डॉ. निवेदिता शर्मा
भारत के सामने 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य है। किंतु यह लक्ष्य तभी पूरा किया जा सकता है जब देश की आधी आबादी, यानी महिलाएं, बराबरी की हिस्सेदार बनेंगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने कार्यबल में 70 प्रतिशत महिला भागीदारी का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। यह केवल आर्थिक नीतियों का हिस्सा नहीं बल्कि भारत की प्राचीन भारतीय संस्कृति के अनुरूप हो रहा सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव है, जिसमें कि महिलाओं को बराबरी का अधिकार ही नहीं कार्यस्थल पर भी समान रूप से सम्मान प्राप्त रहा। वर्तमान में भी वही दृश्य उभर रहा है, जिसमें कि महिलाएं केवल परिवार और समाज की पारंपरिक भूमिकाओं तक सीमित नहीं रहीं। वे हर कार्य में बराबर से सहभागी हैं। वे देश के आर्थिक भविष्य को दिशा दे रही हैं। ग्रामीण भारत की उद्यमी महिलाएं हों या कॉर्पोरेट बोर्डरूम में नेतृत्व करने वाली महिलाएं, हर स्तर पर उनकी भूमिका निर्णायक होती जा रही है।
महिला कार्यबल की बढ़ती भागीदारी : नए भारत की तस्वीर
हाल ही में एक सर्वे आया है, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण यानी (Periodic Labour Force Survey) जो यह दर्शा रहा है कि भारत में महिला कार्यबल भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह पीएलएफएस क्या है, यहां इसको भी समझ लेते हैं- भारत के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा अप्रैल 2017 में शुरू किया गया एक सांख्यिकीय सर्वेक्षण है, जिसका उद्देश्य पहले की तुलना में अधिक आवृत्ति के साथ श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर), श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) और बेरोजगारी दर (यूआर) जैसे प्रमुख रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों को मापना है । प्रारंभ में, इसके त्रैमासिक बुलेटिनों में केवल शहरी क्षेत्रों को ही शामिल किया जाता था, लेकिन सर्वेक्षण को नया रूप दिया गया है, और अब इसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए मासिक अनुमान प्रदान करना है, साथ ही पूरे देश के लिए सामान्य और वर्तमान स्थिति को कवर करने वाली वार्षिक रिपोर्ट भी प्रदान करना है।
अब इसके आए अभी के आंकड़े बता रहे हैं कि 2017-18 में महिला रोजगार दर केवल 22 प्रतिशत थी, जो 2023-24 में बढ़कर 40.3 प्रतिशत हो गई है। यह वृद्धि अपने आप में एक नया कीर्तिमान है। इसी अवधि में बेरोजगारी दर 5.6 प्रतिशत से घटकर 3.2 प्रतिशत पर आ गई। यह बताता है कि रोजगार के अवसर बढ़े हैं और खासकर महिलाओं को इन अवसरों में भागीदारी का मौका मिला है। ग्रामीण भारत में यह परिवर्तन और भी गहरा है। यहां महिला रोजगार में 96 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह वृद्धि 43 प्रतिशत रही है। ग्रामीण भारत की यह छलांग स्थापित करती है कि आर्थिक सशक्तिकरण केवल शहरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि गाँव की मिट्टी से भी एक नई क्रांति जन्म ले रही है।
शिक्षा और कौशल : सशक्तिकरण की बुनियाद
महिलाओं की कार्यक्षमता में बढ़ोतरी शिक्षा और कौशल विकास से संभव हुई है। स्नातक महिलाओं की रोजगार क्षमता 2013 में 42 प्रतिशत थी, जो 2024 में बढ़कर 47.53 प्रतिशत हो गई। इसी तरह स्नातकोत्तर स्तर पर महिलाओं की रोजगार क्षमता 34.5 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत तक पहुँच गई है। इस मामले में एक रिपोर्ट “इंडिया स्किल्स 2025” भी देखी जा सकती है, जो यह भविष्यवाणी करती है कि वर्तमान 2025 में लगभग 55 प्रतिशत भारतीय स्नातक वैश्विक स्तर पर रोजगार योग्य होंगे।
इसके साथ ही ईपीएफओ पेरोल डेटा से पता चलता है कि पिछले सात वर्षों में 1.56 करोड़ महिलाएँ संगठित क्षेत्र के औपचारिक कार्यबल का हिस्सा बनी हैं। दूसरी ओर, ई-श्रम पोर्टल पर 16.69 करोड़ से अधिक असंगठित महिला श्रमिकों का पंजीकरण हुआ है। यह पंजीकरण उन्हें विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ता है और एक बड़ी असुरक्षित श्रमिक आबादी को मुख्यधारा में लाने का प्रयास है।
