New Delhi, 5 अगस्त . बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले कटिहार जिले की मनिहारी विधानसभा क्षेत्र चर्चा का केंद्र बन गया है. कटिहार जिले के दक्षिण-पूर्वी कोने में स्थित यह सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है. गंगा नदी के किनारे बसे क्षेत्र की भौगोलिक बनावट और सामाजिक संरचना इसे बाकी विधानसभा क्षेत्रों से अलग बनाती है.
मनिहारी का नदी बंदरगाह झारखंड के साहिबगंज से फेरी सेवा के जरिए जुड़ा है, जिससे इसकी ऐतिहासिक व्यापारिक और धार्मिक महत्ता और बढ़ जाती है. यहां की उपजाऊ भूमि, जो गंगा और महानंदा नदियों द्वारा निर्मित है, कृषि के लिए आदर्श है, लेकिन हर वर्ष आने वाली बाढ़ और नदी कटाव की वजह से यह इलाका गंभीर संकट से भी जूझता है.
मनिहारी की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है, जिसमें धान, मक्का और जूट प्रमुख फसलें हैं. इसके अतिरिक्त मछली पालन और नदी व्यापार, विशेषकर मनिहारी नगर में, लोगों की आमदनी के अन्य स्रोत हैं. यहां कोई बड़ा उद्योग नहीं है, लेकिन छोटे व्यवसाय और प्रवासी श्रमिकों की कमाई स्थानीय अर्थव्यवस्था को जीवित रखती है.
मनिहारी में भारी मात्रा में दुग्ध उत्पादन होता है, लेकिन इसके सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. हर साल बाढ़ से पहले लोग अपने मवेशियों को लेकर गंगा के दूसरी ओर चले जाते हैं, क्योंकि बाढ़ के समय मनिहारी में चारा मिलना मुश्किल हो जाता है. दूसरी तरफ, गंगा के उस पार हरियाली होने की वजह से जानवरों के लिए चारा आसानी से मिल जाता है. यह नजारा ऐसा होता है, जैसे कोई पशु मेला लग गया हो.
मनिहारी का इतिहास भी खास है. जानकारी के अनुसार, पांडवों ने अपने हथियार यहीं छुपाए थे. भौगोलिक रूप से यह मिथिलांचल और कोसी क्षेत्र का एकमात्र पहाड़ी इलाका है. मनिहारी गंगा घाट का सांस्कृतिक महत्व भी है, जहां मशहूर फिल्में जैसे ‘तीसरी कसम’ और ‘बंदिनी’ की शूटिंग हुई थी.
यह जगह बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे तीन राज्यों का संगम है. यहां गंगा आरती भी नियमित रूप से होती है, जो इस जगह को और खास बनाती है.
सड़क और रेल दोनों से मनिहारी का संपर्क बेहतर है. कटिहार जंक्शन से जुड़ा रेलवे स्टेशन उत्तर बंगाल और असम तक की कनेक्टिविटी प्रदान करता है. कटिहार–मनिहारी रोड इस क्षेत्र की जीवनरेखा है. पटना से यह क्षेत्र लगभग 290 किलोमीटर और सिलीगुड़ी से 160 किलोमीटर की दूरी पर है.
मनिहारी की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान भी मजबूत रही है. माघ पूर्णिमा और छठ के अवसर पर मनिहारी घाट पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. लगभग 1,500 साल पुराना गौरी शंकर मंदिर और शाही मस्जिद यहां के धार्मिक सौहार्द का प्रतीक हैं. गोगबिल झील और पीर मजार जैसे पर्यटन स्थल भी इस क्षेत्र को विशिष्ट पहचान देते हैं. हालांकि, इन सबके बीच मनिहारी कई बुनियादी समस्याओं से भी जूझ रहा है, जैसे नदी कटाव, खराब सड़क संपर्क, सीमित स्वास्थ्य सेवाएं और विशेषकर जनजातीय महिलाओं में कम साक्षरता की समस्या.
राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो मनिहारी विधानसभा की स्थापना 1951 में हुई थी और अब तक यहां 17 बार चुनाव हो चुके हैं. इनमें कांग्रेस ने सात बार जीत दर्ज की है, जबकि समाजवादी विचारधारा वाले विभिन्न दलों ने कुल मिलाकर दस बार बाजी मारी है. 2008 के परिसीमन के बाद जब इस सीट को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया गया, तब से लेकर अब तक कांग्रेस के मनोहर प्रसाद सिंह यहां लगातार तीन बार से विधायक हैं. 2010, 2015 और 2020 के चुनाव में उनकी जीत ने यह साबित कर दिया है कि मनिहारी में उनका राजनीतिक आधार बेहद मजबूत है. मनोहर प्रसाद सिंह ने एमए तक पढ़ाई की है और उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है.
मनिहारी की चुनावी तस्वीर में मुस्लिम मतदाताओं की अहम भूमिका रही है. इसके साथ ही यादव, ब्राह्मण और पासवान समुदाय भी संख्या में अच्छी खासी मौजूदगी रखते हैं. ऐसे में जातीय और धार्मिक समीकरण यहां के चुनाव परिणामों को काफी हद तक प्रभावित करते हैं. यह उन गिनी-चुनी सीटों में से है, जहां समाजवादियों ने शुरुआती दौर में अपना प्रभुत्व स्थापित किया था, जबकि उस वक्त कांग्रेस का पूरे राज्य में वर्चस्व था. 1952 से लेकर 2006 तक के चुनावी इतिहास में कई नामचीन चेहरे उभरे, जैसे युवराज, राम सिपाही यादव, मुबारक हुसैन और विश्वनाथ सिंह, जिन्होंने अलग-अलग पार्टियों से जीत दर्ज की.
चुनाव आयोग के अनुसार, 2024 में इस क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्या 4,96,124 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 2,57,298 और महिलाओं की संख्या 2,38,826 है. 1 जनवरी 2024 के अनुसार, कुल मतदाता 3,02,010 हैं, जिनमें 1,58,943 पुरुष, 1,43,051 महिलाएं और 16 थर्ड जेंडर हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं और युवाओं की निर्णायक भूमिका 2025 के चुनाव में अहम हो सकती है.
अब आगामी विधानसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस एक बार फिर जीत की हैट्रिक से आगे बढ़ती है या कोई नया चेहरा इस राजनीतिक किले को भेदने में सफल होता है. जेडीयू, भाजपा और राजद जैसे दल रणनीति बनाने में जुटे हैं, लेकिन मुकाबला कांग्रेस और जनता के बीच भरोसे की परीक्षा जैसा होगा.
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पीएसके/एबीएम
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