रिंग्स में अप्रैल 2025 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष उद्योग का एक बड़ा सम्मेलन हुआ.
इस क्षेत्र में अमेरिका एक बड़ी शक्ति है और अब चीन भी एक बड़ी ताकत के रूप में उभर रहा है. उसके पास अत्याधुनिक सैटेलाइट या उपग्रह हैं.
चीन अब अंतरिक्ष में सैटेलाइटों को नष्ट करने की क्षमता रखने वाले हथियारों का परीक्षण भी कर रहा है. रूस भी यह कर चुका है.
इस सम्मेलन को संबोधित करने वाले प्रमुख वक्ताओं में अमेरिका की अंतरिक्ष कमान के कमांडर जनरल स्टीफ़न व्हिटिंग भी शामिल थे.
जनरल व्हिटिंग ने कहा कि इस बात में कोई शक़ नहीं है कि अंतरिक्ष भी अब युद्ध क्षेत्र के दायरे में आ गया है.
उन्होंने कहा कि अभी तक तो कोई युद्ध अंतरिक्ष तक नहीं फैला है और न ही अमेरिका ऐसा चाहता है.
इसीलिए इस हफ़्ते दुनिया जहान में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि विश्व को सैटेलाइट युद्ध से कितना ख़तरा है?
आंखें और कानऑस्ट्रेलियन स्ट्रेटेजिक इंस्टिट्यूट में वरिष्ठ शोधकर्ता और अंतरिक्ष सुरक्षा मामलों की विशेषज्ञ डॉक्टर राजी राजगोपालन बताती हैं कि फ़िलहाल पृथ्वी की कक्षा में 11700 सक्रिय सैटेलाइट मौजूद हैं.
सैटेलाइट से मिलने वाले सिग्नल अरबों लोगों के रोजाना संपर्क और संचार में काम आते हैं. इनमें से लगभग 630 सैटेलाइट सेनाओं की सुरक्षा कार्रवाइयों में भी प्रयोग किए जाते हैं.
उन्होंने बताया कि कुल सैटेलाइटों में से करीब आधे सैन्य सैटेलाइट हैं. इसमें से करीब 300 सैटेलाइट अमेरिका के हैं. वहीं रूस और चीन के पास भी कई सैन्य सैटेलाइट हैं.
ये सैटेलाइट सैनिक कार्रवाइयों में सेना की आंख और कान की तरह काम करते हैं. इससे उनकी क्षमता काफ़ी बढ़ जाती है.
1990 में इराक़ के ख़िलाफ़ खाड़ी युद्ध में मित्र देशों की सेना की कार्रवाई में सैटेलाइटों की काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही.
रेगिस्तान में सैनिकों, टैंकों और बख़्तरबंद गाड़ियों को सही रास्ते पर रखने के लिए जीपीएस का इस्तेमाल हुआ, जो सैटेलाइट से संचालित होता है. इसे विश्व का पहला अंतरिक्ष युद्ध भी कहते हैं.
डॉक्टर राजी राजगोपालन बताती हैं, "आजकल इसका इस्तेमाल ख़ुफ़िया जानकारी जुटाने और लक्ष्यों की टोह के लिए सरकारें कर रही हैं. सभी बड़ी सेनाएं आने वाले समय में इस सिस्टम का इस्तेमाल करेंगी. सैटेलाइट की मदद से केवल लक्ष्य का ही पता नहीं लगाया जाता बल्कि सटीक निशाना लगाने के लिए हथियारों को भी दिशा दी जाती है."
इस साल जून में भारत ने घोषणा की कि वह 2029 तक अंतरिक्ष में 52 सैटेलाइट भेजने की योजना पर तेज़ी से काम कर रहा है.
तो क्या किसी देश को सैटेलाइट प्रक्षेपण से पहले इसकी जानकारी देनी आवश्यक होती है?
डॉक्टर राजी राजगोपालन कहती हैं कि किसी भी देश को सैटेलाइट के प्रक्षेपण से पहले संयुक्त राष्ट्र की अंतरिक्ष संबंधी संस्था को बताना पड़ता है.
