चंद्रकांत मौर्य, बाराबंकीः 'सुन के सीता का वचन, बान लिए राम चले, जिस तरह चांद को हमराह लिए शाम चले'... यह शेर है उस किताब का, जो रामायण का उर्दू संस्करण है। लेखक हैं बाराबंकी के 59 वर्षीय विनय बाबू, जिन्होंने किताब का नाम रखा है ‘विनय रामायण’। इसमें 24 खंड हैं, सात हजार शेर हैं।
उनका दावा है कि यह ऊर्दू भाषा में ऐसी रामायण है जो किसी भी धर्मावलंबी को एक बार पढ़ने के बाद याद हो जाएगी। हैरत की बात यह है कि बाराबंकी शहर से सटे असगरनगर मजीठा में रहने वाले विनय ने उर्दू की कोई बाकायदा तालीम हासिल नहीं की। अजीमुदीन अशरफ इस्लामियां इंटर कॉलेज में एडिमशन लिया तो शिक्षक राफे बिन खालिद के संपर्क में आए। दरअसल, राफे बिन खालिद शेर-ओ-शायरी के शौकीन थे।
वह रोज विनय को उर्दू सिखाते और अपनी गजलें पढ़ने और दुरुस्त करने को देने लगे। इससे विनय का शायरी में इंटरेस्ट जगा। वे शेर लिखने लगे। एक मुशायरे में मंच मिला तो सिलसिला चल निकला। फिर प्रख्यात शायर अजीज बाराबंकवी को गुरु बनाकर उर्दू शायरी में निखार लाना शुरू कर दिया। साल 1981 में उनके दोस्तों उर्दू में रामायण लिखने का मशविरा दिया। लिखना शुरू किया तो तमाम दिक्कतें आईं लेकिन उन्हें लिखना नहीं छोड़ा। साल 2024 में किताब पूरी हुई और उन्होंने उसका नाम रखा ‘विनय रामायण’। विनय की इच्छा है कि इसका विमोचन राज्यपाल करें। इसके अलावा उन्होंने साल 1985 में शिकस्ता ख्वाब लिखी। उनकी आत्मकथा ‘नर्गिस’ अभी प्रकाशित होनी है।
उनका दावा है कि यह ऊर्दू भाषा में ऐसी रामायण है जो किसी भी धर्मावलंबी को एक बार पढ़ने के बाद याद हो जाएगी। हैरत की बात यह है कि बाराबंकी शहर से सटे असगरनगर मजीठा में रहने वाले विनय ने उर्दू की कोई बाकायदा तालीम हासिल नहीं की। अजीमुदीन अशरफ इस्लामियां इंटर कॉलेज में एडिमशन लिया तो शिक्षक राफे बिन खालिद के संपर्क में आए। दरअसल, राफे बिन खालिद शेर-ओ-शायरी के शौकीन थे।
वह रोज विनय को उर्दू सिखाते और अपनी गजलें पढ़ने और दुरुस्त करने को देने लगे। इससे विनय का शायरी में इंटरेस्ट जगा। वे शेर लिखने लगे। एक मुशायरे में मंच मिला तो सिलसिला चल निकला। फिर प्रख्यात शायर अजीज बाराबंकवी को गुरु बनाकर उर्दू शायरी में निखार लाना शुरू कर दिया। साल 1981 में उनके दोस्तों उर्दू में रामायण लिखने का मशविरा दिया। लिखना शुरू किया तो तमाम दिक्कतें आईं लेकिन उन्हें लिखना नहीं छोड़ा। साल 2024 में किताब पूरी हुई और उन्होंने उसका नाम रखा ‘विनय रामायण’। विनय की इच्छा है कि इसका विमोचन राज्यपाल करें। इसके अलावा उन्होंने साल 1985 में शिकस्ता ख्वाब लिखी। उनकी आत्मकथा ‘नर्गिस’ अभी प्रकाशित होनी है।
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