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अगर आप अपनी जन्मपत्री के ग्रहों के विपरीत आचरण करते हैं तो ग्रह हो जाते हैं आपके निष्क्रिय

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जन्मपत्री में बैठे ग्रह आपकी क्षमताओं को बताते हैं, संभावनाओं को व्यक्त करते हैं, पर उन्हें शक्ति तब मिलती है जब आप उनके अनुरूप कार्य-व्यवहार करते हैं, लेकिन जब किसी कारणवश आप ग्रहों के विपरीत आचरण करते हैं, तो ग्रह भी अपना शुभ फल देने में असमर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए अगर किसी व्यक्ति की जन्मपत्री में नवम भाव, जो कि धर्म और भाग्य को दर्शाता है, बलवान हो अथवा उस व्यक्ति का गुरु ग्रह बलवान, उच्च का हो, लेकिन वह व्यक्ति नवम भाव की प्रवृत्ति के विपरीत अथवा बृहस्पति ग्रह की प्रवृत्ति के विपरीत आचरण करे, तो भले ही जन्मपत्री में बृहस्पति उच्च का दिखाई पड़े, परन्तु उसका फल नगण्य हो जाता है।



ज्योतिष में वर्षों के शोध के दौरान यह आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं। ज्योतिष शोधार्थियों के अनुसार, ग्रह तो संकेत देेते हैं, पर उनका फल व्यक्ति के कर्म से आता है। जैसे नवम भाव का धर्म केवल शब्दों में हो और कर्म में न उतरे तो यह उसके फल की निष्क्रियता है।



ग्रहों के द्वारा दिए संकेतों और सम्भावनाओं के विपरीत आचरण करना, यही कारण है कि लोगों को अपनी जन्मपत्री में ग्रहों के अनुसार शुभ फल नहीं प्राप्त हो रहा। जन्मपत्री का चमत्कार तभी प्रकट होता है जब जीवन के निर्णय, सोच और व्यवहार, उसके संकेतों के अनुरूप चलें। धार्मिकता, सेवा, संबंध, ज्ञान, सबका मूल्य तब है जब वे जीवन में लागू हों, इसलिए हमारे ऋषि-महर्षि हमेशा संस्कार एवं धर्मयुक्त आचरण की बात करते हैं।



एक कथानक में एक धनिक सज्जन गणपति का पूजन कर रहे थे, जब पूज्य देव को वस्त्र पहनाने का समय आया, तो वह केवल औपचारिकता निभाने के लिए ‘वस्त्रार्थे अक्षतान् समर्पयामि’ कहकर अक्षत चढ़ाकर बोले, ‘देवतओं को वस्त्र की क्या अपेक्षा’। यह देखकर पास बैठे एक विद्वान पंडित ने सहज मुस्कान के साथ कहा, ‘महाराज, भगवान को वस्त्र की आवश्यकता नहीं, उन्हें तो आपके भाव प्रिय हैं, परंतु जब वचन और आचरण एक हो, तभी पूजा पूर्ण मानी जाती है, केवल शब्दों में नहीं, कर्म में भी भक्ति प्रकट होनी चाहिए।’ पंडित जी ज्ञानी थे, वे दूसरों के स्वभाव और कर्मों की प्रशंसा या निन्दा नहीं करना चाहते थे। कहा भी गया है, ‘परस्वभावकर्माणि न प्रशंसेन्न गर्हयेत्’।

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