वह किस प्रकार का सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेज रहा है, उसका क्या इस्तेमाल है, वह कब तक काम करेगा और उसे कैसे वापस लाया जाएगा.
इसके साथ ही यह भी बताना पड़ता है कि वह उसे अंतरिक्ष में कहां छोड़ा जाएगा ताकि सैटेलाइटों को टकराने से रोका जा सके.
लेकिन अब कई देश अपने सैटेलाइटों के बारे में पूरी जानकारी नहीं दे रहे.
1962 में अमेरिका ने अंतरिक्ष में एक परमाणु बम का परीक्षण किया था जिसके रेडिएशन से कई संचार सैटेलाइट क्षतिग्रस्त हो गए.
उसके पांच साल बाद एक बहुराष्ट्रीय संधि हुई. इसके तहत अंतरिक्ष में परमाणु और रासायनिक हथियारों की तैनाती पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
संयुक्त राष्ट्र की अंतरिक्ष संबंधी संस्था अब इसकी निगरानी करती है.
डॉक्टर राजी राजगोपालन का कहना है कि इस संस्था ने अंतरिक्ष को सुरक्षित रखने की दिशा में काफ़ी अच्छा काम किया है.
मगर इस संधि में अंतरिक्ष में पारंपरिक हथियारों की तैनाती रोकने संबंधी कोई प्रावधान नहीं है जबकि पारंपरिक हथियारों से भी भारी नुकसान हो सकता है. यह एक बड़ा ख़तरा है.
पिछले कुछ सालों में अंतरिक्ष में व्यावसायिक सैटेलाइटों की संख्या काफ़ी बढ़ गई है.
कई निजी कंपनियों सहित एलन मस्क की स्पेस एक्स कंपनी के आठ हज़ार से ज्यादा सैटेलाइट ब्रॉडबैंड इंटरनेट और दूसरी सुविधाओं के लिए अंतरिक्ष में मौजूद हैं.
अंतरिक्ष में सैटेलाइटों की बढ़ती संख्या के साथ देशों के बीच तनाव भी बढ़ रहा है.
अंतरिक्ष में क्या हो रहा है?
जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफ़ेयर्स संस्था की शोधकर्ता जूलियन सूज़ कहती हैं पृथ्वी पर कहीं हमला होता है तो हम उसे देख सकते हैं.
लेकिन अंतरिक्ष में सैटेलाइट क्या कर रहे हैं इसकी जानकारी हमें सैटेलाइट से खींची गयी तस्वीरों, रडार या सैटेलाइट ट्रैकिंग डेटा से मिलती है.
अगर एक देश दूसरे देशों के सैटेलाइट को जानबूझ कर नष्ट करने की कोशिश करेगा तो क्या होगा?
जूलियन सूज़ ने कहते हैं, "यह एक लक्ष्मण रेखा है, इसे अभी तक तो किसी ने पार नहीं की है. हां, सैटेलाइटों के सिग्नल खराब करने और ग़लत सिग्नल पैदा करने की घटनाएं हुई हैं."
वह बताते हैं कि फ़िलहाल अंतरिक्ष के संसाधन नेटो की वाशिंगटन संधि के आर्टिकल 5 में शामिल हैं, यानि अगर कोई किसी नेटो सदस्य के सैटेलाइट पर हमला करता है तो नेटो संधि के अनुच्छेद 5 के तहत हमलावर देश के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है.
मगर किसी सैटेलाइट के क्षतिग्रस्त होने के कारण की जानकारी तुरंत ना मिलने की वजह से ग़लतफ़हमी भी पैदा हो सकती है.
जूलियन सूज़ कहती हैं कि किसी सैटेलाइट के दूसरे सैटेलाइट के नज़दीक आने के कई कारण हो सकते हैं.
यह किसी सैटेलाइट की तस्वीर खींचने या उसकी ख़ुफ़िया जानकारी पाने की कोशिश भी हो सकती है.
ख़ास तौर पर अगर उस सैटेलाइट की गतिविधि के बारे में पहले से जानकारी साझा ना की गयी हो.
