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बिहार के नतीजों के बाद छोटे दल तय कर सकते हैं अगली सरकार

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बिहार में सत्ता की चाबी अक्सर उन दलों के पास चली जाती है, जिनकी विधानसभा में सीटें भले कम हों, लेकिन उनके पास ठोस सामाजिक आधार और स्थानीय प्रभाव होता है। इस चुनाव में यह तस्वीर एऔर स्पष्ट होती दिख रही है। NDA और महागठबंधन के अलावा कई छोटे दल भी जमीन पर सक्रिय हैं और उन्हें भरोसा है कि इस बार सरकार बनाने की कुंजी उनके हाथों में होगी।

वोट प्रतिशत बताता है प्रभाव2020 के विधानसभा चुनाव में NDA ने 125 सीटें जीती थीं, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं। परिणाम करीबी था और यहीं छोटे दलों की अहमियत उभरकर सामने आई। NDA की जीत में मुकेश सहनी की VIP और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा की भूमिका निर्णायक रही थी। दोनों दलों के चार-चार विधायक जीते थे। इसी तरह महागठबंधन में वाम दलों की हिस्सेदारी प्रभावशाली रही थी। सीपीआई-एमएल ने 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि CPI और CPM को दो-दो सीटें मिली थीं।

निर्दलीयों के खाते में भी गए वोटछोटे दलों का महत्व सिर्फ सीटों से नहीं, बल्कि वोटों के बंटवारे से भी समझा जा सकता है। 2020 में RJD को 23.5%, BJP को 19.8%, कांग्रेस को 9.4% और वाम दलों को 4.7% वोट मिले थे। यह कुल मिलाकर करीब 57% होता है। शेष 43% वोट NDA और महागठबंधन के अन्य सहयोगी दलों, अलग चुनाव लड़ रहे छोटे दलों व निर्दलीयों के खाते में गए थे।

JDU को बड़ा नुकसान पहुंचायाइस चुनाव में छोटे दलों का दायरा और क्षमता, दोनों बढ़े हैं। NDA में चिराग पासवान की LJP (R) वापसी कर चुकी है। पिछली बार LJP (R) ने अलग राह अपनाकर 134 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। भले उसे तब जीत कम सीटों पर मिली, लेकिन उसने JDU को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। पार्टी को NDA ने 29 सीटें दी हैं। इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 6 सीटें मिली हैं।

मुकेश सहनी ने बदल लिया पालामहागठबंधन की ओर देखें तो मुकेश सहनी ने पाला बदल लिया है और उनकी पार्टी को 15 सीटें दी गई हैं। वाम दलों की सीटें भी इस बार बढ़ी हैं। गठबंधन के भीतर इस बंटवारे का असर बड़े दलों पर दिख रहा है। NDA में BJP पिछली बार के मुकाबले 9 कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि JDU 14 कम सीटों पर। महागठबंधन में कांग्रेस की 9 सीटें और RJD की एक सीट कम हुई है।

राजनीतिक जमीन तलाश रही AAPइस चुनाव में प्रशांत किशोर की जन सुराज पहली बार मजबूत तरीके से मैदान में है। PK ने गांव-गांव पैदल यात्राएं की हैं और युवा व ग्रामीण वोटों में पैठ बनाने की कोशिश की है। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी भी बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही है। हालांकि उसका प्रभाव इतना नहीं दिखता कि चुनावी नतीजे पर असर डाले। सीमांचल में ओवैसी की AIMIM पहले ही असर दिखा चुकी है। 2020 में उन्होंने पांच सीटें जीती थीं।
निर्णायक भूमिका में भी

निर्णायक भूमिका में छोटे दलबिहार की राजनीति जातियों के सामाजिक संतुलन पर आधारित है। VIP का निषाद समुदाय पर प्रभाव, HAM का दलित-महादलित समूहों में आधार, LJP (R) का पासवान मतदाताओं पर असर, RLM का पिछड़ों में नेटवर्क और सीपीआई-एमएल पर ग्रामीण मजदूर तबकों का विश्वास - यही जीत की निर्णायक कुंजी है। यह चुनाव बताता है कि छोटे दल अब केवल गठबंधन की शोभा नहीं, निर्णायक भूमिका में हैं। अगर परिणाम बराबरी का रहा तो सत्ता का ताला उन्हीं की चाबी से खुलेगा।
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