नई दिल्ली: अगर आप एक्सपोर्ट से जुड़ा कारोबार शुरू करने का प्लान बना रहे हैं तो PlayVerse कंपनी के फाउंडर जैनील ए की यह पोस्ट आपकी आंखें खोल देगी। इन्होंने लिंक्डइन पर अपने अनुभव की एक लंबी-चौड़ी पोस्ट की है। इसमें इन्होंने बताया है कि एक्सपोर्ट के कारोबार के दौरान उन्हें किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। साथ ही जैनील ने आत्मनिर्भर भारत और मेड इन इंडिया जैसी स्कीमों पर भी सवाल खड़े किए हैं।
जैनील ने अपनी पोस्ट में बताया है कि उन्हें एक्सपोर्ट के कारोबार के दौरान 80 हजार डॉलर (करीब 70 लाख रुपये) का नुकसान हुआ। वहीं उन्हें करीब 2 साल का टॉर्चर भी झेलना पड़ा। उन्होंने अपनी पोस्ट में बताया है कि पहली बार एक्सपोर्ट का कारोबार करने वालों के लिए जमीनी हकीकत लालफीताशाही, नियमों की गड़बड़ी और सजा जैसी जांचों से भरी है। यह तब और परेशानीभरी हो जाती है जब कारोबार के दौरान कुछ गलत हो जाता है।
सरकारी नारों को बताया बुरे सपने जैसाजैनील ने अपनी पोस्ट में सरकार द्वारा अक्सर दिखाई जाने वाली निर्यात की चमकदार तस्वीर को तोड़ दिया है। उनका कहना है कि 'मेड इन इंडिया' और 'निर्यात विविधता' जैसे नारे भले ही नीतिगत चर्चाओं में छाए रहें, लेकिन नए निर्यातकों के लिए यह अनुभव 'एक बुरा सपना' है।
उन्होंने लिखा है कि सबसे पहली दिक्कत है कागजी कार्रवाई और सरकारी झंझट। भारत से सामान बाहर भेजने के लिए बहुत ज्यादा कागजात लगते हैं। और मजे की बात ये है कि हर पोर्ट (जैसे मुंबई या मुंद्रा) के लिए आपको ये सब अलग से करना पड़ता है। वह बताते हैं, 'इतना ही नहीं अगर आप सामान भेजने का तरीका बदलते हैं, जैसे समुद्री जहाज की जगह हवाई जहाज से भेजते हैं तो भी आपको ये पूरी प्रक्रिया फिर से करनी पड़ती है। जबकि आपके पास IEC सर्टिफिकेट और AD कोड जैसी जरूरी चीज़ें पहले से ही होती हैं!'
पेमेंट को लेकर भी टेंशनवह अपनी पोस्ट में विदेश से आने वाली पेमेंट की टेंशन को लेकर भी बताते हैं। वह कहते हैं कि पेमेंट लेने की बात आती है तो चीजें और भी बदतर हो जाती हैं। जैनील के अनुसार एक्सपोर्ट पर मिलने वाले जीएसटी ऑफसेट (जहां लागू हो) या सब्सिडी के लिए भी खूब कागजात लगते हैं। कई बार तो अप्रूवल के लिए बार-बार फॉलो-अप करना पड़ता है। इससे काम धीमा हो जाता है और नकदी प्रवाह प्रभावित होता है। उन्होंने कहा, 'भारत में पैसा लाने में दिक्कतें आती हैं।' जैनील ने लिखा है, अगर आप उन बदकिस्मत लोगों में से हैं जिनके पैसे फंस गए, तो समझ लीजिए कि आपका काम खत्म।
बताया अपने नुकसान का अनुभवजैनील ने अपना एक अनुभव शेयर किया है। उन्होंने लिखा है, 'साल 2016 की बात है। मेरे पिछले बिजनेस में हमने कनाडा की एक जानी-मानी कंपनी Nerd Block को एक शिपमेंट भेजा था। दुर्भाग्य से वो कंपनी दिवालिया हो गई और कनाडा के दिवालियापन कानूनों के तहत बंद हो गई। हमें अपना 80,000 डॉलर (करीब 70 लाख रुपये) का नुकसान तो हुआ ही, लेकिन अगले 2 साल तक RBI को ये समझाना कि हमारा सामान तो बाहर चला गया पर पैसा क्यों नहीं आया, एक बुरे सपने जैसा था।' उन्होंने लिखा, 'हमें RBI से 2 साल तक जो टॉर्चर झेलना पड़ा, वह अपने आप में एक बुरा सपना था।'
पीयूष गोयल को किया पोस्टजैनील ने अपनी पोस्ट की शुरुआत में ही कॉमर्स मिनिस्टर पीयूष गोयल को टैग किया है। साथ ही उन्होंने पोस्ट में लास्ट में लिखा है, 'यह पोस्ट एक छोटी सी कोशिश है उन लोगों तक आवाज पहुंचाने की जो बदलाव ला सकते हैं। कृपया किसी ऐसे ब्यूरोक्रेट या कॉमर्स मिनिस्ट्री के अधिकारी को टैग करें जो शायद इस अनावश्यक रुकावट को दूर करने में मदद कर सकें!'
