कश्मीर में अमरनाथ यात्रा की शुरुआत तीन जुलाई से हो रही है. अप्रैल महीने में पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले के बाद अमरनाथ यात्रा को लेकर सुरक्षा काफ़ी कड़ी की गई है.
पहलगाम हमले के बाद कई श्रद्धालुओं ने अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन भी रद्द करा दिया था.
सरकार की कोशिश है कि लोग हर तरह के डर को छोड़कर सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन करें ताकि अमरनाथ यात्रा में किसी तरह की कोई परेशानी न आए.
अमरनाथ यात्रा की क्या अहमियत है और इसको लेकर किस तरह की सुरक्षा व्यवस्था की जाती है, अमरनाथ यात्रा से जुड़ी हर बात एक नज़र में-
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पहलगाम हमले के साये में शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा के लिए इस बार सुरक्षा को काफ़ी सख़्त किया गया है.
इस बार अमरनाथ यात्रा को सफल और शांतिपूर्ण बनाने के लिए सुरक्षाबलों की कुल 581 कंपनियां कश्मीर में तैनात की गई हैं. यहां अनंतनाग के पहलगाम और बालटाल रूट पर जगह-जगह पर सुरक्षाबलों को तैनात किया गया है.
यहां अमरनाथ जाने वाले दोनों रास्तों पर कई जगहों पर बंकर्स बनाए गए हैं. पहलगाम के लंगालबाल प्वाइंट पर फे़स रिकग्निशन कैमरे लगाए गए हैं. पुलिस के मुताबिक़ चेहरा पहचानने वाले कैमरे इस मक़सद से लगाए गए हैं ताकि किसी भी संदिग्ध व्यक्ति की पहचान हो सके.
इन कैमरों से ऐसे लोगों की पहचान हो सकती है, जिनके नाम पुलिस के रिकॉर्ड में आपराधिक गतिविधियों की वजह से पहले से दर्ज हैं.
इस बार अमरनाथ यात्रा के दोनों ही रूट पर (पहलगाम और बालटाल ) को 'नो फ्लाइंग ज़ोन' बनाया गया है. इसका मतलब है कि इलाक़े में हेलिकॉप्टर, ड्रोन और ग़ुब्बारों को उड़ाने की इजाज़त नहीं होगी.
पुलिस ने बताया है कि अगर कोई इन दिशा -निर्देशों का पालन नहीं करेगा तो उसके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी.
ऐसा पहली बार हुआ है जब यात्रा के रूप पर इस तरह के इंतज़ाम किए गए हों.
दिशा -निर्देशों के मुताबिक़, यात्रियों से अनुरोध किया गया है कि यात्रा जत्थे से अलग होकर किसी भी यात्री को रूट पर चलने की इजाज़त नहीं होगी.
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जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने हाल ही में बताया था कि पहलगाम हमले के बाद अमरनाथ जाने की इच्छा रखने वाले यात्रियों की संख्या में कमी देखी गई.
उन्होंने बताया कि 22 अप्रैल के पहलगाम हमले के बाद लोगों ने अपना पंजीकरण रद्द करवाया. उनका ये भी कहना था कि अब फिर से यात्रियों के पंजीकरण का सिलसिला शुरू हुआ है, जो धीरे-धीरे बढ़ रहा है.
22 अप्रैल 2025 को दक्षिण कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में चरमपंथी हमला हुआ था. उस हमले में 26 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें ज़्यादातर पर्यटक थे.
पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की थी. इस कार्रवाई के बाद दोनों ही देशों के बीच जंग जैसे हालात पैदा हो गए थे.
दरअसल अमरनाथ के तीर्थ यात्री भी पहले चरमपंथियों के निशाने पर रह चुके हैं.
साल 2017 में कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में अमरनाथ यात्रियों पर हुए एक चरमपंथी हमले में कम से कम सात लोगों की मौत हो गई थी.
2 अगस्त, 2000 को चरमपंथियों ने पहलगाम के बेस कैंप पर हमला किया था. बेस कैंप में 32 लोग मारे गए थे, जिसमें 21 अमरनाथ यात्री थे.
20 जुलाई, 2001 को अमरनाथ गुफा के रास्ते की सबसे ऊंचाई पर स्थित पड़ाव शेषनाग पर हमला हुआ, जिसमें 13 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें तीन महिलाएं और दो पुलिस अधिकारी शामिल थे.
इन हमलों को देखते हुए 2002 में अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा बल के 15 हज़ार जवानों को तैनात किया गया.
बावजूद इसके, 6 अगस्त, 2002 को चरमपंथियों ने पहलगाम में हमला किया जिसमें नौ लोगों की मौत हुई थी और 30 अन्य लोग घायल हो गए थे.
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अमरनाथ यात्रा दरअसल हिंदुओं के लिए पवित्र अमरनाथ गुफा तक की यात्रा है. यह गुफा समुद्र तल से 3,888 मीटर यानी 12,756 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है.
