क्या आपने कभी सुना है कि किसी व्यक्ति ने अपने देश की वायु सेना से जुड़ी सरकारी संपत्ति बेच दी हो?
यह कोई हॉलीवुड या बॉलीवुड फ़िल्म की कहानी नहीं है, बल्कि भारत के पंजाब राज्य में घटी असली घटना है. दरअसल, पंजाब में फ़िरोज़पुर ज़िले के फत्तूवाला गांव में कथित तौर पर भारतीय वायु सेना की एक ऐतिहासिक हवाई पट्टी को बेचने का मामला सामने आया है.
भारत-पाकिस्तान सीमा के पास मौजूद यह हवाई पट्टी युद्ध के समय भारतीय वायु सेना के इस्तेमाल में आती थी.
करोड़ों रुपए की क़ीमत वाली क़रीब 15 एकड़ ज़मीन से जुड़ी यह कथित धोखाधड़ी की घटना 1997 में हुई थी, लेकिन पुलिस कार्रवाई अब हुई है. पंजाब पुलिस ने इस मामले में मां-बेटे के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया है. पुलिस के मुताबिक़, दोनों ने भारतीय वायु सेना की 15 एकड़ ज़मीन को अपनी ज़मीन बताकर बेच दिया.
बीबीसी पंजाबी ने अभियुक्तों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.
फ़िलहाल पंजाब पुलिस दोनों अभियुक्तों की तलाश में जुटी है.

पुलिस का कहना है कि यह ज़मीन हवाई पट्टी के लिए आज़ादी से पहले किसानों से ली गई थी और उन्हें मुआवज़ा भी दिया गया था. लेकिन राजस्व रिकॉर्ड में यह ज़मीन अब भी उन लोगों के नाम दर्ज है, जिनसे ज़मीन ली गई थी.
रिकॉर्ड ठीक से न होने का फ़ायदा उठाकर अभियुक्तों ने (जिनके परिवार से यह ज़मीन ली गई थी) बाद में इसे बेच दिया.
इस मामले में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट को भी दखल देना पड़ा, जिसके बाद ही पंजाब पुलिस ने कार्रवाई की.
हाई कोर्ट तक पहुंचा मामलादिसंबर 2023 में रिटायर्ड कानूनगो निशान सिंह ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 30 अप्रैल 2025 को पंजाब विजिलेंस ब्यूरो के डायरेक्टर को चार हफ़्ते में जांच पूरी करने का आदेश दिया था. ब्यूरो ने 20 जून को जांच रिपोर्ट जारी की और उसी के आधार पर 28 जून को एफ़आईआर दर्ज की गई.
पंजाब पुलिस ने फ़िरोज़पुर ज़िले के कुलगढ़ी थाना में ऊषा अंसल और उनके बेटे नवीन अंसल के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है. अभियुक्त फ़िरोज़पुर ज़िले के रहने वाले हैं, लेकिन इस समय दिल्ली में रह रहे हैं.
पंजाब पुलिस ने इनके ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 419, 420, 465, 467, 471 और 120बी के तहत केस दर्ज किया है. इसकी जांच डीएसपी करन शर्मा कर रहे हैं.
डीएसपी करन शर्मा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "विजिलेंस जांच के मुताबिक़, अभियुक्त को पता था कि यह ज़मीन वायु सेना की है. इसके बावजूद उसने इसे आगे बेच दिया."
उन्होंने कहा, "अभियुक्त दावा कर रहे हैं कि यह ज़मीन उनकी है, जबकि असली मालिक वायु सेना है."
अभियुक्त नवीन अंसल की एक अन्य मामले में पैरवी कर रहे वकील प्रतीक गुप्ता से बीबीसी ने बात की. उन्होंने बताया कि परिवार ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है, क्योंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1939 में ब्रिटिश सरकार ने रॉयल एयर फोर्स के इस्तेमाल के लिए अविभाज्य भारत में 982 एकड़ ज़मीन अधिग्रहित की थी और यह हवाई पट्टी उसी का हिस्सा थी. भारत के विभाजन के बाद यह हवाई पट्टी भारतीय वायु सेना के स्वामित्व में आ गई.