दुनिया में अमेरिका, रूस, चीन और भारत के पास बड़ी सेनाएं हैं. इन सभी सेनाओं ने अंतरिक्ष में दूसरे सैटेलाइटों को नष्ट करने में सक्षम हथियार बना लिए हैं.
यह व्यापक जनसंहार के हथियार नहीं हैं इसलिए अंतरिक्ष में उनके परीक्षण पर प्रतिबंध भी नहीं है.
जूलियन सूज़ कहती हैं कि अमेरिका अंतरिक्ष में सबसे बड़ी ताकत है. 2008 में उसने अपने एक सैटेलाइट को नष्ट किया था. इसके अलावा अमेरिका दूसरी योजनाओं में भी निवेश कर रहा है.
मिसाल के तौर पर वो X-37 अंतरिक्ष विमान बना रहा है जिसे अन्य सैटेलाइट की तरह रॉकेट से अंतरिक्ष में छोड़ा जा सकता है. यह विमान अंतरिक्ष में दो साल तक रह कर ख़ुद ही धरती पर लौट सकता है.
अमेरिका संचार के लिए जीपीएस के विकल्प के तौर पर लेज़र टेक्नॉलॉजी विकसित करने की कोशिश भी कर रहा है.
अंतरिक्ष की दौड़ में रूस ने 1957 में पृथ्वी की परिक्रमा करने वाला पहला सैटेलाइट छोड़ कर अमेरिका को मात दे दी थी. लेकिन उसके बाद से रूस का अंतरिक्ष कार्यक्रम अमेरिका से पिछड़ता गया है.
यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस पर लगाए प्रतिबंधों से भी उसकी अंतरिक्ष योजनाओं पर असर पड़ा है.
उधर अमेरिका काफ़ी हद तक ख़ुफ़िया जानकारी इकट्ठा करने और संचार के लिए अपने सैटेलाइटों पर निर्भर है.
रूस इसे अमेरिका की कमज़ोरी की तरह देखता है और सैटेलाइटों को निशाना बनाने वाले हथियार विकसित कर रहा है. इस क्षेत्र में चीन भी पीछे नहीं है.
जूलियन सूज़ ने कहा, "चीन का लक्ष्य 2024 में सौ सैटेलाइट छोड़ने का था मगर वो 30 ही भेज पाया. चीन तेज़ी से सैटेलाइट को निशाना बनाने वाला हथियार विकसित करने में लगा है. वहीं उसके सैटेलाइटों में अन्य सैटेलाइट के आसपास तेज़ी से घूमने की क्षमता आ गयी है. कुछ सैटेलाइट तो ख़तरनाक तरीके से दूसरे देशों के सैटेलाइट के करीब पहुंच गए थे."
अंतरिक्ष में सैटेलाइट तेज़ रफ़्तार से घूमते हैं और अगर वो एक दूसरे से टकराते हैं तो उनके टुकड़े अंतरिक्ष में बिखर सकते हैं.
यहां ध्यान रखना चाहिए कि एक सेंटीमीटर का टुकड़ा भी अगर तेज़ रफ़्तार से घूम रहा हो तो वह किसी हथगोले जितना नुकसान पहुंचा सकता है. अंतरिक्ष का माहौल ख़तरनाक हो सकता है.
जूलियन सूज़ आगाह करती हैं कि ऐसे में सैटेलाइट विरोधी इस्तेमाल से भयंकर तबाही पहुंच सकती है.
मिसाल के तौर पर अगर रूस ऐसा हथियार अंतरिक्ष में इस्तेमाल करता है तो सैटेलाइट के बिखरने से निकले टुकड़े उसके अपने सैटेलाइटों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.
हाल में चीन और रूस ने चंद्रमा पर एक परमाणु रिएक्टर लगाने के लिए समझौता किया है जिसका इस्तेमाल भविष्य में वहां शोध कार्यों के लिए बिजली पैदा करने में होगा.
