पाकिस्तान बड़ी मुश्किल में फंसने जा रहा है। वह दो नावों पर सवार हो गया है। चीन उसका ‘ऑल वेदर फ्रेंड’ है और पाकिस्तान को सबसे अधिक हथियार बेचता है। दूसरी ओर अमेरिका है, जो पाकिस्तान की इकॉनमी को स्थिरता देने में मदद कर रहा है। उसने पाकिस्तान पर बहुत कम 19% का टैरिफ लगाया है। साथ ही, उसे आसानी से कर्ज मिले, इसमें भी मदद कर रहा है।
खुशी नहीं टिकेगी: मई में जब भारत-पाकिस्तान के बीच चंद रोज की जंग हुई, तब पड़ोसी देश की सरकार और फौज चीन से मिले समर्थन पर इतरा रही थीं। अब ट्रंप सरकार से जो अटेंशन-अहमियत मिल रही है, वे उस पर खुशी से फूले नहीं समा रहे। पाकिस्तान इस बात से भी प्रसन्न है कि भारत पर डॉनल्ड ट्रंप ने 50% का भारी-भरकम टैरिफ लगाया है, लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिकने वाली।
चीन होगा नाराज: चीन और अमेरिका ने पाकिस्तान पर इधर जो मेहरबानियां की हैं, वे जल्द ही उसकी कीमत भी वसूलना चाहेंगे। दोनों देश एक दूसरे से उलट मांगें रखेंगे, जिसे पूरा करना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं होगा। फिर अमेरिका की मांगों की वजह से पाकिस्तान का अपने पड़ोसी देशों से तनाव बढ़ सकता है, जिनमें से कइयों के साथ चीन के अच्छे संबंध हैं। इसलिए उसकी नाराजगी बढ़ेगी।
कैसी है ये उलझन
फरेबी पाकिस्तान: एक बड़ा सवाल यह है कि जिस पाकिस्तान की अमेरिका हाल के वर्षों में अनदेखी कर रहा था, उसे अचानक ट्रंप ‘शानदार सहयोगी’ क्यों बताने लगे? पिछले कार्यकाल में तो उन्होंने पाकिस्तान को झूठा और फरेबी बताया था। यह भी कहा था कि अमेरिका को उससे झूठ और फरेब के अलावा कुछ हासिल नहीं हो रहा है। इसका जवाब पाकिस्तान की अनोखी भौगोलिक स्थिति में है। उसकी सीमाएं ईरान, अफगानिस्तान और चीन से भी लगती हैं। इसी वजह से अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA उसे पसंद कर रही है क्योंकि पाकिस्तान की धरती का इस्तेमाल करके अमेरिका इस क्षेत्र में अपने सामरिक-आर्थिक हित साध सकता है।
अमेरिका की सोच: इन तीनों देशों के अलावा पाकिस्तान का एक और पड़ोसी भारत है। अमेरिका भारत को लेकर चिंतित नहीं है। यह सच है कि अभी दोनों के बीच तनाव बढ़ा है, लेकिन यह दौर अस्थायी ही साबित होगा। ईरान की सरकार को अस्थिर करने से लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मिनरल रिजर्व पर नियंत्रण के साथ चीन को अलग-थलग करने तक अमेरिका की नीतियों से दक्षिण एशिया का सामरिक चेहरा बदल सकता है। इसका असर अमेरिका से संबंधों को लेकर भारत की सोच पर भी हो सकता है। कुछ समय पहले जब इस्राइल-अमेरिका और ईरान के बीच संघर्ष चल रहा था, उसी बीच पाकिस्तान के मिलिटरी चीफ आसिम मुनीर की ट्रंप ने एक प्राइवेट लंच पर मेजबानी की। जब इस्राइल-अमेरिका, ईरान की धार्मिक लीडरशिप को खत्म करने की कोशिश में जुटे थे, तब ट्रंप ने कहा कि उन्होंने फील्ड मार्शल मुनीर के साथ ईरान पर चर्चा की।
ईरान के खिलाफ प्लान: यहां यह सवाल उठता है कि अमेरिका, ईरान के मामले में पाकिस्तान से चाहता क्या है? अभी तक यह बात सामने नहीं आई है। क्या वह 1953 जैसा एक और ‘operation Ajax’ प्लान कर रहा है। यह ऑपरेशन CIA और MI6 ने ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्देग को हटाने के लिए लॉन्च किया था। उनकी जगह वे शाह को ईरान की सत्ता पर बिठाकर उसके तेल भंडारों को नियंत्रित करना चाहते थे। पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है, जिसकी धरती का इस्तेमाल अतीत में अमेरिका ने अफगानिस्तान में सैन्य गतिविधियों की खातिर किया है। क्या पाकिस्तान, ईरान के खिलाफ ऐसी गतिविधि के लिए तैयार होगा?