1964 में, तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने खाद्यान्न की कमी के संकट के दौरान अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए रक्षा मंत्रालय की खाली पड़ी ज़मीनों को कृषि के लिए इस्तेमाल करने की योजना शुरू की थी.
इस योजना के तहत हवाई पट्टी की ज़मीन मदन मोहन लाल और उनके भाई टेक चंद को दे दी गई और उन्हें 'फसल की देखरेख' की ज़िम्मेदारी दी गई. लेकिन मदन मोहन की मौत के बाद उनके नाम पावर ऑफ़ अटॉर्नी के आधार पर ज़मीन बेच दी गई.
विजिलेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार, डुमनी वाला गांव की एक महिला और उसके बेटे ने कथित तौर पर राजस्व विभाग के कुछ अधिकारियों की मदद से 1997 में अपने नाम पर ज़मीन का मालिकाना हक़ हासिल कर लिया और फिर इसे एक व्यक्ति को बेच दिया.
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के दख़ल के बाद विजिलेंस ब्यूरो ने इस मामले की जांच की. पंजाब पुलिस ने भी अपनी जांच इसी विजिलेंस रिपोर्ट के आधार पर की है.
एफ़आईआर के मुताबिक़, पंजाब पुलिस विजिलेंस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फत्तूवाला और आसपास के चार गांवों की ज़मीन वायु सेना ने आज़ादी से पहले ली थी. इसके बाद यहां एक लैंडिंग ग्राउंड बनाया गया.
लेकिन रिकॉर्ड में कुछ ज़मीन वायु सेना के नाम ट्रांसफ़र नहीं हुई. राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में यह ज़मीन कुछ लोगों के नाम चढ़ती रही.
याचिकाकर्ता, सेवानिवृत्त कानूनगो निशान सिंह बीबीसी संवाददाता सरबजीत सिंह धालीवाल से बातचीत में बताते हैं कि, "राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में हुई इस ग़लती का फ़ायदा उठाकर अभियुक्तों ने सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से भारतीय वायु सेना की ज़मीन बेच दी."
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निशान सिंह ने बताया कि यह ज़मीन शुरू में मदन मोहन लाल के नाम थी और उनका निधन 1991 में हो गया था.
उनकी मौत के बाद, आरोप है कि उनके परिवार के सदस्यों ने 1997 में फर्ज़ी रजिस्ट्री के ज़रिए यह ज़मीन दारा सिंह, मुख्तियार सिंह, जागीर सिंह, सुरजीत कौर और मंजीत कौर को बेच दी.
निशान सिंह की हाई कोर्ट में दायर याचिका के मुताबिक़, साल 2021 में हलवारा एयर फोर्स स्टेशन के कमांडेंट इस धोखाधड़ी को सामने लाए थे और फ़िरोज़पुर के डिप्टी कमिश्नर से जांच की मांग की थी, लेकिन तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई.
इसके बाद निशान सिंह ने दिसंबर 2023 में हाई कोर्ट में याचिका दाख़िल की. उन्होंने कहा कि ज़मीन के असली मालिक मदन मोहन लाल की मौत 1991 में हो गई थी, लेकिन आरोप है कि 1997 में फर्ज़ी रजिस्ट्री के ज़रिए यह ज़मीन बेच दी गई.
निशान सिंह ने बताया कि 2009-10 में सुरजीत कौर, मंजीत कौर, मुख्तियार सिंह, जागीर सिंह, दारा सिंह, रमेश कांत और राकेश कांत को इस ज़मीन का मालिक दिखाया गया, जबकि सेना ने कभी यह ज़मीन किसी को ट्रांसफ़र नहीं की.
इस मामले में करीब दो साल पहले निशान सिंह ने कोर्ट का रुख़ किया था. सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने फ़िरोज़पुर के डिप्टी कमिश्नर की लापरवाही पर नाराज़गी जताई और कहा कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा है.
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में पंजाब विजिलेंस ब्यूरो प्रमुख को इस मामले की जांच करने को कहा था. कोर्ट ने 30 अप्रैल को दिए गए फ़ैसले में चार हफ़्ते के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया था.
इससे पहले, भारतीय वायु सेना ने भी पंजाब के राज्यपाल से इस मामले में दख़ल देने की मांग की थी.