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सिएटल में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के स्पेस लॉ एंड डेटा प्रोग्राम की निदेशक सादिया पैकेरनेन का कहना है कि अंतरिक्ष टेक्नॉलॉजी केवल रॉकेट और अंतरिक्षयानों को अंतरिक्ष में लाने-ले जाने तक ही सीमित नहीं है.
उन्होंने बताया कि इसमें आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और ऑटोनॉमस रोबोटिक्स जैसी कई नयी टेक्नॉलॉजी शामिल हैं, जिसे ईडीटी कहा जाता है. ऑटोनॉमस रोबोटिक्स के ज़रिए मशीनें अंतरिक्ष में स्वचालित तरीके से काम कर सकती हैं.
"इससे भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिरक्षा का पूरा ढांचा बदल सकता है. इसमें एक गोल्डन डोम भी है जो अमेरिका की हवाई हमलों या हायपरसोनिक मिसाइल हमलों से रक्षा कर सकता है."
स्टारशील्ड ऐसा ही एक सुरक्षा तंत्र है जिसमें कई सैटेलाइटों का इस्तेमाल होता है. यह अमेरिकी सरकार और सेना के काम आता है. यह स्पेस एक्स के स्टारलिंक का ही सैन्य मॉडल है और स्पेस एक्स का हिस्सा है.
राष्ट्रपति ट्रंप ने जनवरी में गोल्डन डोम परिकल्पना का प्रस्ताव रखा था. मिसाइलों का पता लगाने के लिए हज़ारों सैटेलाइटों की ज़रूरत होगी.
सादिया पैकेरनेन कहती हैं कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से सैटेलाइटों से मिलने वाले डाटा का तेज़ी से विश्लेषण कर कार्यवाही करने की क्षमता सेना के पास आ जाएगी.
इससे रक्षा क्षेत्र में एक नया आयाम जुड़ सकता है. इससे तनाव के नए कारण भी पनप सकते हैं.
सादिया पैकेरनेन ने कहा कि अमेरिका और चीन इस टेक्नॉलॉजी को विकसित करने में अन्य देशों से काफ़ी आगे निकल गए हैं.
इसके चलते अन्य देश भी उन पर अंतरिक्ष में नज़र रखने के लिए टेक्नॉलॉजी विकसित करने में लग गए हैं.
"मुझे उम्मीद है वो इसमें सफल होंगे क्योंकि अंतरिक्ष को सुरक्षित रखना बहुत ज़रूरी है."
टेक्नॉलॉजी में आ रही तरक्की का सैन्य सैटेलाइटों के काम करने की समय सीमा पर कितना असर पड़ सकता है?
सादिया पैकेरनेन कहती हैं कि कोई भी तकनीक हमेशा के लिए नहीं रह सकती. जब अंतरिक्ष में इन उपकरणों की समय सीमा ख़त्म होने के करीब आएगी तो उनकी मरम्मत करने की ज़रूरत होगी.
ऐसे में उन्हें सुरक्षित तरीके से अंतरिक्ष से हटाने में भी नयी टेक्नॉलॉजी से मदद मिल सकती है.
विश्व पर प्रभाव
डॉक्टर ब्लेविन बोवेन यूके की डरहम यूनिवर्सिटी के स्पेस रिसर्च सेंटर में एस्ट्रो पॉलिटिक्स के एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. वो अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को सैटेलाइट युद्ध से जुड़े मामलों में सलाह भी देते हैं.
उनका मानना है कि अगर अंतरिक्ष में सैटेलाइट युद्ध होता है तो उससे होने वाले नुकसान और प्रभाव का सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है क्योंकि अंतरिक्ष में हज़ारों सैटेलाइट हैं जिनकी मदद से लोगों को अनेक किस्म की सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं.
वो कहते हैं कि यह काफ़ी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि कौन से सैटेलाइटों को नष्ट किया जाता है.
मिसाल के तौर पर, जीपीएस सिग्नल देने वाले सैटेलाइटों को ही लीजिए, जिनका इस्तेमाल हम गाड़ी चलाते समय रास्ता जानने या खाने-पीने का सामान मंगवाने में करते हैं.
