(4 जुलाई पुण्यतिथि पर विशेष )
–सुरेन्द्र शर्मा
हे निर्भय चरित्र धैर्य रखो ,उत्साहित हो गर्व करो कि तुम एक भारतीय हो और गर्व से उद्घोष करो कि मैं एक भारतीय हूं ,हर भारतीय मेरा भाई है भारत मेरा जीवन है भारत का भला मेरा भला है। आओ सभी मिलकर परिश्रम करें मेरे भाइयों यह कोई सोने का समय नहीं है हमारे कार्य पर निर्भर है भविष्य में आने वाला भारत ।
वह हमारी मातृभूमि हमारे लिये तैयार खड़ी है वह तो केवल सो रही है ।उठो और जागो और देखो उसे बैठा अपने सनातन सिंहासन पर पुनरुत्थित ,पुनर्जीवित पहले से अधिक गौरवशाली हमारी मातृभूमि।
देशवासियों के अंदर राष्ट्रवाद की इस प्रखर ज्वाला को प्रज्ज्वलित करने वाले थे युग नायक स्वामी विवेकानंद।
पुण्य भूमी भारत सदैव से ही वीर प्रसूता रही है भारत जननी ने ऐसे वीर पुत्रों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने तप ज्ञान कर्म कौशल से भारत का मस्तिष्क ऊंचा किया है और दुनिया को राह दिखाई है,ऐसे ही एक संन्यासी योद्धा स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था । पिताजी विश्वनाथ दत्त कोलकाता के सुप्रसिद्ध बकील थे तो माता भवनेश्वरी देवी एक धार्मिक विचारों वाली आदर्श महिला।।
स्वामी जी के बचपन की तमाम घटनाओं से लेकर उनके उनके स्वामी विवेकानंद बनने तक की सभी घटनाएं अर्थात बालक बिले (स्वामी जी के बचपन का नाम)के बचपन की शरारतें या फिर युवा नरेन्द्र का जिद्दी स्वभाव हो या फिर स्वामी रामकृष्ण परमहंस स्पर्श पाकर स्वयं की अनुभूति या उसके पश्चात दुनिया को भारत की ज्ञान शक्ति का एहसास करने वाले स्वामी विवेकानंद के बारे में भारत का प्रत्येक व्यक्ति जानता है।
स्वामी विवेकानंद का भारत के क्षितिज पर उदय उस समय हुआ जब सदियों की दासता से ग्रसित भारत अपने स्व को भूल चुका था और अंग्रेजों के अत्याचारों से कराह रहा था । कभी विश्व गुरु कहलाने वाले भारत को उस समय पश्चिम के देश सपेरों और बंदर नचाने वालों का देश कह कर पुकारते थे स्वामी जी ने उसे कठिन काल में न केवल भारत को उसके स्व का एहसास कराया बल्कि दुनिया को भारत के ज्ञान के सम्मुख नतमस्तक करने का काम भी किया।
11 सितंबर 1893 दुनिया के इतिहास का स्वर्णिम दिन है जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता शिकागो धर्म सभा के हजारों दर्शकों से खचाखच भरे सभागृह के मंच पर सभी धर्म के ज्येष्ठ श्रेष्ट प्रतिनिधि विराजमान थे जो सभापति की आज्ञा से अपने धर्म का संक्षिप्त परिचय देकर अपना स्थान ग्रहण कर लेते थे उन सब के अंत में बोलने का अवसर मिला भारत के प्रतिनिधि युवा संन्यासी अर्थात स्वामी विवेकानंद जी को, भगवा वस्त्र पहने आध्यात्मिक तेजोमय चेहरे की ओर संपूर्ण सभा का ध्यान बरबस खिंचता ही चला गया,स्वामी जी के मुखारविंद से निकले पहले ही वाक्य अमेरिका के निवासी मेरे भाईयो और बहनों ने ऐसा जादू किया कि करतल ध्वनि से सभागार गुंजायमान हो उठा, स्वामी जी के शब्दों की शक्ति एवं भारत के आत्मीय स्नेह के आनंद से श्रोता भाव विभोर हो गए ।जैसे जैसे स्वामी जी बोलते जाते श्रोतागण खड़े होते जाते चारों ओर हो रही करतल ध्वनि रुकने का नाम नहीं ही ले रही थी पश्चिमी देशों के संवेदना शून्य हृदय में कुछ समय के लिए मानव जाति के एकत्व की अनुभूति उत्पन्न हो गई थी स्वामी जी की वाणी में मानव की मानव के प्रति संवेदना वसुधैव कुटुंबकम् की भावना प्रकट हो रही थी।
