पेरिस: फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की एक सोशल मीडिया पोस्ट ने दुनिया को हैरान कर दिया है। गुरुवार को उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर घोषणा की कि उनका देश सितम्बर में फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देगा। हालांकि, अब तक 140 देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं, लेकिन फ्रांस की घोषणा इसलिए खास है क्योंकि वह ऐसा करने वाला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और G7 समूह का पहला देश है। फ्रांस की मान्यता की उम्मीद कई महीनों से की जा रही थी, लेकिन इस तरह से घोषणा की इसकी उम्मीद नहीं थी। इसे इजरायल के लिए बहुत बड़े झटके की तरह देखा जा रहा है। आइए फ्रांस की इस घोषणा की वजह समझते हैं।
सीएनएन के एक विश्लेषण में कहा गया है कि इमैनुएल मैक्रों को लगता है कि यह कार्रवाई करने का समय है। पिछले कुछ समय में गाजा में बढ़े मानवीय संकट से मैक्रों परेशान है। फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी के नेता शुक्रवार को गाजा में मानवीय संकट पर तत्काल कार्रवाई की मांग को लेकर बयान देने वाले हैं। मई से अब तक भोजन के लिए इंतजार कर रहे एक हजार से अधिक गाजावासी गोलीबारी में मारे गए हैं। वहीं, अब भुखमरी से भी मौतें रिपोर्ट की जा रही हैं। गाजा में कंकाल से दिखने वाले, भूख से तड़पते लोगों और बच्चों की तस्वीरों ने पश्चिमी देशों को झकझोर दिया है।
मैक्रों के फैसले के बाद आगे क्या?
मैक्रों का यह फैसला एक साहसिक कदम है, जो प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के लिए भी ऐसा करने के लिए रास्ता खोल सकता है। मैक्रों की घोषणा के बाद गुरुवार को फ्रांसीसी राष्ट्रपति कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सीएनएन से बताया कि फ्रांस के अन्य सहयोगियों ने भी फोन पर बात की है और पूरा यकीन है कि सितम्बर में फिलिस्तीन को मान्यता देने वाला फ्रांस अकेला नहीं होगा। फ्रांस के बाद अब सभी की नजरें ब्रिटेन और शायद जर्मनी पर भी टिकी होंगी। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल के सबसे करीबी सहयोगी अमेरिका के ऐसा करने की संभावना असंभव लगती है।
फ्रांस के फैसले पर भड़का नाराज
हालांकि, जमीनी स्तर पर फ्रांस के इस फैसले से शायद ज्यादा बदलाव नहीं आएगा। हमास ने इसका स्वागत करते हुए सकारात्मक कदम बताया। वहीं, इजरायल को इस फैसले ने नाराज कर दिया। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे आतंकवाद को इनाम बताया है। वहीं, दूसरे मंत्रियों ने कहा कि यह कदम अब पश्चिमी तट के आधिकारिक विलय को उचित ठहराता है।
अमेरिका ने क्या कहा?
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि अमेरिका मैक्रों की योजना को पूरी तरह से खारिज करता है। उन्होंने एक्स पर लिखा, 'यह लापरवाही भर फैसला केवल हमास के दुष्प्रचार को बढ़ावा देता है और शांति को बाधित करता है। यह 7 अक्टूबर के पीड़ितों के मुंह पर तमाचा है।' फ्रांस की अकेले की घोषणा से मैक्रों की हताशा का संकेत मिलता है। एक पहले ही इसके संकेत मिलने लगे थे कि फ्रांस फिलिस्तीन को मान्यता देगा। सऊदी अरब के साथ मिलकर 17 से 20 जून तक रियाद में एक शिखर सम्मेलन आयोजित करने की योजना थी, लेकिन 13 जून को इजरायल और ईरान के बीच युद्ध शुरू हो जाने पर योजना रद्द हो गई।
सीएनएन के एक विश्लेषण में कहा गया है कि इमैनुएल मैक्रों को लगता है कि यह कार्रवाई करने का समय है। पिछले कुछ समय में गाजा में बढ़े मानवीय संकट से मैक्रों परेशान है। फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी के नेता शुक्रवार को गाजा में मानवीय संकट पर तत्काल कार्रवाई की मांग को लेकर बयान देने वाले हैं। मई से अब तक भोजन के लिए इंतजार कर रहे एक हजार से अधिक गाजावासी गोलीबारी में मारे गए हैं। वहीं, अब भुखमरी से भी मौतें रिपोर्ट की जा रही हैं। गाजा में कंकाल से दिखने वाले, भूख से तड़पते लोगों और बच्चों की तस्वीरों ने पश्चिमी देशों को झकझोर दिया है।
मैक्रों के फैसले के बाद आगे क्या?
मैक्रों का यह फैसला एक साहसिक कदम है, जो प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के लिए भी ऐसा करने के लिए रास्ता खोल सकता है। मैक्रों की घोषणा के बाद गुरुवार को फ्रांसीसी राष्ट्रपति कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सीएनएन से बताया कि फ्रांस के अन्य सहयोगियों ने भी फोन पर बात की है और पूरा यकीन है कि सितम्बर में फिलिस्तीन को मान्यता देने वाला फ्रांस अकेला नहीं होगा। फ्रांस के बाद अब सभी की नजरें ब्रिटेन और शायद जर्मनी पर भी टिकी होंगी। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल के सबसे करीबी सहयोगी अमेरिका के ऐसा करने की संभावना असंभव लगती है।
फ्रांस के फैसले पर भड़का नाराज
हालांकि, जमीनी स्तर पर फ्रांस के इस फैसले से शायद ज्यादा बदलाव नहीं आएगा। हमास ने इसका स्वागत करते हुए सकारात्मक कदम बताया। वहीं, इजरायल को इस फैसले ने नाराज कर दिया। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे आतंकवाद को इनाम बताया है। वहीं, दूसरे मंत्रियों ने कहा कि यह कदम अब पश्चिमी तट के आधिकारिक विलय को उचित ठहराता है।
अमेरिका ने क्या कहा?
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि अमेरिका मैक्रों की योजना को पूरी तरह से खारिज करता है। उन्होंने एक्स पर लिखा, 'यह लापरवाही भर फैसला केवल हमास के दुष्प्रचार को बढ़ावा देता है और शांति को बाधित करता है। यह 7 अक्टूबर के पीड़ितों के मुंह पर तमाचा है।' फ्रांस की अकेले की घोषणा से मैक्रों की हताशा का संकेत मिलता है। एक पहले ही इसके संकेत मिलने लगे थे कि फ्रांस फिलिस्तीन को मान्यता देगा। सऊदी अरब के साथ मिलकर 17 से 20 जून तक रियाद में एक शिखर सम्मेलन आयोजित करने की योजना थी, लेकिन 13 जून को इजरायल और ईरान के बीच युद्ध शुरू हो जाने पर योजना रद्द हो गई।
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