लेकिन उससे भी गंभीर प्रभाव वित्तीय सेवाओं पर पड़ेगा क्योंकि सैटेलाइटों पर एटोमिक क्लॉक लगे होते हैं, जिनके समय के आधार पर बैंक और दूसरी वित्तीय संस्थाएं तय करती हैं कि लेन देन का समय क्या था? यह सेवाएं ठप्प हो सकती हैं.
किसान और मौसम विभाग भी सैटेलाइटों से मिलने वाली जानकारी का इस्तेमाल खेती या प्राकृतिक आपदा के ख़तरे को भांपने के लिए करते हैं.
इसका लोगों के जीवन और अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ेगा. मिसाल के तौर पर वक्त रहते अगर लोगों को चक्रवात या दूसरी आपदाओं की सटीक जानकारी ना मिल पाए तो कई लोग मारे जा सकते हैं.
कोई देश सैटेलाइट के नष्ट होने से कैसे निपटेगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उसे किस प्रकार नष्ट किया गया है.
डॉक्टर ब्लेविन बोवेन ने कहा कि अगर किसी सैटेलाइट के सिग्नल को जाम किया गया है या उन कंप्यूटरों को हैक किया गया है जो सैटेलाइटों को नियंत्रित करते हैं तो उसका उपाय हो सकता है.
अंतरिक्ष में सीधे हमले के विकल्प बहुत सीमित हैं. डॉक्टर ब्लेविन बोवेन का मानना है कि इस प्रकार की स्थिति से निपटने के लिए देशों को पुख़्ता ढांचागत सुविधाओं की ज़रूरत होगी.
या तो उन्हें अंतरिक्ष में वैकल्पिक सैटेलाइट तैनात करने होंगे, या फिर धरती पर ऐसे उपकरणों का नेटवर्क बनाना होगा जो सैटेलाइटों के बिना काम कर सके- भले ही वे सैटेलाइटों जितने प्रभावी न हों लेकिन आपात स्थिति में काम आ सकता है.
लेकिन सैटेलाइटों पर कब और कैसे हमला हो सकता है, इसका अंदाज़ा लगाना बेहद कठिन है.
डॉक्टर ब्लेविन बोवेन ने कहा कि अंतरिक्ष में पुख़्ता ट्रैकिंग सिस्टम मौजूद हैं. "अंतरिक्ष में युद्ध तभी फैलेगा जब देशों के बीच धरती पर जारी संघर्ष नियंत्रण से बाहर हो जाएगा. ज़ाहिर से बात है उसमें कई लोग मारे जाएंगे. सबसे गंभीर बात यही है, और इसलिए मेरी राय है कि अगर आप पहले से धरती पर चल रहे संघर्ष से चिंतित हैं तो आपको उससे अधिक चिंता अंतरिक्ष युद्ध की नहीं होनी चाहिए."
तो विश्व को सैटेलाइट युद्ध से कितना ख़तरा है?
अंतरिक्ष में प्राकृतिक या मनुष्यों द्वारा भेजी गयी छोटी से छोटी चीज़ भी ख़तरा बन सकती है. अंतरिक्ष में 12 हज़ार से अधिक सैटेलाइट हैं.
सभी का इरादा यही रहा है कि सैटेलाइटों को हथियार ना बनाया जाए. लेकिन अब टेक्नॉलॉजी व्यावसायिक और सैन्य सैटेलाइटों के बीच फ़र्क को धुंधला कर चुकी है.
कई देश अपने ही सैटेलाइट को नष्ट करने का परीक्षण कर के साबित कर चुके हैं कि उनके पास यह क्षमता है.
लेकिन अगर कोई देश दूसरे देश के सैटेलाइट को नष्ट करता है तो ध्वस्त सैटेलाइट के टुकड़ों से उसके अपने और उसके सहयोगी देशों के सैटेलाइट क्षतिग्रस्त होने का ख़तरा भी है.
इसके साथ ही यह ख़तरा भी है कि अंतरिक्ष में हुए हमले का जवाब धरती पर भी दिया जाएगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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