नई दिल्ली: भारत ने अगर रूस से तेल खरीदना कम कर दिया तो यह अमेरिका की चाल को सही साबित करेगा। इतना ही नहीं, यह चीन और भारत की छवि को लेकर भी बहुत बड़ा अंतर पैदा कर देगा। भू-राजनीतिक एक्सपर्ट ब्रह्मा चेलानी ने इस पूरे गणित को समझाया है। उन्होंने बताया कि अमेरिका ने भारत को खास तौर पर निशाना बनाया। जबकि जापान, तुर्की और यूरोपीय संघ (ईयू) जैसे देश अभी भी रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहे हैं। अमेरिका का मानना है कि भारत उसके दबाव में आ जाता है।
चेलानी ने कहा, 'भारत को रूस से तेल खरीदने के कारण अमेरिका के सेकेंडरी टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, यूरोपीय संघ, जापान और तुर्की अभी भी रूस से बड़ी मात्रा में ऊर्जा खरीद रहे हैं। अगर खबरें सही हैं कि नई दिल्ली रूस से तेल आयात में भारी कटौती करने की योजना बना रही है तो यह वाशिंगटन के इस कैलकुलेशन को सही साबित करेगा कि चीन के उलट भारत अभी भी अमेरिकी दबाव के आगे झुकने को तैयार है। ठीक वैसे ही जैसे उसने 2019 में ईरान से तेल आयात पूरी तरह बंद कर दिया था।'
आयात कम करने वाली हैं भारतीय रिफाइनरियां
पिछले महीने की रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय रिफाइनरियां दो प्रमुख रूसी तेल उत्पादकों पर नए अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन करने के लिए रूस से तेल का आयात काफी कम करने वाली हैं। यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब भारत को अमेरिका को निर्यात पर 50% का भारी टैरिफ देना पड़ रहा है। इसमें से आधा टैरिफ रूस से तेल खरीदने की वजह से ही लगाया गया है। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत जारी है। इस समझौते के तहत अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर देता है तो उस पर लगने वाले टैरिफ को कम किया जा सकता है।
रूस के 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद भारत रूस से रियायती दर पर मिलने वाले समुद्री तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया था। इस साल के पहले नौ महीनों में भारत ने लगभग 17 लाख बैरल प्रति दिन रूसी तेल खरीदा।
गहरे असमंजस में फंसी हैं कंपनियां अमेरिकी प्रतिबंध विशेष रूप से रूस की दो सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनियों लुकोइल और रोसनेफ्ट को निशाना बना रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, भारत की निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने रूस से तेल का आयात कम करने या पूरी तरह बंद करने की योजना बनाई है। इसमें रोसनेफ्ट के साथ हुए बड़े लंबे समय के सौदे के तहत तेल की खरीद को भी रोकना शामिल है। रिलायंस रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीदती है।
एक सूत्र ने बताया कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भारत की सरकारी तेल रिफाइनरियां जैसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (बीपीसी) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (एचपी) भी अपने रूसी तेल व्यापार से जुड़े दस्तावेजों की समीक्षा कर रही हैं। वे यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि रोसनेफ्ट और लुकोइल से सीधे कोई भी तेल सप्लाई न हो। भारत के तेल मंत्रालय और सरकारी रिफाइनरियों ने इस मामले पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
चेलानी ने कहा, 'भारत को रूस से तेल खरीदने के कारण अमेरिका के सेकेंडरी टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, यूरोपीय संघ, जापान और तुर्की अभी भी रूस से बड़ी मात्रा में ऊर्जा खरीद रहे हैं। अगर खबरें सही हैं कि नई दिल्ली रूस से तेल आयात में भारी कटौती करने की योजना बना रही है तो यह वाशिंगटन के इस कैलकुलेशन को सही साबित करेगा कि चीन के उलट भारत अभी भी अमेरिकी दबाव के आगे झुकने को तैयार है। ठीक वैसे ही जैसे उसने 2019 में ईरान से तेल आयात पूरी तरह बंद कर दिया था।'
आयात कम करने वाली हैं भारतीय रिफाइनरियां
पिछले महीने की रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय रिफाइनरियां दो प्रमुख रूसी तेल उत्पादकों पर नए अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन करने के लिए रूस से तेल का आयात काफी कम करने वाली हैं। यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब भारत को अमेरिका को निर्यात पर 50% का भारी टैरिफ देना पड़ रहा है। इसमें से आधा टैरिफ रूस से तेल खरीदने की वजह से ही लगाया गया है। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत जारी है। इस समझौते के तहत अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर देता है तो उस पर लगने वाले टैरिफ को कम किया जा सकता है।
रूस के 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद भारत रूस से रियायती दर पर मिलने वाले समुद्री तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया था। इस साल के पहले नौ महीनों में भारत ने लगभग 17 लाख बैरल प्रति दिन रूसी तेल खरीदा।
गहरे असमंजस में फंसी हैं कंपनियां अमेरिकी प्रतिबंध विशेष रूप से रूस की दो सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनियों लुकोइल और रोसनेफ्ट को निशाना बना रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, भारत की निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने रूस से तेल का आयात कम करने या पूरी तरह बंद करने की योजना बनाई है। इसमें रोसनेफ्ट के साथ हुए बड़े लंबे समय के सौदे के तहत तेल की खरीद को भी रोकना शामिल है। रिलायंस रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीदती है।
एक सूत्र ने बताया कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भारत की सरकारी तेल रिफाइनरियां जैसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (बीपीसी) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (एचपी) भी अपने रूसी तेल व्यापार से जुड़े दस्तावेजों की समीक्षा कर रही हैं। वे यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि रोसनेफ्ट और लुकोइल से सीधे कोई भी तेल सप्लाई न हो। भारत के तेल मंत्रालय और सरकारी रिफाइनरियों ने इस मामले पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
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