जैनील ने अपनी पोस्ट में बताया है कि उन्हें एक्सपोर्ट के कारोबार के दौरान 80 हजार डॉलर (करीब 70 लाख रुपये) का नुकसान हुआ। वहीं उन्हें करीब 2 साल का टॉर्चर भी झेलना पड़ा। उन्होंने अपनी पोस्ट में बताया है कि पहली बार एक्सपोर्ट का कारोबार करने वालों के लिए जमीनी हकीकत लालफीताशाही, नियमों की गड़बड़ी और सजा जैसी जांचों से भरी है। यह तब और परेशानीभरी हो जाती है जब कारोबार के दौरान कुछ गलत हो जाता है।
सरकारी नारों को बताया बुरे सपने जैसाजैनील ने अपनी पोस्ट में सरकार द्वारा अक्सर दिखाई जाने वाली निर्यात की चमकदार तस्वीर को तोड़ दिया है। उनका कहना है कि 'मेड इन इंडिया' और 'निर्यात विविधता' जैसे नारे भले ही नीतिगत चर्चाओं में छाए रहें, लेकिन नए निर्यातकों के लिए यह अनुभव 'एक बुरा सपना' है।
उन्होंने लिखा है कि सबसे पहली दिक्कत है कागजी कार्रवाई और सरकारी झंझट। भारत से सामान बाहर भेजने के लिए बहुत ज्यादा कागजात लगते हैं। और मजे की बात ये है कि हर पोर्ट (जैसे मुंबई या मुंद्रा) के लिए आपको ये सब अलग से करना पड़ता है। वह बताते हैं, 'इतना ही नहीं अगर आप सामान भेजने का तरीका बदलते हैं, जैसे समुद्री जहाज की जगह हवाई जहाज से भेजते हैं तो भी आपको ये पूरी प्रक्रिया फिर से करनी पड़ती है। जबकि आपके पास IEC सर्टिफिकेट और AD कोड जैसी जरूरी चीज़ें पहले से ही होती हैं!'
पेमेंट को लेकर भी टेंशनवह अपनी पोस्ट में विदेश से आने वाली पेमेंट की टेंशन को लेकर भी बताते हैं। वह कहते हैं कि पेमेंट लेने की बात आती है तो चीजें और भी बदतर हो जाती हैं। जैनील के अनुसार एक्सपोर्ट पर मिलने वाले जीएसटी ऑफसेट (जहां लागू हो) या सब्सिडी के लिए भी खूब कागजात लगते हैं। कई बार तो अप्रूवल के लिए बार-बार फॉलो-अप करना पड़ता है। इससे काम धीमा हो जाता है और नकदी प्रवाह प्रभावित होता है। उन्होंने कहा, 'भारत में पैसा लाने में दिक्कतें आती हैं।' जैनील ने लिखा है, अगर आप उन बदकिस्मत लोगों में से हैं जिनके पैसे फंस गए, तो समझ लीजिए कि आपका काम खत्म।
बताया अपने नुकसान का अनुभवजैनील ने अपना एक अनुभव शेयर किया है। उन्होंने लिखा है, 'साल 2016 की बात है। मेरे पिछले बिजनेस में हमने कनाडा की एक जानी-मानी कंपनी Nerd Block को एक शिपमेंट भेजा था। दुर्भाग्य से वो कंपनी दिवालिया हो गई और कनाडा के दिवालियापन कानूनों के तहत बंद हो गई। हमें अपना 80,000 डॉलर (करीब 70 लाख रुपये) का नुकसान तो हुआ ही, लेकिन अगले 2 साल तक RBI को ये समझाना कि हमारा सामान तो बाहर चला गया पर पैसा क्यों नहीं आया, एक बुरे सपने जैसा था।' उन्होंने लिखा, 'हमें RBI से 2 साल तक जो टॉर्चर झेलना पड़ा, वह अपने आप में एक बुरा सपना था।'
पीयूष गोयल को किया पोस्टजैनील ने अपनी पोस्ट की शुरुआत में ही कॉमर्स मिनिस्टर पीयूष गोयल को टैग किया है। साथ ही उन्होंने पोस्ट में लास्ट में लिखा है, 'यह पोस्ट एक छोटी सी कोशिश है उन लोगों तक आवाज पहुंचाने की जो बदलाव ला सकते हैं। कृपया किसी ऐसे ब्यूरोक्रेट या कॉमर्स मिनिस्ट्री के अधिकारी को टैग करें जो शायद इस अनावश्यक रुकावट को दूर करने में मदद कर सकें!'
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