अपनी उन्नति अपनी समृद्धि पर गर्व करने वाला पश्चिम पागलों की भांति स्वामी जी के पीछे घूमने लगा वहां के समाचार पत्रों ने लिखा उनका भाषण सुनने के बाद भारत जैसे ज्ञान समृद्धि देश में धर्म प्रचारक भेजने की बात करना मूर्खता है। भगिनी निवेदिता ने लिखा है–, स्वामी जी ने जब शिकागो महासभा में भाषण देना प्रारंभ किया तो हिंदू संस्कृति का अतीत उनके माध्यम से श्रोताओं के समक्ष खड़ा हो गया भारत के गौरवशाली भूतकाल की ज्योति देखकर वहां उपस्थित लोग हतप्रभ हो गए पर जब स्वामी विवेकानंद का भाषण समाप्त हुआ तब आधुनिक हिंदू धर्म की सृष्टि हुई।
स्वामी जी कहते थे यदि राष्ट्र को जीवित रखना है तो उसके निवासियों के अंदर राष्ट्रीय भावना होना आवश्यक है यह भाव विश्व के लिए कार्य करता है और उसकी धारणा के लिए आवश्यक है जिस दिन विश्व की धारणा के लिए उसे भाव की तत्व रूप में आवश्यकता समाप्त हो जाती है उसे दिन उस राष्ट्र का विनाश हो जाता है हम भारतवासी इतनी आपत्तियां दुख दरिद्र एवं अन्तर्वाह अत्याचारों को झेल कर भी अब तक जीवित हैं यही प्रमाण है कि हमारा कोई राष्ट्रीय भाव है जिसकी विश्व की धारणा के लिए आवश्यकता है।
इस राष्ट्रीय भाव को ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने राष्ट्र की आत्मा अथवा चिति कहा है। स्वामी जी ने राष्ट्रवाद का आह्वान करते हुए कहा है कि वीर भोग्या वसुंधराअतः शौर्य को प्रकट करो अपने शत्रु को जीतने और संसार को भोगने के लिए साम दाम दंड और भेद की चतुर्विध राजनीति को परिस्थिति की आवश्यकता के अनुसार अपनाओ।
यदि तुम तुम अपकारों को चुपचाप सह कर किसी की भी ठोकरें खाकर और अत्याचारों को पीकर लज्जाजनक जीवन विताओगे तो तुम्हारे इहलोक का जीवन तो नर्क तुल्य होगा ही परलोक में भी तुम्हें वही मिलेगा। शास्त्रों का भी यही मत है अतः स्वधर्म का पालन करो केवल यही परम सत्य है मेरे प्रिय स्वधर्मियों यही मेरा तुम्हारे उपदेश है निसंदेह अन्याय मत करो परपीड़न मत करो ,यथाशक्ति परोपकार भी करो किंतु दूसरे के अन्याय को चुपचाप सह लेना घोर पाप है । सठे शाठयम समाचारेत ही स्वधर्म है । गृहस्थ को परिश्रम एवं उत्साह पूर्वक धनोपाजर्न करना चाहिए यथा शक्ति लोक कल्याण शुभ कार्य करना चाहिए ,यदि तुम यह सब नहीं कर सकते तो तुम मनुष्य कहलाने का दावा ही कैसे कर सकते हो?तब तुम्हारे लिए मोक्ष की बात करना तो दूर तुम सच्चे गृहस्थ भी नहीं रह सकते। ज्ञान के देश भारत के पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण स्वामी जी अशिक्षा एवं प्रचलित शिक्षा प्रणाली की विसंगतियों को मानते थे वह कहते थे जनसाधारण को शिक्षित करो और ऊपर उठाओ केवल तभी यह देश यथार्थ में राष्ट्र के रूप में खड़ा हो सकेगा ।
स्वामी जी ने कहा था कि हमारा लक्ष्य यही है कि हमारे देश की संपूर्ण शिक्षा लौकिक और परमार्थिक हमारे हाथों में हो और यह शिक्षा हमारी राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप हो और जहां तक संभव हो सके राष्ट्रीय पद्धति से ही दी जानी चाहिए हम प्रत्येक आत्मा का आह्वान करें
उत्तीष्ठ!जागृत!! प्राप्यवरान्नीवोवोधतः
उठो !जागो !!और जब तक लक्ष्य प्राप्त न कर लो कहीं मत ठहरो ।
जागो दुर्बलता के मोह जाल से निकालो वास्तव में कोई दुर्बल नहीं है आत्मा अनंत सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापी है खड़े हो स्वयं को झकझोरो अपने अंदर व्याप्त ईश्वर का आह्वान करो। स्वामी जी कहते थे कि में भविष्य को नहीं देखता हूं ना ही उसे जानने का प्रयास करता हूं किंतु एक दृश्य में अपने मन चक्षुओं से देख रहा हूं मातृभूमि एक बार फिर पुनः जाग गई है और अपने सिंहासन पर आसीन पहले से कहीं अधिक गौरव एवं वैभव से प्रदीप्त शांत और मंगलमय ईश्वर से उसकी पुनः प्रतिष्ठा की घोषणा समस्त विश्व में करो अपने दिन दुखी स्वदेश वासियों के प्रति उनका प्रेम सागरमय अथाह था।
