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Cryptocurrency: क्रिप्टोकरेंसी को लेकर मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- इसे संपत्ति माना जाएगा, जानें क्या हैं इसके मायने

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नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि क्रिप्टोकरेंसी भारतीय कानून के तहत 'संपत्ति' मानी जाएगी। इसका मतलब है कि इसे खरीदा, बेचा, इस्तेमाल किया और ट्रस्ट में रखा जा सकता है। जस्टिस एन आनंद वेंकटेश की सिंगल-जज बेंच ने कहा, 'इसमें कोई शक नहीं कि क्रिप्टोकरेंसी एक संपत्ति है। यह कोई भौतिक संपत्ति नहीं है और न ही यह कोई मुद्रा है। लेकिन यह एक ऐसी संपत्ति है जिसका आनंद लिया जा सकता है और जिसे अपने पास रखा जा सकता है। इसे ट्रस्ट में भी रखा जा सकता है।'


सुप्रीम कोर्ट और न्यूजीलैंड कोर्ट के फैसले का सहाराअपने फैसले में मद्रास हाईकोर्ट ने 'संपत्ति' शब्द के अर्थ को व्यापक बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का सहारा लिया। जस्टिस वेंकटेश ने सुप्रीम कोर्ट के अहमद जी.एच. आरिफ बनाम सी.डब्ल्यू.टी. और जिलुभाई नानभाई खाचर बनाम गुजरात राज्य के मामलों का हवाला दिया।

उन्होंने कहा, 'कानूनी तौर पर संपत्ति का मतलब है अधिकारों का एक ऐसा समूह जिसे कानून गारंटी देता है और जिसकी रक्षा करता है। इसमें हर तरह के मूल्यवान अधिकार और हित शामिल हैं... ऐसी हर चीज जिसका कोई विनिमय मूल्य हो या जो धन, संपत्ति या हैसियत बनाने में काम आए।' उन्होंने यह भी बताया कि क्रिप्टोकरेंसी आयकर अधिनियम 1961 की धारा 2(47A) के तहत 'वर्चुअल डिजिटल एसेट' (आभासी डिजिटल संपत्ति) की परिभाषा में आती है और इसे सट्टा लेनदेन नहीं माना जाता।

जस्टिस वेंकटेश ने न्यूजीलैंड हाईकोर्ट के साल 2020 के एक फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें Ruscoe vs. Cryptopia Ltd (in Liquidation) मामले में कोर्ट ने माना था कि क्रिप्टोकरेंसी 'अमूर्त संपत्ति का एक प्रकार' है जिसे ट्रस्ट में रखा जा सकता है।

किस मामले में सुनाया फैसलायह फैसला एक ऐसे मामले में आया जहां एक याचिकाकर्ता ने WazirX प्लेटफॉर्म पर अपने 3,532.30 XRP (रिपल) कॉइन की सुरक्षा मांगी थी। ये कॉइन साल 2024 में हुए एक साइबर हमले के बाद फ्रीज कर दिए गए थे। मद्रास हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के इन कॉइन को उसकी संपत्ति के तौर पर मान्यता दी और मध्यस्थता कार्यवाही लंबित रहने तक इसमें किसी भी तरह के हस्तक्षेप पर रोक लगा दी।



कोर्ट ने और क्या कहा?जस्टिस वेंकटेश ने कहा कि भले ही क्रिप्टोकरेंसी 1 और 0 की धाराएं हैं जो ब्लॉकचेन में रहती हैं और जिसे क्रिप्टोकरेंसी जारी करने वाला नियंत्रित करता है। फिर भी यह एक ऐसी संपत्ति है जिसे स्वामित्व में रखा जा सकता है, हस्तांतरित किया जा सकता है और संग्रहीत किया जा सकता है। यानी '1 और 0 की धाराओं का मतलब है कि यह कंप्यूटर कोड के रूप में मौजूद है। लेकिन, इस कोड का एक मूल्य है और इसे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को भेजा जा सकता है, ठीक वैसे ही जैसे हम पैसे भेजते हैं। इसलिए, इसे संपत्ति माना गया है।

मद्रास हाईकोर्ट ने कहा, 'क्रिप्टोकरेंसी अपने आप में कोई मुद्रा नहीं है और न ही हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि एक डिजिटल संपत्ति अपने आप में एक संपत्ति है।' कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत के पास एक ऐसा नियामक ढांचा डिजाइन करने का अवसर है जो इनोवेशन को बढ़ावा दे, साथ ही उपभोक्ताओं की रक्षा करे और वित्तीय स्थिरता बनाए रखे।

क्या हैं इस फैसले के मायने?यह फैसला ऐसे समय में आया है जब दुनिया भर की अदालतें भी क्रिप्टोकरेंसी को संपत्ति के रूप में मान्यता दे रही हैं। यूके हाईकोर्ट ने AA vs. Persons Unknown (2019) मामले में, सिंगापुर हाईकोर्ट ने ByBit Fintech Ltd v. Ho Kai Xin (2023) मामले में, और अमेरिकी संघीय अदालतों ने SEC vs. Ripple Labs (2023) मामले में क्रिप्टो टोकन को संपत्ति या कमोडिटी माना है।

इस फैसले के साथ, मद्रास हाईकोर्ट ने देश में क्रिप्टोकरेंसी की कानूनी स्थिति पर बहुत जरूरी स्पष्टता प्रदान की है। इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, खासकर कराधान, विरासत, दिवालियापन और डिजिटल संपत्तियों से जुड़े संविदात्मक प्रवर्तन के मामलों में।

यह फैसला उन लोगों के लिए एक बड़ी राहत है जो क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करते हैं या उसका इस्तेमाल करते हैं। अब तक भारत में क्रिप्टोकरेंसी को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं था, जिससे कई तरह की अनिश्चितताएं थीं। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि क्रिप्टोकरेंसी को अब संपत्ति माना जाएगा, जिसका मतलब है कि इसके मालिक के अधिकार सुरक्षित रहेंगे।
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