नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने एक बड़ा फैसला लिया है। आरबीआई ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सरकार को 2.69 लाख करोड़ रुपये (करीब 40.5 अरब डॉलर) का डिविडेंड देने का ऐलान किया है। यह रकम पिछले साल के मुकाबले 27.4 फीसद ज्यादा है। आरबीआई के केंद्रीय निदेशक मंडल ने यह निर्णय एक बैठक में लिया। इस 'गिफ्ट' से सरकार को अमेरिका के टैरिफ और पाकिस्तान के साथ संघर्ष के कारण बढ़े खर्चों से निपटने में मदद मिलेगी। यह रकम आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक दोनों के उस कर्ज की पूरी रकम से कहीं ज्यादा है जो भिखारी पाकिस्तान को कई सालों में मिलने वाले हैं। दोनों अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से पाकिस्तान कुल मिलाकर 27 अरब डॉलर (करीब 2.29 लाख करोड़ रुपये) ठगने वाला है। हाल में उसे आईएमएफ से 1.4 अरब डॉलर यानी करीब 12 हजार करोड़ रुपये का कर्ज मिला है। नई किस्त के साथ उसे आईएमएफ से 2.1 अरब डॉलर मिल चुके हैं। बेलआउट पैकेज के तौर पर पाकिस्तान को आईएमएफ से 7 अरब डॉलर मिलने हैं। वहीं, वर्ल्ड बैंक भी उसे 10 सालों में 20 अरब डॉलर देने वाला है। इस कर्ज की समीक्षा अगले महीने हो सकती है। इस पर जनवरी में सहमति बनी थी। यह भी वह रकम है जो पाकिस्तान के हाथ में अभी आई नहीं है। आरबीआई ने सरकार को रिकॉर्ड 2.69 लाख करोड़ रुपये यानी 2.69 ट्रिलियन का डिविडेंड देने का फैसला किया है। यह फैसला आरबीआई के केंद्रीय निदेशक मंडल की 616वीं बैठक में लिया गया। बैठक की अध्यक्षता गवर्नर संजय मल्होत्रा ने की। इस लाभांश से सरकार को काफी मदद मिलेगी। खासकर तब जब अमेरिका ने टैरिफ बढ़ा दिया है। वहीं, पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण रक्षा खर्च भी बढ़ गया है। पिछली बार सरकार को मिले थे 2.1 लाख करोड़ रुपयेपिछले साल यानी वित्त वर्ष 2023-24 में आरबीआई ने सरकार को 2.1 लाख करोड़ रुपये का डिविडेंड दिया था। उससे पहले वित्त वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा 87,416 करोड़ रुपये था। इस बार लाभांश की रकम काफी ज्यादा है।आरबीआई ने एक बयान में कहा कि निदेशक मंडल ने दुनियाभर की और देश की आर्थिक स्थिति पर विचार किया। उन्होंने यह भी देखा कि इन स्थितियों से क्या खतरे हो सकते हैं।बैठक में निदेशक मंडल ने अप्रैल 2024 से मार्च 2025 के दौरान आरबीआई के कामकाज पर भी बात की। उन्होंने साल 2024-25 के लिए आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट और वित्तीय विवरणों को भी मंजूरी दी।आरबीआई ने कहा, 'केंद्रीय निदेशक मंडल ने लेखा वर्ष 2024-25 के लिए केंद्र सरकार को सरप्लस के रूप में 2,68,590.07 करोड़ रुपये के ट्रांसफर को मंजूरी दी।' इसका मतलब है कि आरबीआई सरकार को इतनी बड़ी रकम देगी। कैसे तय की गई यह रकमआरबीआई ने यह भी बताया कि वित्त वर्ष 2024-25 के लिए यह रकम कैसे तय की गई। यह संशोधित आर्थिक पूंजी ढांचे (ईसीएफ) के आधार पर तय की गई है। केंद्रीय बोर्ड ने 15 मई, 2025 को हुई बैठक में इस संशोधित ईसीएफ को मंजूरी दी थी।संशोधित ढांचे में यह नियम है कि आकस्मिक जोखिम बफर (सीआरबी) के तहत जोखिम प्रावधान को आरबीआई के बही-खाते के 7.50 से 4.50 फीसदी के बीच रखा जाना चाहिए। इसका मतलब है कि आरबीआई को कुछ पैसा अलग से रखना होता है ताकि अगर कोई मुश्किल आए तो उसका सामना किया जा सके।