अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने 2025 में पहली बार ब्याज दर घटा दी हैं. दरों में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती करके अब यह 4% - 4.25% के बीच आ गई हैं. अब अमेरिका नरम मौद्रिक नीति (monetary easing) की तरफ बढ़ रहा है. आइये जानते है कि इसका असर भारत और हमारे शेयर बाजारों पर क्या होगा?
क्यों घटाईं अमेरिका ने ब्याज दरें?फेडरल रिज़र्व के पास दो बड़ी चुनौतियां हैं मुद्रास्फीति यानी inflation को काबू में रखना और दूसरा रोज़गार को सहारा देना.
अमेरिका में महंगाई अभी भी दबाव बनाए हुए है, लेकिन दूसरी तरफ जॉब मार्केट ठंडा पड़ रहा है. ऐसे में फेड ने दरें कम कीं, ताकि कर्ज लेना आसान हो और आर्थिक गतिविधियां तेज हों.
भारतीय बाजारों पर हुआ तुरंत असरजैसे ही रेट कट का ऐलान हुआ, भारतीय बाजार हरे निशान में छलांग लगा बैठे. सेंसेक्स 447 अंक ऊपर गया और निफ्टी 117 अंक बढ़ गया था. इससे पता चलता है विदेशी निवेशकों (FPI) की उस उत्सुकता के बारे में, जो अब भारत जैसे उभरते बाज़ारों की तरफ और तेज़ी से देखेंगे. क्योंकि जब अमेरिका में दरें गिरती हैं, तो वहां बांड और डिपॉज़िट पर रिटर्न कम हो जाता है. ऐसे में निवेशक ज्यादा रिटर्न की तलाश में भारत जैसे देशों में पैसा लगाते हैं.
कौन से सेक्टर रहेंगे आगे?विश्लेषकों की मानें तो, इस कदम से भारत के कई सेक्टरों को सीधा फायदा हो सकता है.
बैंकिंग और फाइनेंशियल कम ब्याज दर का मतलब है कि विदेशी फंड्स भारत में ज्यादा पैसा लाएंगे. इससे बैंकों को पूंजी मिलती है और उधार देने की क्षमता बढ़ती है. इसके साथ ही मार्केट में लिक्विडिटी भी सुधरती है.
आईटी और टेक्नोलॉजीआईटी कंपनियां ज्यादातर अमेरिका को सर्विस देती हैं. अगर वहां खर्च और निवेश बढ़ेगा, तो भारतीय आईटी कंपनियों का ऑर्डर बुक भी मोटा होगा.
मेटल और मैन्युफैक्चरिंगसस्ता फाइनेंस मिलने और ग्लोबल डिमांड बढ़ने से ये सेक्टर भी तेजी पकड़ सकते हैं.
एफएमसीजी और कंज्यूमर गुड्सजब इकोनॉमी में कैश फ्लो बेहतर होता है तो लोग ज्यादा खर्च करते हैं. इसका फायदा घरेलू खपत वाली कंपनियों को मिलता है.
रियल एस्टेटअमेरिका में सस्ती पूंजी और भारत में मजबूत डिमांड ये दोनों कॉम्बिनेशन रियल एस्टेट सेक्टर को भी नई ताकत दे सकता है.
निवेशकों को क्या करना चाहिए?
इन वजहों से विदेशी निवेशकों के लिए भारत सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि प्राइम डेस्टिनेशन है.
फेड की दर कटौती भले ही छोटी हो, लेकिन अगर आने वाले महीनों में और कटौतियां हुईं, तो भारत में विदेशी पूंजी का बहाव तेज हो सकता है. विशेषज्ञों की मानें तो, निवेशकों के लिए यही सही समय है कि वे बैंकिंग और आईटी जैसे सेक्टरों में धीरे-धीरे मजबूत कंपनियों पर दांव लगाएं.