महिला-नेतृत्व वाले विकास की ओर बदलाव
भारत सरकार ने महिला उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सैकड़ों योजनाएं चलाई हैं। इनके परिणामस्वरूप महिला स्व-रोजगार में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। 2017-18 में जहाँ महिलाओं का स्व-रोजगार अनुपात 51.9 प्रतिशत था, वहीं 2023-24 में यह 67.4 प्रतिशत तक पहुंच गया। पिछले दशक में जेंडर बजट में 429 प्रतिशत की वृद्धि—0.85 लाख करोड़ रुपये से 4.49 लाख करोड़ रुपये तक इस बदलाव का सबसे बड़ा प्रमाण है। यह दिखाता है कि नीति-निर्माण में महिलाओं को अब केवल लाभार्थी नहीं बल्कि विकास की धुरी माना जा रहा है।
भारत का स्टार्टअप : उद्यमिता की नई क्रांति
भारत का स्टार्टअप इको सिस्टम दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है और इसमें महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय है। आज 1.54 लाख से अधिक डीपीआईआईटी पंजीकृत स्टार्टअप्स में से 74,410 में कम से कम एक महिला निदेशक है। यह संख्या केवल आंकड़ा नहीं बल्कि समाज में महिलाओं की सोच, साहस और नेतृत्व क्षमता की बढ़ती मान्यता का प्रतीक है। नमो ड्रोन दीदी, दीनदयाल अंत्योदय योजना और लखपति दीदी जैसी पहलें ग्रामीण भारत में उद्यमिता को नई ऊर्जा दे रही हैं। दो करोड़ महिलाएँ “लखपति दीदी” बनकर न केवल अपनी जिंदगी बदल रही हैं बल्कि पूरे परिवार और समाज को आर्थिक मजबूती दे रही हैं।
महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की भूमिका निर्णायक रही है। कुल दिए गए मुद्रा ऋणों में 68 प्रतिशत ऋण 14.72 लाख करोड़ रुपये मूल्य के महिलाओं को मिले हैं। यही नहीं, प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत रेहड़ी-पटरी वालों में 44 प्रतिशत महिलाएं लाभार्थी हैं। ये योजनाएं महिलाओं को केवल छोटे व्यवसाय शुरू करने का अवसर ही नहीं देतीं बल्कि उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास भी प्रदान करती हैं।
एमएसएमई और महिला नेतृत्व
महिलाओं के नेतृत्व वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) अब भारत की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बन चुके हैं। वित्त वर्ष 2021 से 2023 तक ऐसे उद्यमों ने 89 लाख से अधिक नई नौकरियाँ पैदा कीं। 2010-11 में महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यमों की हिस्सेदारी 17.4 प्रतिशत थी, जो 2023-24 में बढ़कर 26.2 प्रतिशत हो गई। उनकी संख्या भी लगभग दोगुनी होकर 1 करोड़ से बढ़कर 1.92 करोड़ हो गई है। वास्तव में यह बदलाव दर्शाता है कि अब महिलाएँ केवल नौकरी खोजने वाली नहीं बल्कि नौकरी देने वाली भी बन रही हैं।
इन चुनौतियों से अब भी निपटना है
यह तस्वीर उत्साहजनक है, लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं। कार्यस्थलों पर वेतन असमानता और पदोन्नति में भेदभाव की समस्या अब भी कई बार सामने आती है। महिलाओं के लिए सुरक्षित और अनुकूल कार्य वातावरण सुनिश्चित करना अभी भी बड़ी चुनौती है। इसी प्रकार की स्थानीय स्तर पर कुछ चुनौतियां भी हो सकती हैं। आज जब भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था से ऊपर उठने की बात करता है, तब नारी शक्ति इसका सबसे बड़ा इंजन है, यह ध्यान में आता है। शिक्षा, कौशल, उद्यमिता और अवसर, ये वह चार स्तंभ हैं जिन पर महिला सशक्तिकरण और विकसित भारत का सपना टिका है। हम उम्मीद करें कि भारत जब 2047 में स्वतंत्रता की शताब्दी मनाएगा, तब देश का सबसे बड़ा उत्सव केवल आर्थिक प्रगति नहीं होगा, बल्कि यह होगा कि महिलाएँ बराबरी से उस प्रगति की धुरी बनी होंगी।
(लेखिका, मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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