पटना, 9 अगस्त . बिहार विधानसभा चुनाव में पूर्णिया सीट राजनीतिक हलचल का केंद्र बना हुआ है. भौगोलिक रूप से यह जिला 3202.31 वर्ग किलोमीटर में फैला है और उत्तर में अररिया, दक्षिण में कटिहार और भागलपुर, पश्चिम में मधेपुरा व सहरसा और पूर्व में किशनगंज के साथ सीमाएं साझा करता है. यह इलाका कृषि, उद्योग और सामरिक महत्व के लिए जाना जाता है. जूट, धान, मक्का और गन्ना यहां की मुख्य फसलें हैं, जबकि पशुपालन और मुर्गी पालन से भी बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है.
पूर्णिया जिले में कृषि लोगों का मुख्य पेशा है. यहां धान, जूट, गेहूं, मक्का, मूंग, मसूर, सरसों, अलसी, गन्ना और आलू उगाए जाते हैं. जूट इस जिले की प्रमुख नकदी फसल है. इसके अलावा, नारियल, केला, आम, अमरूद, नींबू, अनानास और जामुन जैसे फल भी उगते हैं. पशुपालन भी यहां बहुत लोकप्रिय है. लोग गाय, बकरी और सुअर पालते हैं. पूर्णिया बिहार में सबसे ज्यादा मुर्गी और अंडे पैदा करता है.
जिले में बनमनखी में एक चीनी मिल और 716 छोटे उद्योग हैं, जो लोगों को रोजगार देते हैं. पूर्णिया सड़क और रेल से अच्छी तरह जुड़ा है. कटिहार इसका सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है, और राष्ट्रीय राजमार्ग 31 इसे देश के अन्य हिस्सों से जोड़ता है.
पूर्णिया का एक समृद्ध हिंदू इतिहास और गौरवशाली अतीत है. मुगल काल में यह एक सैन्य क्षेत्र था, जहां राजस्व का अधिकांश हिस्सा सीमाओं की सुरक्षा पर खर्च होता था. 1757 में यहां के स्थानीय गवर्नर ने सिराज उद-दौलह के खिलाफ बगावत की थी. 1765 में यह ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया. पूर्णिया अपनी खास रामकृष्ण मिशन के लिए मशहूर है, जहां अप्रैल में दुर्गा पूजा बड़े उत्साह से मनाई जाती है. इसके अलावा, शहर से लगभग 5 किमी दूर माता पुरान देवी का प्राचीन मंदिर भी प्रसिद्ध है. कुछ लोग मानते हैं कि पूर्णिया का नाम इसी मंदिर से आया है, जबकि कुछ का कहना है कि यह नाम ‘पूर्ण-अरण्य’ यानी ‘पूर्ण जंगल’ से लिया गया है. ब्रिटिश काल में यूरोपियनों को इसकी उपजाऊ जमीन और अनुकूल जलवायु ने आकर्षित किया, जिससे इसे ‘मिनी दार्जिलिंग’ कहा गया. अब गर्मियां यहां काफी तीखी होती हैं, लेकिन पूर्णिया बिहार का सबसे अधिक बारिश वाला क्षेत्र है, जहां आर्द्रता 70 फीसदी से ज्यादा रहती है.
शुरुआत में यूरोपीय लोग सौरा नदी के पास बसे, जिसे अब रामबाग कहते हैं. उन्होंने जमींदारी अधिकार खरीदे, व्यापार शुरू किया और नील समेत कई फसलों की खेती की. अंग्रेज किसानों ने पूर्णिया के विकास में बड़ी भूमिका निभाई, और उनके प्रभाव के निशान आज भी यहां दिखते हैं.
राजनीतिक इतिहास की बात करें तो 1951 में स्थापित पूर्णिया विधानसभा सीट पर अब तक 19 चुनाव (दो उपचुनाव सहित) हो चुके हैं. शुरुआती छह चुनावों में कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन 1977 की इंदिरा गांधी विरोधी लहर में जनता पार्टी ने जीत दर्ज की. 1980 से 1998 तक सीपीएम के अजीत सरकार का लगातार वर्चस्व रहा, जिनकी 1998 में हत्या के बाद यह सीट धीरे-धीरे दक्षिणपंथी दलों के पाले में चली गई. 2000 से भाजपा ने यहां लगातार सात बार जीत दर्ज की है. वर्तमान में भाजपा के विजय कुमार खेमका 2015 से विधायक हैं, जिन्होंने 2020 में कांग्रेस को हराया था.
हालांकि, 2024 के Lok Sabha चुनाव में समीकरण बदले. राजेश रंजन (पप्पू यादव) निर्दलीय लड़े और अपने प्रभाव के बल पर पूर्णिया से जीत दर्ज की. यादव की राजनीतिक पकड़ बेहद मजबूत है. वे छह बार Lok Sabha चुनाव लड़ चुके हैं और चार बार जीत भी चुके हैं, जिनमें से ज्यादातर जीत पूर्णिया सीट से रही है.
वर्तमान में पूर्णिया की अनुमानित जनसंख्या 5.50 लाख है, जिसमें पुरुषों और महिलाओं का अनुपात लगभग बराबर है. कुल 3.29 लाख मतदाताओं में 1.71 लाख पुरुष, 1.58 लाख महिलाएं और 10 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं. हिंदू-बहुल इस क्षेत्र में जातीय समीकरण, उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि और स्थानीय मुद्दे चुनावी परिणाम तय करने में अहम होंगे.
–
पीएसके/केआर
The post बिहार विधानसभा चुनाव : कृषि, उद्योग और राजनीति का संगम पूर्णिया, समीकरणों पर टिकी निगाहें appeared first on indias news.
You may also like
श्रावणी उपाकर्म एवं संस्कृत दिवस पर हुआ गंगा स्नान, ऋषि पूजन और सम्मान समारोह
आरजी कर कांड : दिलीप घोष ने सीबीआई जांच पर उठाए सवाल, तृणमूल पर जनआंदोलन दबाने का आरोप
तृणमूल विधायक लवली मैत्रा ने वामपंथी नेता सुजन चक्रवर्ती को बांधी राखी
बीएसएफ कदमतला में मनाया गया रक्षाबंधन
(अपडेट) प्रधानमंत्री कल जाएंगे बेंगलुरु, तीन वंदेभारत ट्रेनों को दिखाएंगे हरी झंडी