क्यों घटाईं अमेरिका ने ब्याज दरें?फेडरल रिज़र्व के पास दो बड़ी चुनौतियां हैं मुद्रास्फीति यानी inflation को काबू में रखना और दूसरा रोज़गार को सहारा देना.
अमेरिका में महंगाई अभी भी दबाव बनाए हुए है, लेकिन दूसरी तरफ जॉब मार्केट ठंडा पड़ रहा है. ऐसे में फेड ने दरें कम कीं, ताकि कर्ज लेना आसान हो और आर्थिक गतिविधियां तेज हों.
भारतीय बाजारों पर हुआ तुरंत असरजैसे ही रेट कट का ऐलान हुआ, भारतीय बाजार हरे निशान में छलांग लगा बैठे. सेंसेक्स 447 अंक ऊपर गया और निफ्टी 117 अंक बढ़ गया था. इससे पता चलता है विदेशी निवेशकों (FPI) की उस उत्सुकता के बारे में, जो अब भारत जैसे उभरते बाज़ारों की तरफ और तेज़ी से देखेंगे. क्योंकि जब अमेरिका में दरें गिरती हैं, तो वहां बांड और डिपॉज़िट पर रिटर्न कम हो जाता है. ऐसे में निवेशक ज्यादा रिटर्न की तलाश में भारत जैसे देशों में पैसा लगाते हैं.
कौन से सेक्टर रहेंगे आगे?विश्लेषकों की मानें तो, इस कदम से भारत के कई सेक्टरों को सीधा फायदा हो सकता है.
बैंकिंग और फाइनेंशियल कम ब्याज दर का मतलब है कि विदेशी फंड्स भारत में ज्यादा पैसा लाएंगे. इससे बैंकों को पूंजी मिलती है और उधार देने की क्षमता बढ़ती है. इसके साथ ही मार्केट में लिक्विडिटी भी सुधरती है.
आईटी और टेक्नोलॉजीआईटी कंपनियां ज्यादातर अमेरिका को सर्विस देती हैं. अगर वहां खर्च और निवेश बढ़ेगा, तो भारतीय आईटी कंपनियों का ऑर्डर बुक भी मोटा होगा.
मेटल और मैन्युफैक्चरिंगसस्ता फाइनेंस मिलने और ग्लोबल डिमांड बढ़ने से ये सेक्टर भी तेजी पकड़ सकते हैं.
एफएमसीजी और कंज्यूमर गुड्सजब इकोनॉमी में कैश फ्लो बेहतर होता है तो लोग ज्यादा खर्च करते हैं. इसका फायदा घरेलू खपत वाली कंपनियों को मिलता है.
रियल एस्टेटअमेरिका में सस्ती पूंजी और भारत में मजबूत डिमांड ये दोनों कॉम्बिनेशन रियल एस्टेट सेक्टर को भी नई ताकत दे सकता है.
निवेशकों को क्या करना चाहिए?
- निवेशकों को लॉन्ग टर्म के बारे में सोचना चाहिए, ये तो सिर्फ एक कटौती है.
- BFSI और IT पर फोकस करें ये दोनों सेक्टर सबसे बड़े लाभार्थी हो सकते हैं.
- अगर रुपया मजबूत हुआ, तो टेक्सटाइल और इंजीनियरिंग जैसी एक्सपोर्ट कंपनियों के मार्जिन दब सकते हैं.
- वोलेटिलिटी को नजरअंदाज न करें, क्योंकि ग्लोबल मार्केट्स हमेशा उतार-चढ़ाव लाते हैं.
इन वजहों से विदेशी निवेशकों के लिए भारत सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि प्राइम डेस्टिनेशन है.
फेड की दर कटौती भले ही छोटी हो, लेकिन अगर आने वाले महीनों में और कटौतियां हुईं, तो भारत में विदेशी पूंजी का बहाव तेज हो सकता है. विशेषज्ञों की मानें तो, निवेशकों के लिए यही सही समय है कि वे बैंकिंग और आईटी जैसे सेक्टरों में धीरे-धीरे मजबूत कंपनियों पर दांव लगाएं.
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