New Delhi, 23 जुलाई . चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन नायकों में से एक हैं, जिनका नाम सुनते ही देशभक्ति और बलिदान की भावना जागृत हो जाती है. 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गांव (वर्तमान में चंद्रशेखर आजाद नगर) में जन्मे चंद्रशेखर ने अपने छोटे से जीवन में स्वतंत्रता की ऐसी ज्वाला जलाई, जो आज भी हर भारतीय के दिल में जल रही है.
उनकी वीरता, निडरता और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत की कहानियां आज भी प्रेरणा देती हैं. चंद्रशेखर का बचपन साधारण था, लेकिन उनके मन में देशभक्ति की भावना बचपन से ही थी. 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उनके जीवन को नई दिशा दी. मात्र 13 वर्ष की आयु में उन्होंने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और पहली बार गिरफ्तारी का सामना किया. जब मजिस्ट्रेट ने उनका नाम पूछा, तो उन्होंने गर्व से जवाब दिया, ‘आजाद’. यहीं से उन्हें ‘आजाद’ नाम मिला, जो उनकी पहचान बन गई.
चंद्रशेखर आजाद ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की शुरुआत की. 1925 में काकोरी कांड में उनकी भागीदारी ने उन्हें अंग्रेजों की नजरों में कुख्यात बना दिया. इस घटना में क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाने को लूटकर हथियार खरीदने के लिए धन जुटाया था. यह कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ.
चंद्रशेखर आजाद की सबसे बड़ी खासियत थी उनकी निडरता. वह हमेशा कहा करते थे, “दुश्मन की गोली के सामने मैं कभी नहीं झुकूंगा.” उनकी यह बात 1931 में अल्फ्रेड पार्क (इलाहाबाद) में उनके अंतिम क्षणों में सत्य साबित हुई. 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें घेर लिया, लेकिन आजाद ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी आखिरी गोली तक लड़ाई लड़ी और अंत में अपनी ही पिस्तौल से गोली मारकर शहादत दी, ताकि जीवित पकड़े न जाएं. यह घटना आज भी भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता के लिए उनके अटल संकल्प का प्रतीक है.
चंद्रशेखर आजाद न सिर्फ एक क्रांतिकारी थे, बल्कि एक प्रेरक व्यक्तित्व भी थे. उन्होंने युवाओं को संगठित किया और उनमें स्वतंत्रता के लिए लड़ने का जज्बा दिया. उनकी सादगी, अनुशासन और देश के प्रति समर्पण आज भी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा है.
उनका मानना था कि स्वतंत्रता केवल मांगने से नहीं मिलती, उसे छीननी पड़ती है. उनकी यह विचारधारा आज भी हमें आत्मनिर्भरता और साहस का पाठ पढ़ाती है. आज जब हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं, चंद्रशेखर आजाद जैसे वीरों का बलिदान हमें याद दिलाता है कि आजादी की कीमत कितनी बड़ी थी. उनकी कहानी सिर्फ इतिहास की किताबों तक सीमित नहीं है, यह हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की आग जलाने वाली एक अनमोल धरोहर है.
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एकेएस/डीकेपी
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