ईरान की चिंता: इस्राइल-अमेरिका के हमलों के खिलाफ रूस-चीन, ईरान का समर्थन कर रहे हैं। इसलिए अगर पाकिस्तान ऐसी हरकत करता है तो चीन उससे नाराज हो जाएगा। यही वजह है कि ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान भागे-भागे पाकिस्तान आए और उन्होंने कहा कि अगर अमेरिकी कंपनियों को उसकी सीमा से लगे बलूचिस्तान में आने दिया गया तो ईरान की सुरक्षा को खतरा पैदा होगा।
रेयर अर्थ पर नजर: हालांकि, इस इलाके में अमेरिका और चीन के बीच मिनरल रिसोर्सेज को लेकर प्रतिस्पर्धा दिख सकती है। इसमें लिथियम और रेयर अर्थ्स शामिल हो सकते हैं। अफगानिस्तान से लगे बलूचिस्तान और खैबर पखतूनख्वा में ऐसे मिनरल्स होने की उम्मीद है। लेकिन अगर इन इलाकों में अमेरिका की मौजूदगी होती है तो उसका असर ईरान, अफगानिस्तान और चीन के हितों पर पड़ेगा।
चीन की परेशानी: चीन को शक है कि अमेरिका, बलूच अलगाववादियों और तहरीक-ए-तालिबान (TTP) का इस्तेमाल पाकिस्तान में उसके हितों को निशाना बनाने के लिए करता है। सच बात यह भी है कि बलूच अलगाववादी चीन को नव-साम्राज्यवादी शक्ति बताते हैं, जिसकी नजर इलाके के खनिज संसाधनों पर है। इसी तरह, ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूमवेंट के लोग TTP में हैं, जो इस आतंकवादी संगठन को चीन के ठिकानों को निशाना बनाने के लिए उकसाते हैं।
पाक को हिदायत: उधर, दक्षिण एशिया में चीन अपना नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश कर रहा है ताकि वह अमेरिका को इससे दूर रख सके। वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आपसी रिश्ते सुधारने के लिए भी कह रहा है। सच यह भी है कि पाकिस्तान के सैन्य शासकों के संबंध अमेरिका से बेहतर ही रहे हैं, जिसकी शुरुआत अयूब खान के शासनकाल से हुई थी। पाकिस्तान में अभी फौज के इशारे पर बनी सरकार सत्ता में है और देश के सबसे लोकप्रिय नेता इमरान खान जेल में हैं। इसके लिए भी अमेरिका से पाकिस्तान ने मुहर लगवाई होगी।
(लेखक पूर्व IB ऑफिसर हैं और वह पाकिस्तान में भी तैनात रह चुके हैं)
खुशी नहीं टिकेगी: मई में जब भारत-पाकिस्तान के बीच चंद रोज की जंग हुई, तब पड़ोसी देश की सरकार और फौज चीन से मिले समर्थन पर इतरा रही थीं। अब ट्रंप सरकार से जो अटेंशन-अहमियत मिल रही है, वे उस पर खुशी से फूले नहीं समा रहे। पाकिस्तान इस बात से भी प्रसन्न है कि भारत पर डॉनल्ड ट्रंप ने 50% का भारी-भरकम टैरिफ लगाया है, लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिकने वाली।
चीन होगा नाराज: चीन और अमेरिका ने पाकिस्तान पर इधर जो मेहरबानियां की हैं, वे जल्द ही उसकी कीमत भी वसूलना चाहेंगे। दोनों देश एक दूसरे से उलट मांगें रखेंगे, जिसे पूरा करना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं होगा। फिर अमेरिका की मांगों की वजह से पाकिस्तान का अपने पड़ोसी देशों से तनाव बढ़ सकता है, जिनमें से कइयों के साथ चीन के अच्छे संबंध हैं। इसलिए उसकी नाराजगी बढ़ेगी।
कैसी है ये उलझन
- पाक की सीमा ईरान से लगती है
- अमेरिका इसका लाभ लेना चाहता है
- चीन-US दोनों को खुश कैसे रखेगा पाक
फरेबी पाकिस्तान: एक बड़ा सवाल यह है कि जिस पाकिस्तान की अमेरिका हाल के वर्षों में अनदेखी कर रहा था, उसे अचानक ट्रंप ‘शानदार सहयोगी’ क्यों बताने लगे? पिछले कार्यकाल में तो उन्होंने पाकिस्तान को झूठा और फरेबी बताया था। यह भी कहा था कि अमेरिका को उससे झूठ और फरेब के अलावा कुछ हासिल नहीं हो रहा है। इसका जवाब पाकिस्तान की अनोखी भौगोलिक स्थिति में है। उसकी सीमाएं ईरान, अफगानिस्तान और चीन से भी लगती हैं। इसी वजह से अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA उसे पसंद कर रही है क्योंकि पाकिस्तान की धरती का इस्तेमाल करके अमेरिका इस क्षेत्र में अपने सामरिक-आर्थिक हित साध सकता है।
