मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के बीच हालात सामान्य होने की उम्मीद को उस वक्त झटका लगा जब रविवार को सैकड़ों की तादाद में इकट्ठा हुए प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच झड़प हो गई.
दरअसल, इस बार विवाद राज्य परिवहन की एक बस पर लिखे 'मणिपुर' शब्द को ढंकने को लेकर शुरू हुआ है.
राज्य की राजधानी इंफाल से क़रीब 80 किलोमीटर दूर नगा बहुल पहाड़ी ज़िले उखरुल में बीते 20 मई से शिरुई लिली महोत्सव का आयोजन किया गया था.
राज्य में जारी जातीय हिंसा के दो साल बाद इस राजकीय फूल का उत्सव मनाया जा रहा था.
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इस मौके पर प्रशासन ने कड़ी सुरक्षा के बीच इंफाल से कई पर्यटकों समेत मैतेई लोगों को भी उखरुल ले जाने की व्यवस्था की थी.
इसी शिरुई लिली महोत्सव के उद्घाटन समारोह को कवर करने इंफाल से कई पत्रकारों को भी मणिपुर राज्य परिवहन की बस से उखरुल ले जाया जा रहा था, लेकिन महज़ 25 किलोमीटर यात्रा के बाद सुरक्षाबलों ने ग्वालटाबी में एक चेक पोस्ट पर पत्रकारों की बस को रोका और बस के सामने लिखे मणिपुर स्टेट ट्रांसपोर्ट में कथित तौर पर 'मणिपुर' को ढंका गया.
इस बात को लेकर पत्रकारों और सुरक्षाबलों के बीच काफी बहस हुई और सभी पत्रकार वहीं से वापस इंफाल लौट आए. इस घटना से नाराज पत्रकारों ने इंफाल प्रेस क्लब के सामने धरना दिया और राज्यपाल को तुरंत कार्रवाई करने के लिए एक ज्ञापन सौंपा.
मणिपुर की पहचान और गौरव का मुद्दाइस घटना को 'मणिपुर की पहचान, उसके नाम, गौरव और सम्मान को कमजोर करने' के रूप में देखा जा रहा है. मैतेई समाज के हितों के लिए बनी कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ़ मणिपुर इंटीग्रिटी यानी कोकोमी ने सरकारी बस से राज्य का नाम हटाने के लिए राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से माफ़ी मांगने की मांग रखी है.
इसके साथ ही राज्य के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह, मुख्य सचिव पीके सिंह और पुलिस महानिदेशक राजीव सिंह से भी इस्तीफ़ा देने की मांग की थी. इन्हीं मांगों को लेकर कोकोमी ने रविवार से पूरे मणिपुर में सविनय अवज्ञा आंदोलन की घोषणा की, जिससे प्रदेश का माहौल फिर से गरमा गया है.
इस समय इंफाल स्थित राजभवन के बाहर सुरक्षाबलों का कड़ा पहरा लगाया गया है. रविवार को राजभवन गेट से लगभग 150 मीटर दूर कंगला गेट पर एकत्र हुए प्रदर्शनकारियों ने जब पीछे हटने से इनकार कर दिया तो पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस छोड़ी. इस तरह पुलिस के साथ हुई झड़प में कई प्रदर्शनकारियों को चोटें आई हैं.
कोकोमी का कहना है कि इस घटना से प्रदेश और यहां के लोगों का अपमान हुआ है.
प्रदेश के कई इलाकों में जारी विरोध प्रदर्शन की जानकारी देते हुए कोकोमी के संयोजक खुरैजम अथौबा ने बीबीसी से कहा, "किसी राज्य के नाम को ढंकना या मिटाना उस प्रदेश की गरिमा के ख़िलाफ़ है. इस घटना से राज्य की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को अपमानित किया गया है. प्रशासन ने यह राज्य के ख़िलाफ़ काम किया है. लिहाजा जब तक राज्यपाल माफ़ी नहीं मांगते हमारा विरोध जारी रहेगा."
इस घटना के विरोध में कोकोमी ने 48 घंटे का बंद बुलाया था और इसका मैतेई बहुल इलाकों में व्यापक असर देखने को मिला.
कोकोमी नेता अथौबा कहते हैं, "राज्य को चलाने वाले लोग कुकी चरमपंथियों की धमकी के डर से 'मणिपुर' को कैसे ढंक सकते हैं. प्रदेश चलाने को लेकर उनका जो भी आइडिया है, उसमें ऐसी हरकत को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता. ऐसे प्रशासन पर हम कैसे भरोसा करें? जिन लोगों को मणिपुर के मौजूदा हालातों को ठीक करना है वे ऐसी हरकत कर रहे हैं. हमने सविनय अवज्ञा आंदोलन के साथ ही राज्यपाल का बहिष्कार करने का फ़ैसला किया है. राज्यपाल को माफ़ी मांगने के साथ ही लोगों को यह भरोसा दिलाना होगा कि ऐसी हरकत दोबारा कभी नहीं होगी."