स्वामी विवेकानंद जी का वह संदेश आज भी प्रासंगिक है कहो बंधुओं नग्न भारतवासी, अनपढ़ भारतवासी, चांडाल भारतवासी मेरा भाई है जोर से पुकार कर कहो कि भारत के देवी देवता मेरे ईश्वर हैं भारत के कल्याण में मेरा कल्याण है और रात दिन कहते रहो हे गौरी नाथ हे जगदंबे मेरी दुर्बलता और कापुरुषत्व को दूर कर दो मां मुझे मनुष्य बनाओ ।
स्वामी जी वास्तव में आधुनिक भारत में राष्ट्रवाद के जागरण कर्ता थे एवं भारतीय क्रांति के अग्रदूत थे । सदियों की दासता के कारण आत्माभिमान विहीन भारत को स्वामी जी ने उसकी मति एवं शक्ति का एहसास करा कर भारतवासियों को दिग्विजयी भारत बनाने के लिए प्रेरित किया ।भंवर में फंसे भारत को राह दिखाने का काम स्वामी जी ने किया है , 4 जुलाई 1902 को ध्यान करते हुए उन्होंने महासमाधि ले ली बेलूर में गंगा जी के किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया ।यद्यपिआज लौकिक रूप में स्वामी जी हमारे बीच में नहीं है परंतु उनके द्वारा दिखाया गया मार्ग पर चलते हुए भारत पुनः विश्व का सिरमौर बनेगा इसका आभास आज भारत के जनमानस के बीच दिखाई दे रहा है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तत्कालीन सरसंघ चालक कुप.सी. सुदर्शन ने वर्ष 2000 में अपने एक भाषण में स्वामी विवेकानंद के द्वारा 1895 में उनके गुरु भाइयों को लिखे पत्र का उल्लेख करते हुये कहा था कि स्वामी विवेकानंद ने उस पत्र में गुरु भाइयों को लिखा है कि 1836 में जब स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ तो स्वर्ण युग का प्रारंभ हुआ,सुदर्शन जी ने ऋषि अरविंद को उद्धृत करते हुये कहा कि ऋषि अरविंद ने कहा है युग संधि का काल 175 वर्ष का होता है सुदर्शन जी ने कहा कि 1836 में 175 जोड़ें तो 2011 होता है ,2011 से भारत का भाग्य सूर्य सम्पूर्ण विश्व में चमकना शुरू हो जायेगा भारत सम्पूर्ण विश्व को विश्व बंधुत्व का संदेश देकर एकता के सूत्र में गूंथने का प्रयत्न करेगा।।
वर्ष 2014 से भारत उस दिशा में चल पड़ा है,वर्तमान का भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है, वह निश्चित रूप से स्वामी विवेकानंद के स्वप्न की पूर्ति कर रहा है। 15 अगस्त 2022 के स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए भाषण में अमृत काल के पाँच संकल्पों को हम स्वामी विवेकानंद के विचारों और प्रेरणा से भी जोड़ कर देख सकते हैं।
पहला संकल्प ‘विकसित भारत’ – अमेरिका से लौटकर स्वामी विवेकानंद ने देशवासियों से आह्वान करते हुए कहा था- नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूँजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से, निकल पडे झोंपड़ियों से, जंगलों से, पहाड़ों से, पर्वतों से और खेत-खलियानों से और पुनः भारत माँ को विश्वगुरु के पद पर आसीन कर दे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का भी मानना यही है कि जनभागीदारी और ‘सबका साथ-सबका विकास’ के मंत्र से ही हम विकसित भारत के महान लक्ष्य को पूरा करेंगे।
दूसरा संकल्प ‘गुलामी से मुक्ति’– 1897 में स्वामी विवेकानंद से किसी ने पूछा, स्वामी जी मेरा धर्म क्या है? स्वामी जी ने उत्तर दिया कि गुलाम का कोई धर्म नहीं होता, अगले 50 वर्षों तक सिर्फ भारत को गुलामी से आजाद कराना ही तुम्हारा धर्म है। स्वामी जी कहा करते थे- कि “हम वो हैं, जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं, शब्द गौण हैं, विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं” अर्थात अपने मन मस्तिष्क में गुलामी का कोई भी विचार ना रहने दें। यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही, हमारे मन के भीतर किसी भी कोने में गुलामी का एक भी अंश न रहे।
