New Delhi, 19 जुलाई . मधुमालती, जो आमतौर पर घरों और बाग-बगीचों की खूबसूरती बढ़ाती नजर आती है, घरों पर चढ़ी गुलाबी-सफेद लता का आयुर्वेद में खासा स्थान है. मधुमालती का उपयोग त्वचा, पाचन, बुखार और डायबिटीज से निजात दिलाने में कारगर है.
मधुमालती भारत के साथ फिलीपींस और मलेशिया समेत अन्य देशों में भी पाई जाती है.
अंग्रेजी में इसे रंगून क्रीपर, चायनीज में हनीसकल, बंगाली में मधुमंजरी, तेलुगू में राधामनोहरम, असमिया में मालती, और झुमका बेल जैसे नामों से जाना जाता है. पौधे का बोटैनिकल नाम ‘कॉम्ब्रेटम इंडिकम’ है. मधुमालती ‘कैप्रीफोलिआसी’ परिवार से संबंधित है. इसकी लगभग 180 प्रजातियां हैं. इनमें से लगभग 100 प्रजातियां चीन में, 20 भारत में, 20 यूरोप में और 20 उत्तरी अमेरिका में पाई जाती हैं.
मधुमालती रात में जब खिलती है तो इसका रंग सफेद होता है लेकिन सूर्य की किरणों के संपर्क में आने पर वे गुलाबी और फिर लाल रंग में बदल जाते हैं. एक ही गुच्छे में कई फूल देखने को मिलते हैं.
प्राचीन ग्रंथ रसजलनिधि के चतुर्थ खंड के अध्याय 3 में मधुमालती का उल्लेख मिलता है. इसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो बीमारियों से निजात दिलाने में कारगर हो सकते हैं. वहीं, सर्दी-जुकाम और कफ की स्थिति में इसका काढ़ा बनाकर सेवन करने से भी आराम मिल सकता है. इसके लिए 1 ग्राम तुलसी के पत्ते में 2-3 लौंग के साथ 1 ग्राम मधुमालती के फूल और 2 पत्तों को मिलाकर काढ़ा बनाने से भी राहत मिलती है. दिन में 2-3 बार इस काढ़े का सेवन करने से सर्दी-जुकाम में आराम मिल सकता है.
इसके सूजन-रोधी गुणों के कारण यह गठिया के दर्द और सूजन से राहत दिलाने में भी लाभकारी होता है.
मधुमालती के 5-6 पत्तों या फूलों का रस निकालकर दिन में दो बार लेने से डायबिटीज कंट्रोल करने में भी मदद मिल सकती है.
इसके सेवन के कई फायदे हैं, लेकिन किसी भी औषधीय उपयोग से पहले चिकित्सक या आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की सलाह लेना महत्वपूर्ण है. वे आपकी व्यक्तिगत स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार सही खुराक और उपयोग विधि बता सकते हैं.
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एनएस/केआर
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