यहां तक केवल पैदल या खच्चर के ज़रिए ही पहुंचा जा सकता है. दक्षिण कश्मीर के पहलगाम से ये दूरी क़रीब 46 किलोमीटर की है, जिसे पैदल पूरा करना होता है. इसमें अमूमन पांच दिन तक का वक़्त लगता है.
एक दूसरा रास्ता सोनमर्ग के बालटाल से भी है, जिससे अमरनाथ गुफा की दूरी महज़ 16 किलोमीटर है. लेकिन मुश्किल चढ़ाई होने की वजह से ये रास्ता बेहद कठिन माना जाता है.
ये गुफा बर्फ़ से ढंकी रहती है लेकिन गर्मियों में थोड़े वक़्त के लिए जब गुफा के बाहर बर्फ़ मौजूद नहीं होती, उस वक़्त में तीर्थयात्री यहां पहुंच सकते हैं. श्रावण के महीने में ये यात्रा शुरू होती है. इन दिनों 45 दिनों तक तीर्थ यात्री यहां आ सकते हैं.
हालांकि यात्रा की शुरुआत कब हुई इसकी आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. इस यात्रा के लिए आने वाले लोगों की बढ़ती संख्या को देखकर ही साल 2000 में अमरनाथ श्राइन बोर्ड का गठन किया गया जो राज्य सरकार से मिलकर इस यात्रा आयोजन को कामयाब बनाता है.
ऐसी मान्यता है कि इस गुफा में शिव ने अपने अस्तित्व और अमरत्व के रहस्य के बारे में पार्वती को बताया था. इस गुफा का ज़िक्र कश्मीरी इतिहासकार कल्हण की 12वीं सदी में लिखे गए महाकाव्य राजतरंगिणी में भी है. हालांकि इसके बाद लंबे समय तक इस गुफा से जुड़ी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
इस गुफा की छत से बूंद बूंद पानी टपकता है जो फ्रीज़िग प्वाइंट पर जमते हुए एक विशालकाय कोन के आकार की आकृति बनाता है जिसे हिंदू शिवलिंग का रूप मानते हैं. जून से अगस्त के बीच इस आकृति का आकार थोड़ा छोटा हो जाता है. शिवलिंग के साथ गणेश और पार्वती की बर्फ़ से बनी आकृति भी नज़र आती है.
इसके दर्शन के लिए हर साल लाखों हिंदू अमरनाथ यात्रा के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराते हैं.
यात्रा में किस बात का रखें ध्यान
श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड ने अमरनाथ यात्रियों के लिए कुछ तय नियम बना रखे हैं. इस यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं के लिए इन नियमों का पालन करना ज़रूरी है.
इसके तहत हर रजिस्टर्ड यात्री को अपने साथ अपना रेडियो फ्रिक्वेंसी आई कार्ड (आरएफ़आईडी) रखना ज़रूरी है, जो उन्हें रजिस्ट्रेशन के बाद जम्मू-कश्मीर में निर्धारित जगहों पर मिल सकता है.
आरएफ़आईडी कार्ड के लिए यात्रियों को अपने आधार कार्ड की जानकारी देनी होती है.
मुसाफ़िरों को अपनी यात्रा के दौरान हर वक़्त गले में आरएफ़आईडी कार्ड पहनना ज़रूरी होता है.
इस यात्रा में श्रद्धालुओं को 5 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए उन्हें पर्याप्त ऊनी कपड़े पहनने और अपने साथ रखना ज़रूरी है.
इस यात्रा में छतरी, विंड चीटर, रेनकोट और वाटरप्रूफ़ जूते की भी ज़रूरत पड़ती है, क्योंकि यात्रा के दौरान मौसम कभी भी बिगड़ सकता है.
यात्रा पर जाने के लिए यात्रियों को अपने सभी सामान वाटरप्रूफ़ बैग में रखने की सलाह दी जाती है, ताकि वे अपने सामान को भीगने से बचा सकें.
सभी यात्रियों से अपनी जेब में अपना नाम, पता, मोबाइल, टेलीफ़ोन नंबर लिखा हुआ काग़ज़ रखने को कहा जाता है. इसका मक़सद इमरजेंसी के हालात में ऐसी जानकारी का इस्तेमाल करना होता है.
किसी भी यात्री को बिना आरएफ़आईडी कार्ड के यात्रा में शामिल नहीं होने दिया जाता है.
यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वो हाई अल्टीट्यूड पर होने वाली बीमारी या शारीरिक परेशानियों को अनदेखा न करें.
इस यात्रा में किसी भी यात्री को शराब, सिगरेट वगैरह पीने की इजाज़त नहीं होती है.
इस यात्रा के दौरान ऐसी किसी भी जगह पर न रुकें जहां चेतावनी के नोटिस लगाए गए हों.
इस यात्रा में चप्पल पहनकर चलना ख़तरनाक हो सकता है. यहां केवल ट्रेकिंग वाले जूते ही पहनकर चलें.
यात्रा के दौरान किसी भी तरह का शॉर्टकट लेने से बचें.
अपनी पूरी यात्रा में ऐसी किसी भी चीज़ का इस्तेमाल न करें जो पर्यावरण को नुक़सान पहुंचाता हो.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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