पाकिस्तान की एयर स्ट्राइक में अफगानिस्तान के तीन युवा क्रिकेटरों की मौत पर ICC और BCCI ने दुख जताया, लेकिन PCB ने भारत के बोलने पर आपत्ति जताई। यह प्रतिक्रिया एशिया कप में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए तनाव के बाद स्वाभाविक है। ऐसे में, जब क्रिकेट में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा, स्वीडिश पोल वॉल्टर मोंडो डुप्लांटिस की दुनिया एक अलग मिसाल पेश करती है।
रिकॉर्ड तोड़ने में माहिर
अर्मंड गुस्ताव डुप्लांटिस, जिन्हें मोंडो डुप्लांटिस के नाम से जाना जाता है, एथलेटिक्स की दुनिया का एक जाना-माना नाम हैं। अमेरिका में जन्मे और स्वीडन का प्रतिनिधित्व करने वाले इस युवा पोल वॉल्टर ने सिर्फ 25 साल की उम्र में 14 बार विश्व रिकॉर्ड तोड़ा है। उन्होंने ओलंपिक, वर्ल्ड एथलेटिक्स और डायमंड लीग जैसी बड़ी प्रतियोगिताओं में 22 स्वर्ण पदक जीते हैं। हाल ही में उन्होंने वर्ल्ड एथलेटिक्स
चैंपियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीता।
मोंडो पर भरोसा
वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पोल वॉल्ट का फाइनल शुरू होने से पहले ही हर कोई मोंडो की जीत को लेकर आश्वस्त था। यह भी उम्मीद थी कि वह अपना ही विश्व रिकॉर्ड तोड़ेंगे और पोल वॉल्ट की ऊंचाई को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे। टोक्यो में हुई वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप के फाइनल में, मोंडो के प्रतिद्वंद्वी छह मीटर की ऊंचाई पर रुक गए थे। मोंडो ने पहली कोशिशों में ही छह मीटर 10 सेंटीमीटर और फिर छह मीटर 15 सेंटीमीटर की ऊंचाई पार कर अपना स्वर्ण पदक पक्का कर लिया था। लेकिन मोंडो सिर्फ जीत से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने बार को छह मीटर 30 सेंटीमीटर के विश्व रिकॉर्ड पर रखवाया। पहली दो कोशिशों में वह इस ऊंचाई को पार नहीं कर सके।
खेल की आत्मा
तीसरे और अंतिम प्रयास की बारी थी। उस समय का दृश्य अविश्वसनीय था। जब मोंडो अपने पोल को हाथ में लेकर ट्रैक पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, तभी एक कैमरे ने उनके चार निकटतम प्रतिद्वंद्वियों को दिखाया - ग्रीस के एमैनोइल कारालिस, ऑस्ट्रेलिया के कर्टिस मार्शल, अमेरिका के सैम केंड्रिक्स और फ्रांस के थिबाऊ कोले। ये सभी प्रार्थना की मुद्रा में थे, मोंडो के लिए। जब मोंडो ने वह ऊंचाई पार की, तो ये प्रतिद्वंद्वी दौड़कर उन्हें गोद में उठा लेते हैं, नाचते हैं, जैसे कि वह उनकी अपनी टीम के खिलाड़ी हों। यह खेल की सच्ची भावना का अद्भुत उदाहरण था, जहां व्यक्तिगत जीत से ज्यादा खेल का महत्व था।
क्रिकेट में 'क्रिकेट फॉर गुड' की कमी
यह सच है कि स्वीडन और इन देशों के बीच कोई राजनीतिक या सामरिक तनाव नहीं है। लेकिन, क्या खेलों में सौहार्द केवल राजनीतिक शांति पर निर्भर होना चाहिए? ओलंपिक का आदर्श वाक्य - सिटियस (सबसे तेज), अल्टियस (सबसे ऊंचा), फोर्टियस (सबसे मजबूत), कम्युनिटर (एकजुट) - यहां जीवंत दिखता है। मोंडो के इस उदाहरण के बहाने, क्या यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि ICC भी कुछ ऐसा करे, जिससे उसका आदर्श वाक्य - 'क्रिकेट फॉर गुड' - केवल कागजों तक सीमित न रहे?