अमेरिका की सोच: इन तीनों देशों के अलावा पाकिस्तान का एक और पड़ोसी भारत है। अमेरिका भारत को लेकर चिंतित नहीं है। यह सच है कि अभी दोनों के बीच तनाव बढ़ा है, लेकिन यह दौर अस्थायी ही साबित होगा। ईरान की सरकार को अस्थिर करने से लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मिनरल रिजर्व पर नियंत्रण के साथ चीन को अलग-थलग करने तक अमेरिका की नीतियों से दक्षिण एशिया का सामरिक चेहरा बदल सकता है। इसका असर अमेरिका से संबंधों को लेकर भारत की सोच पर भी हो सकता है। कुछ समय पहले जब इस्राइल-अमेरिका और ईरान के बीच संघर्ष चल रहा था, उसी बीच पाकिस्तान के मिलिटरी चीफ आसिम मुनीर की ट्रंप ने एक प्राइवेट लंच पर मेजबानी की। जब इस्राइल-अमेरिका, ईरान की धार्मिक लीडरशिप को खत्म करने की कोशिश में जुटे थे, तब ट्रंप ने कहा कि उन्होंने फील्ड मार्शल मुनीर के साथ ईरान पर चर्चा की।
ईरान के खिलाफ प्लान: यहां यह सवाल उठता है कि अमेरिका, ईरान के मामले में पाकिस्तान से चाहता क्या है? अभी तक यह बात सामने नहीं आई है। क्या वह 1953 जैसा एक और ‘operation Ajax’ प्लान कर रहा है। यह ऑपरेशन CIA और MI6 ने ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्देग को हटाने के लिए लॉन्च किया था। उनकी जगह वे शाह को ईरान की सत्ता पर बिठाकर उसके तेल भंडारों को नियंत्रित करना चाहते थे। पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है, जिसकी धरती का इस्तेमाल अतीत में अमेरिका ने अफगानिस्तान में सैन्य गतिविधियों की खातिर किया है। क्या पाकिस्तान, ईरान के खिलाफ ऐसी गतिविधि के लिए तैयार होगा?
ईरान की चिंता: इस्राइल-अमेरिका के हमलों के खिलाफ रूस-चीन, ईरान का समर्थन कर रहे हैं। इसलिए अगर पाकिस्तान ऐसी हरकत करता है तो चीन उससे नाराज हो जाएगा। यही वजह है कि ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान भागे-भागे पाकिस्तान आए और उन्होंने कहा कि अगर अमेरिकी कंपनियों को उसकी सीमा से लगे बलूचिस्तान में आने दिया गया तो ईरान की सुरक्षा को खतरा पैदा होगा।
रेयर अर्थ पर नजर: हालांकि, इस इलाके में अमेरिका और चीन के बीच मिनरल रिसोर्सेज को लेकर प्रतिस्पर्धा दिख सकती है। इसमें लिथियम और रेयर अर्थ्स शामिल हो सकते हैं। अफगानिस्तान से लगे बलूचिस्तान और खैबर पखतूनख्वा में ऐसे मिनरल्स होने की उम्मीद है। लेकिन अगर इन इलाकों में अमेरिका की मौजूदगी होती है तो उसका असर ईरान, अफगानिस्तान और चीन के हितों पर पड़ेगा।
चीन की परेशानी: चीन को शक है कि अमेरिका, बलूच अलगाववादियों और तहरीक-ए-तालिबान (TTP) का इस्तेमाल पाकिस्तान में उसके हितों को निशाना बनाने के लिए करता है। सच बात यह भी है कि बलूच अलगाववादी चीन को नव-साम्राज्यवादी शक्ति बताते हैं, जिसकी नजर इलाके के खनिज संसाधनों पर है। इसी तरह, ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूमवेंट के लोग TTP में हैं, जो इस आतंकवादी संगठन को चीन के ठिकानों को निशाना बनाने के लिए उकसाते हैं।
पाक को हिदायत: उधर, दक्षिण एशिया में चीन अपना नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश कर रहा है ताकि वह अमेरिका को इससे दूर रख सके। वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आपसी रिश्ते सुधारने के लिए भी कह रहा है। सच यह भी है कि पाकिस्तान के सैन्य शासकों के संबंध अमेरिका से बेहतर ही रहे हैं, जिसकी शुरुआत अयूब खान के शासनकाल से हुई थी। पाकिस्तान में अभी फौज के इशारे पर बनी सरकार सत्ता में है और देश के सबसे लोकप्रिय नेता इमरान खान जेल में हैं। इसके लिए भी अमेरिका से पाकिस्तान ने मुहर लगवाई होगी।
(लेखक पूर्व IB ऑफिसर हैं और वह पाकिस्तान में भी तैनात रह चुके हैं)
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