इसी बीच, जिन लोगों ने यह ज़मीन खरीदी है, उन्होंने भी ज़मीन पर कब्ज़ा लेने के लिए अलग-अलग अदालतों का रुख़ किया है.
याचिकाकर्ता निशान सिंह ने बताया कि ज़मीन खरीदने वाले लोग ज़िला अदालत में कब्ज़े का मामला जीत चुके हैं, लेकिन भारतीय वायु सेना ने इस फ़ैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी है.
इस मामले में ज़मीन ख़रीदने वालों में से एक जागीर सिंह का दावा है कि उन्होंने यह ज़मीन उसके मालिकों से खरीदी थी.
उनका कहना है, "हमारी सेना से कोई लड़ाई नहीं है, हमने यह ज़मीन सीधे मालिकों से खरीदी थी. लेकिन अब हमें ज़रूरत से ज़्यादा परेशान किया जा रहा है. इस ज़मीन पर कब्ज़े को लेकर हमारा केस हाई कोर्ट में चल रहा है."
"हम 1975 से यह ज़मीन पट्टे पर लेकर खेती करते थे, फिर 1997 में इसे खरीद लिया. लेकिन 2001 में सेना ने हमें यहां से निकाल दिया और तब से हम कोर्ट में मुक़दमा लड़ रहे हैं. हमारा एक मोटर कनेक्शन अब भी इसी ज़मीन में चल रहा है. हमारी सिर्फ़ एक मांग है- हमें हमारी ज़मीन वापस दी जाए."
वहीं, मुख़्तियार सिंह का कहना है, "मेरे पिता दारा सिंह ने यह ज़मीन खरीदी थी और इसकी रजिस्ट्री मेरे भाई, मां और मेरे नाम करवाई गई थी."
सरकारी अफ़सरों पर आरोप लगाते हुए मुख़्तियार सिंह कहते हैं, "हमने पुराना रिकॉर्ड देखकर ज़मीन खरीदी थी. हम अनपढ़ हैं, लेकिन इस विभाग के अफ़सर और डीसी तो पढ़े-लिखे थे, क्या उन्हें नहीं पता था कि यह ज़मीन सरकारी है?"
"अगर यह सरकारी ज़मीन थी तो अफ़सरों ने इसे रजिस्ट्री करके हमें क्यों दी? अगर हमने इसकी रजिस्ट्री करवा ली है, तो हमें हक़ मिलना चाहिए. हम 2001 से कोर्ट में संघर्ष कर रहे हैं, हमें हमारा हक़ मिलना चाहिए."
याचिकाकर्ता की आपत्ति क्या है?याचिकाकर्ता निशान सिंह ने कहा, "पंजाब विजिलेंस ने जांच की और मामला पुलिस को सौंप दिया. जबकि इस मामले में कार्रवाई खुद पंजाब विजिलेंस को करनी चाहिए थी. यह पूरी धोखाधड़ी वरिष्ठ अधिकारियों की मिलीभगत से हुई है. इसलिए इसमें रिश्वतखोरी भी शामिल है. लेकिन एफ़आईआर में सिर्फ़ ज़मीन बेचने वालों पर मामला दर्ज किया गया है. अफ़सरों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है."
"साथ ही मुझे शिकायतकर्ता बना दिया गया, जबकि मैं तो सिर्फ़ गड़बड़ी का खुलासा करने वाला था. असली शिकायतकर्ता तो सेना या सरकार को होना चाहिए था."
डीएसपी करन शर्मा ने कहा, "हमने जांच शुरू कर दी है. जो भी इस मामले में शामिल होगा, उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी."

निशान सिंह का कहना है कि भारतीय वायु सेना ने 1962, 1965 और 1971 की जंग के दौरान इस हवाई पट्टी का इस्तेमाल किया था.
यह हवाई पट्टी 1932 से इस्तेमाल में है. भारतीय वायु सेना ने भी अपनी शिकायत में यह बात कही है.
निशान सिंह के मुताबिक़, यह ज़मीन 1932 से पहले वायु सेना ने अधिग्रहित की थी. इस समय यह ज़मीन भारतीय वायु सेना के कब्ज़े में है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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