यह कैसी बाध्यता
ठीक है कि ICC किसी को हाथ मिलाने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। क्रिकेटर अपने प्रतिद्वंद्वियों की उपलब्धियों के लिए ताली बजाएं, इसके लिए भी वह कोई कानून नहीं बना सकती। लेकिन, क्या यह अजीब नहीं है कि भारत-पाकिस्तान को पिछले कई ICC और एशियन क्रिकेट काउंसिल (ACC) की प्रतियोगिताओं में एक ही ग्रुप में रखा जाता है? क्या कुछ अन्य खेलों की तरह क्रिकेट की भी विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं का ड्रॉ निकाला जाता है? अगर नहीं, तो क्या मजबूरी है कि दोनों देशों को हर बड़ी प्रतियोगिता में ग्रुप स्टेज के लिए एक साथ रखा जाता है? अगर ICC भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर सकतीं, तो उन्हें जनभावनाओं का दोहन करने की भी छूट नहीं होनी चाहिए। भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट के तनाव का अंत क्या होगा, यह कहना मुश्किल है। शायद क्रिकेट को भी अब मोंडो की दुनिया से कुछ सीखने की जरूरत है।
रिकॉर्ड तोड़ने में माहिर
अर्मंड गुस्ताव डुप्लांटिस, जिन्हें मोंडो डुप्लांटिस के नाम से जाना जाता है, एथलेटिक्स की दुनिया का एक जाना-माना नाम हैं। अमेरिका में जन्मे और स्वीडन का प्रतिनिधित्व करने वाले इस युवा पोल वॉल्टर ने सिर्फ 25 साल की उम्र में 14 बार विश्व रिकॉर्ड तोड़ा है। उन्होंने ओलंपिक, वर्ल्ड एथलेटिक्स और डायमंड लीग जैसी बड़ी प्रतियोगिताओं में 22 स्वर्ण पदक जीते हैं। हाल ही में उन्होंने वर्ल्ड एथलेटिक्स
चैंपियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीता।
मोंडो पर भरोसा
वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पोल वॉल्ट का फाइनल शुरू होने से पहले ही हर कोई मोंडो की जीत को लेकर आश्वस्त था। यह भी उम्मीद थी कि वह अपना ही विश्व रिकॉर्ड तोड़ेंगे और पोल वॉल्ट की ऊंचाई को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे। टोक्यो में हुई वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप के फाइनल में, मोंडो के प्रतिद्वंद्वी छह मीटर की ऊंचाई पर रुक गए थे। मोंडो ने पहली कोशिशों में ही छह मीटर 10 सेंटीमीटर और फिर छह मीटर 15 सेंटीमीटर की ऊंचाई पार कर अपना स्वर्ण पदक पक्का कर लिया था। लेकिन मोंडो सिर्फ जीत से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने बार को छह मीटर 30 सेंटीमीटर के विश्व रिकॉर्ड पर रखवाया। पहली दो कोशिशों में वह इस ऊंचाई को पार नहीं कर सके।
खेल की आत्मा
तीसरे और अंतिम प्रयास की बारी थी। उस समय का दृश्य अविश्वसनीय था। जब मोंडो अपने पोल को हाथ में लेकर ट्रैक पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, तभी एक कैमरे ने उनके चार निकटतम प्रतिद्वंद्वियों को दिखाया - ग्रीस के एमैनोइल कारालिस, ऑस्ट्रेलिया के कर्टिस मार्शल, अमेरिका के सैम केंड्रिक्स और फ्रांस के थिबाऊ कोले। ये सभी प्रार्थना की मुद्रा में थे, मोंडो के लिए। जब मोंडो ने वह ऊंचाई पार की, तो ये प्रतिद्वंद्वी दौड़कर उन्हें गोद में उठा लेते हैं, नाचते हैं, जैसे कि वह उनकी अपनी टीम के खिलाड़ी हों। यह खेल की सच्ची भावना का अद्भुत उदाहरण था, जहां व्यक्तिगत जीत से ज्यादा खेल का महत्व था।
क्रिकेट में 'क्रिकेट फॉर गुड' की कमी
यह सच है कि स्वीडन और इन देशों के बीच कोई राजनीतिक या सामरिक तनाव नहीं है। लेकिन, क्या खेलों में सौहार्द केवल राजनीतिक शांति पर निर्भर होना चाहिए? ओलंपिक का आदर्श वाक्य - सिटियस (सबसे तेज), अल्टियस (सबसे ऊंचा), फोर्टियस (सबसे मजबूत), कम्युनिटर (एकजुट) - यहां जीवंत दिखता है। मोंडो के इस उदाहरण के बहाने, क्या यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि ICC भी कुछ ऐसा करे, जिससे उसका आदर्श वाक्य - 'क्रिकेट फॉर गुड' - केवल कागजों तक सीमित न रहे?
यह कैसी बाध्यता
ठीक है कि ICC किसी को हाथ मिलाने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। क्रिकेटर अपने प्रतिद्वंद्वियों की उपलब्धियों के लिए ताली बजाएं, इसके लिए भी वह कोई कानून नहीं बना सकती। लेकिन, क्या यह अजीब नहीं है कि भारत-पाकिस्तान को पिछले कई ICC और एशियन क्रिकेट काउंसिल (ACC) की प्रतियोगिताओं में एक ही ग्रुप में रखा जाता है? क्या कुछ अन्य खेलों की तरह क्रिकेट की भी विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं का ड्रॉ निकाला जाता है? अगर नहीं, तो क्या मजबूरी है कि दोनों देशों को हर बड़ी प्रतियोगिता में ग्रुप स्टेज के लिए एक साथ रखा जाता है? अगर ICC भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर सकतीं, तो उन्हें जनभावनाओं का दोहन करने की भी छूट नहीं होनी चाहिए। भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट के तनाव का अंत क्या होगा, यह कहना मुश्किल है। शायद क्रिकेट को भी अब मोंडो की दुनिया से कुछ सीखने की जरूरत है।
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