शनिवार के दिन प्रदोष व्रत होने से इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिन लोगों की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या शनि से जुड़ा कोई दोष होता है, उन्हें शनि प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए। यह व्रत शनि के कुप्रभाव को शांत करता है और जीवन में स्थिरता लाता है। शनि प्रदोष व्रत के दिन इस कथा का पाठ जरुर करना चाहिए। इसके पाठ को करने से व्रत को पूरा लाभ मिलता है।प्राचीन समय की बात है, एक निर्धन ब्राह्मण परिवार कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहा था। रोज़ी-रोटी का संकट इतना गहरा था कि ब्राह्मण की पत्नी को अपने दोनों पुत्रों के साथ दर-दर भटकना पड़ता था। अंततः एक दिन वे तीनों ऋषि शाण्डिल्य के आश्रम पहुँचे। ऋषि उन्हें देखकर करुणा से भर उठे और पूछा, “हे देवी, किस कारण तुम इतनी व्याकुल और पीड़ित दिखाई दे रही हो?”ब्राह्मण की पत्नी ने हाथ जोड़कर कहा, “हे मुनिवर, हमारा जीवन घोर कष्टों में बीत रहा है। हम अत्यंत गरीबी में दिन काट रहे हैं। मेरा बड़ा पुत्र वास्तव में एक राजकुमार है, जिसका नाम धर्म है। दुर्भाग्यवश, उसके पिता का राज्य उससे छिन गया और तब से यह मेरे पास ही रह रहा है। मेरा छोटा पुत्र शुचिव्रत अत्यंत विनम्र और धर्मनिष्ठ बालक है। कृपा करके कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे हमारे जीवन में सुख और समृद्धि लौट सके।”ऋषि शाण्डिल्य ने उनकी स्थिति को समझते हुए कहा, “हे देवी, तुम शनि प्रदोष व्रत का नियमपूर्वक पालन करो। यह व्रत भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और विशेष रूप से शनिवार के दिन आने वाला प्रदोष व्रत अत्यधिक फलदायक होता है। इस व्रत को श्रद्धा, नियम और संयम से करने से समस्त कष्टों का नाश होता है और जीवन में सुख, वैभव व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।” ब्राह्मण की पत्नी ने ऋषि के आदेश अनुसार व्रत आरंभ किया। कुछ ही समय में इसका चमत्कार सामने आने लगा। एक दिन छोटा पुत्र शुचिव्रत खेलते-खेलते गांव के समीप एक पुराने कुएं के पास गया। वहां उसे एक कलश मिला, जो सोने के सिक्कों से भरा हुआ था। यह देखकर परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर गई।इसी बीच, बड़े पुत्र धर्म की भेंट एक दिव्य सौंदर्य वाली कन्या से हुई। वह कन्या एक गंधर्व की पुत्री थी, जिसका नाम अंशुमति था और उसके पिता विद्रविक नामक प्रतिष्ठित गंधर्व थे। धर्म और अंशुमति एक दूसरे को देखकर मोहित हो गए। अंशुमति ने धर्म से अपना परिचय दिया और यह बताया कि वह भी शिवभक्त है और प्रदोष व्रत का पालन करती है।कुछ ही समय में भगवान शिव ने गंधर्व पिता विद्रविक को स्वप्न में आदेश दिया कि वे अपनी पुत्री का विवाह धर्म से करें, क्योंकि वह एक योग्य, धर्मनिष्ठ और शिवभक्त युवक है। विद्रविक ने प्रभु की आज्ञा का पालन किया और धूमधाम से अंशुमति का विवाह धर्म से करवा दिया। विवाह के पश्चात धर्म को उसका राजपाट पुनः प्राप्त हुआ और उसका जीवन सुख, समृद्धि और यश से भर गया। इस प्रकार, शनि प्रदोष व्रत की महिमा से एक निर्धन ब्राह्मण परिवार का भाग्य पूरी तरह बदल गया। इस व्रत की महत्ता यह है कि यह न केवल आर्थिक संकटों को दूर करता है, बल्कि जीवन में खोया हुआ यश, सम्मान, वैभव और वैवाहिक सुख भी प्रदान करता है।
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