आरबीआई ने कहा कि संशोधित ईसीएफ के आधार पर और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय निदेशक मंडल ने आकस्मिक जोखिम बफर को और बढ़ाकर 7.50 फीसदी करने का फैसला किया है। यानी आरबीआई अब और ज्यादा पैसा अलग रखेगा।पहले, लेखा वर्ष 2018-19 से 2021-22 के दौरान जब देश में आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और कोविड-19 महामारी भी थी, तब केंद्रीय बोर्ड ने विकास और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सीआरबी को रिजर्व बैंक के बहीखाते के 5.50 फीसदी पर बनाए रखने का निर्णय लिया था।हालांकि, वित्त वर्ष 2022-23 के लिए सीआरबी को बढ़ाकर छह फीसदी और वित्त वर्ष 2023-24 के लिए 6.50 फीसदी कर दिया गया था। धीरे-धीरे, आरबीआई ने इस बफर को बढ़ाया है।आरबीआई ने फिर से कहा कि संशोधित ईसीएफ के आधार पर और व्यापक आर्थिक आकलन को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय बोर्ड ने सीआरबी को 7.50 फीसदी तक बढ़ाने का फैसला किया।सरकार ने यह अनुमान लगाया था कि उसे आरबीआई, राष्ट्रीयकृत बैंकों और वित्तीय संस्थानों से वित्त वर्ष 2025-26 के लिए लाभांश/अधिशेष के तौर पर 2.56 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे।सरकार चाहती है कि चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा पिछले वित्त वर्ष के अनुमानित 4.8 फीसदी से घटकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.4 फीसदी पर आ जाए। राजकोषीय घाटा का मतलब है कि सरकार को अपनी कमाई से ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है। सरकार इसे कम करना चाहती है। अनुमान से ज्यादा है रकम रेटिंग एजेंसी इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने आरबीआई के डिविडेंड भुगतान संबंधी फैसले पर कहा कि यह अधिशेष हस्तांतरण वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में अनुमानित राशि से लगभग 40000-50000 करोड़ रुपये अधिक है।नायर ने कहा, 'इसका मतलब है कि गैर-कर राजस्व में समान बढ़ोतरी होगी, जिससे करों या विनिवेश प्राप्तियों में कमी या वित्त वर्ष में बजट से अधिक व्यय की भरपाई के लिए कुछ गुंजाइश बनेगी। इससे राजकोषीय मोर्चे पर कुछ राहत मिलती है।' इसका मतलब है कि सरकार को कुछ और पैसे मिलेंगे, जिससे उसे बजट में मदद मिलेगी।संशोधित ईसीएफ के बारे में और जानकारी देते हुए आरबीआई ने कहा कि बाजार जोखिम बफर आवश्यकता की गणना के लिए एक नया तरीका अपनाया जाएगा। इसमें बहीखाता का हिस्सा नहीं रहे बिंदुओं को भी शामिल किया जाएगा।आरबीआई के मुताबिक, बाजार जोखिम बफर की गणना में छोटी मुद्राओं में विदेशी मुद्रा आस्तियों में निवेश भी शामिल हो सकता है।हालांकि, संशोधित ईसीएफ कहती है कि यदि उपलब्ध इक्विटी अपनी जरूरत की निचली सीमा से कम है तो जरूरी वास्तविक इक्विटी के न्यूनतम स्तर तक न पहुंचने तक सरकार को कोई भी अधिशेष हस्तांतरित नहीं किया जाएगा। इसका मतलब है कि अगर आरबीआई के पास पर्याप्त पैसा नहीं है तो वह सरकार को लाभांश नहीं देगा।आरबीआई का यह फैसला सरकार के लिए बहुत फायदेमंद है। इससे सरकार को अपने खर्चों को पूरा करने में मदद मिलेगी और देश की आर्थिक स्थिति भी बेहतर होगी।
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