तीसरा संकल्प ‘विरासत पर गर्व’– 11 सितंबर 1893 का उनका शिकागो भाषण इस बात का सर्वोत्तम उदाहरण है, जब भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, तब स्वामी विवेकानंद ने भारत की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, विरासत, अध्यात्म और वैभवशाली इतिहास को अंग्रेजों की ही धरती पर गर्व के साथ बताया। उसके बाद एक बार पुनः भारत को मान-सम्मान मिला, गुलामी के कारण जो हीनता का भाव भारतीयों में आया था वह खत्म हुआ। मानो किसी नए सवेरे ने जन्म लिया। विश्व विजय की इस यात्रा से सभी भारतवासियों में एक नई ऊर्जा की लहर दौड़ पड़ी और भारत फिर से परम वैभव को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हुआ। यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कही कि हमें अपने देश की विरासत पर गर्व होना चाहिए। हमें अपने सामर्थ्य पर भरोसा होना चाहिए। इसी विरासत ने भारत को कभी स्वर्ण काल दिया था। हमारी विरासत को विश्व मान रहा है। हम वे लोग हैं जो हर जीव में शिव देखते हैं।
चौथा संकल्प ‘एकता और एकजुटता’- एकता और एकजुटता पर स्वामी जी का विश्व को संदेश था कि- “जल्द ही हर धर्म की पताका पर लिखा हो विवाद नहीं, सहायता; विनाश नहीं, संवाद; मतविरोध नहीं, समन्वय और शान्ति।”, आज विश्व को आतंकवाद के खिलाफ नरेंद्र मोदी का भी यही संदेश है। स्वामी विवेकानंद ने देशवासियों से कहा था कि इस बात के ऊपर तुम गर्व करो कि तुम एक भारतीय हो और अभिमान के साथ यह घोषणा करो कि हम भारतीय हैं और प्रत्येक भारतीय हमारा भाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के भाव को मन में समेटे हुए कहा कि हमें अपनी देश की विविधता को बड़े उल्लास से मनाना चाहिए। क्योंकि किसी देश की सबसे बड़ी ताक़त उस देश की एकता और एकजुटता में लीन होती है।
पाँचवा संकल्प ‘नागरिकों का कर्तव्य’– स्वामी विवेकानंद द्वारा कृत ‘कर्मयोग’ नामक पुस्तक का चौथा अध्याय है- “कर्तव्य क्या है”। जिसमें उन्होंने जीवन के हर कर्तव्य के बारे में विस्तार से बताया है, स्वामी जी ने उसमें लिखा है कि हमारा पहला कर्तव्य है कि हम अपने प्रति घृणा न करें। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का उल्लेख करते हुए कहा है कि जीवन के विभिन्न कर्तव्यों के प्रति मनुष्य का जो मानसिक और नैतिक दृष्टिकोण रहता है, श्रीमद्भगवद्गीता में उन सभी जन्मगत तथा अवस्थागत कर्तव्यों का बारम्बार वर्णन है। उसी प्रेरणा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि नागरिकों का कर्तव्य देश और समाज की प्रगति का रास्ता तैयार करता है। यह मूलभूत प्रणशक्ति है। देश के मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी इससे बाहर नहीं हैं। बिजली की बचत, खेतों में मिलने वाले पानी का पूरा इस्तेमाल, केमिकल मुक्त खेती, हर कीमत पर भ्रष्टाचार से दूरी आदि हर क्षेत्र में नागरिकों की जिम्मेदारी और भूमिका बनती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वक्तृत्व भारत की स्वतंत्रता के अमृत काल के संकल्पों में स्वामी विवेकानन्द के ओजस्वी विचार अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। अपनी आध्यात्मिक शक्ति, गौरवपूर्ण संस्कृति-संस्कारों से ओतप्रोत अद्भुत सामर्थ्य, वैश्विक शांति और सौहार्द के लिए वसुधैव कुटुम्बकम के भारतीय दर्शन और मानव कल्याण की प्रेरणा देने वाले सनातन धर्म के कारण ही भारत विश्वगुरु की प्रतिष्ठा को प्राप्त करेगा।
(लेखक भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश के प्रदेश कार्य समिति सदस्य हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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