Next Story
Newszop

बंटवारे की पीड़ा से नारी संघर्ष तक… भीष्म साहनी की कहानियों में दिखी समाज की सच्चाई

Send Push

New Delhi, 7 अगस्त . भीष्म साहनी हिंदी साहित्य के उन गिने-चुने रचनाकारों में से हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी से समाज की गहरी सच्चाइयों को उजागर किया. उनकी रचनाओं में न केवल सामाजिक चेतना और मानवीय संवेदनाएं दिखती हैं, बल्कि सहजता, मानवतावादी दृष्टिकोण और सामाजिक यथार्थ को प्रस्तुत करने की कला उन्हें हिंदी साहित्य में एक खास स्थान दिलाती है.

भीष्म साहनी का व्यक्तित्व सादगी, सहानुभूति और मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण था. वे सामाजिक मुद्दों, खासकर भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी और सांप्रदायिकता के प्रति काफी संवेदनशील थे. अपने बड़े भाई और मशहूर अभिनेता बलराज साहनी के साथ उनका गहरा और प्रेरणादायी रिश्ता था. दोनों ने भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के माध्यम से सांस्कृतिक और सामाजिक सरोकारों को बढ़ावा देने में योगदान दिया.

भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम हरबंस लाल साहनी और माता का नाम लक्ष्मी देवी था. वे मशहूर हिंदी फिल्म अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे.

साहनी ने भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले व्यापार किया और विभाजन के बाद भारत आए और पत्रकारिता से करियर की शुरुआत की. इस दौरान उन्होंने फिल्म ‘मोहन जोशी हाजिर हो’ में अभिनय भी किया. उन्होंने टॉलस्टॉय, ऑस्ट्रोवस्की जैसे रूसी लेखकों की लगभग दो दर्जन किताबों का भी हिंदी में अनुवाद किया, जिसमें टॉलस्टॉय का उपन्यास ‘पुनरुत्थान’ भी शामिल है.

साहनी ने 1965 से 1967 तक हिंदी पत्रिका ‘नई कहानियां’ का संपादन किया. उन्होंने ‘तमस’ (1974), ‘बसंती’, ‘झरोखे’, और ‘कड़ियां’ जैसे उपन्यास भी लिखे. विभाजन की त्रासदी पर आधारित ‘तमस’ (1974) के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. भीष्म साहनी का उपन्यास ‘तमस’ विभाजन की त्रासदी को दर्शाता है, जिस पर 1986 में एक टीवी सीरीज भी बनी.

इसके अलावा, उन्होंने सामाजिक बंधनों और नारी जीवन की चुनौतियों को दर्शाते उपन्यास ‘बसंती’ से भी लेखनी की छाप छोड़ी. उन्होंने ‘हानूश’, ‘माधवी’, ‘कबीरा खड़ा बाजार में’, ‘मुआवजे’ और ‘आलमगीर’ जैसे नाटक भी लिखे. उनकी लेखनी में वामपंथी विचारधारा के साथ-साथ मानवतावादी दृष्टिकोण का अनूठा समन्वय दिखता है.

साहनी की लेखनी सामाजिक यथार्थ और मानवीय मूल्यों पर आधारित थी. उनकी रचनाएं प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाती हैं, जिसमें समाज की विसंगतियों, गरीबी और शोषण को उजागर किया गया है. उन्होंने मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दी और विचारधारा को अपनी रचनाओं पर हावी नहीं होने दिया. उन्हें पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार और कई अन्य सम्मानों से भी नवाजा गया.

11 जुलाई 2003 को भीष्म साहनी ने दुनिया को अलविदा कह दिया. उनकी रचनाओं में सामाजिक चेतना के साथ-साथ मानवीय संवेदनाएं भी दिखाई देती हैं, जो आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं.

एफएम/एबीएम

The post बंटवारे की पीड़ा से नारी संघर्ष तक… भीष्म साहनी की कहानियों में दिखी समाज की सच्चाई appeared first on indias news.

Loving Newspoint? Download the app now