13 फरवरी को एन बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के बाद मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था. अब राज्यपाल ही मणिपुर के प्रशासक हैं.
पुलिस से मिली एक जानकारी के अनुसार सोमवार को जब राज्यपाल नई दिल्ली से वापस इंफाल लौटे तो उनके विरोध में सड़क के दोनों तरफ प्रदर्शनकारी मानव श्रृंखला बनाकर खड़े थे. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि प्रदर्शनकारी टिडिम रोड पर क्वाकेथेल इलाके में एकत्र हुए और तीन किलोमीटर की दूरी तय कर राजभवन की ओर मार्च करने की योजना बना रहे थे, लेकिन उन्हें वहां से आगे बढ़ने से रोक दिया गया. एक और जानकारी के अनुसार, प्रदर्शनकारियों की भीड़ को देखते हुए राज्यपाल को इंफाल हवाई अड्डे से सेना के हेलीकॉप्टर से राजभवन पहुंचाया गया.
सड़क किनारे जमा हुए प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तख्तियां पकड़ रखी थीं जिन पर लिखा था- 'मणिपुर की पहचान पर कोई समझौता नहीं हो सकता' और 'राज्यपाल को मणिपुर के लोगों से माफ़ी मांगनी चाहिए'. इस घटना को लेकर मंगलवार को नई दिल्ली में कोकोमी के सात सदस्यीय एक प्रतिनिधिमंडल के साथ गृह मंत्रालय के अधिकारियों की बैठक बुलाई गई है.
सरकारी बस पर लिखे 'मणिपुर' को हटाने वाली घटना पर कुकी जनजाति के प्रमुख संगठन कमेटी ऑन ट्राइबल यूनिटी के चेयरमैन थांगलैन किपगेन ने बीबीसी से कहा, "मैतेई समूह क्या आंदोलन कर रहे हैं, इसे लेकर मैं कुछ नहीं कहना चाहता. लेकिन केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियां अगर नागरिकों के हित के लिए कोई कदम उठा रही है तो वो सही कर रही हैं. हम लोग केंद्र द्वारा उठाए गए सभी कदमों का समर्थन करते हैं."
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मणिपुर में 3 मई, 2023 से मैतेई और कुकी जनजाति के बीच शुरू हुई जातीय हिंसा को पूरी तरह रोकने और प्रदेश में सामान्य माहौल बहाल करने में लगातार मुश्किलें देखने को मिली है. आखिर किस वजह से इस छोटे से राज्य में सरकार सब कुछ सामान्य नहीं कर पा रही है?
इस सवाल का जवाब देते हुए भारतीय सेना से रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल हिमालय सिंह कहते हैं, "मणिपुर के अशांत रहने का इतिहास काफी पुराना है. क्योंकि यहां कई जनजातीय समूह है और विरासत का मुद्दा यहां लंबा रहा है. ब्रिटिश के समय राज्य को पहाड़ी और मैदानी इलाके में बांटा गया. आज़ादी के बाद भी जो नीतियां बनीं उससे समस्याओं का पूरी तरह हल नहीं निकला."
मौजूदा हालात पर पूर्व सैन्य अधिकारी कहते है, "अभी की जो समस्या है, इसमें लोगों के मन में राजनीतिक सत्ता की आकांक्षा बढ़ गई है. अलग-अलग समूह की राजनीतिक समस्याएं भी हैं जिनका उन्हें निदान चाहिए."
"इसके अलावा बाहरी कुछ समस्याओं ने भी यहां के माहौल को अस्थिर किया है. लिहाजा केंद्र सरकार को यहां की परिस्थितियों पर काबू पाने के लिए दो तरह के उपाय करने होंगे. जिन समस्याओं के कारण आए दिन तनाव पैदा होता है उनका तत्काल निदान करना होगा और जो जातीय समूहों की विरासत से जुड़ी समस्याएं हैं उनको ठीक करने के लिए दीर्घकालिक नीतियां तैयार कर काम करना होगा. इसके अलावा सरकार और यहां के लोगों में लगातार बातचीत का सिलसिला जारी रखना होगा ताकि असंतोष को कम किया जा सके."
बीजेपी ने क्या कहा?इस घटना के तुरंत बाद बीजेपी के पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा ने कहा है कि मणिपुर में सुरक्षा बलों द्वारा पत्रकारों से भरी एक सरकारी बस को कथित तौर पर रोकने और उसके विंडशील्ड पर राज्य का नाम छिपाने की घटना एक 'टालने योग्य ग़लतफ़हमी' थी.
उन्होंने जोर देकर कहा, "मणिपुर की अखंडता से समझौता नहीं किया जा सकता."
हालांकि प्रदर्शनकारियों के विरोध के बाद अब तक राजभवन से इस घटना को लेकर किसी तरह का बयान जारी नहीं किया गया है.
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