नई दिल्लीः एलन मस्क, सुंदर पिचाई, सत्य नडेला और इंद्रा नूयी इन सभी ने कभी अमेरिका जाकर एच-1बी वीजा पर नौकरी पाकर अपने ‘अमेरिकन ड्रीम’ को साकार किया था। लेकिन आज अगर ये लोग पहली बार अमेरिका जाकर नौकरी करना चाहें तो उन्हें 1 लाख डॉलर यानी करीब 88 लाख रुपये चुकाने पड़ेंगे। यही असर है डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के नए और चौंकाने वाले फैसले का। इस कदम का सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ेगा। सवाल उठता है कि क्या ट्रंप ने एच-1बी वीजा को खत्म कर दिया है? क्या भारतीय टेक इंजीनियरों के लिए ‘अमेरिकन ड्रीम’ अब खत्म हो चुका है? और क्या यह फैसला अमेरिका-भारत के बीच चल रही ट्रेड डील की बातचीत में दबाव बनाने की रणनीति है?
अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिएमार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का कहना है कि एच-1बी वीजा धारकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले इस अमेरिकी फैसले से हजारों कुशल भारतीय पेशेवरों पर सीधा और गंभीर असर पड़ेगा, उनके करियर में अड़चन आएगी। उनके परिवारों की आजीविका प्रभावित होगी। भारत सरकार को इस तरह की जबरदस्ती और अन्यायपूर्ण कार्रवाइयों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहिए। उसे अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए।
भारतीयों पर ट्रंप का निशाना साफबहरहाल, ट्रंप का निशाना साफ है। वे नहीं चाहते कि और अधिक भारतीय एच-1बी वीजा लेकर अमेरिका में काम करें। लगभग 72 फीसदी एच-1बी वीजा हर साल भारतीयों को मिलते हैं। 2024 में करीब 2.83 लाख भारतीयों को यह वीजा मिला। अब अगर किसी कंपनी को भारत से इंजीनियर रखना है तो उसे 1 लाख डॉलर चुकाने होंगे। औसतन एक भारतीय एच-1बी धारक की सैलरी अमेरिका में 65,000 डॉलर सालाना होती है। ऐसे में कंपनियां सोचेंगी कि क्या किसी को रखने की कीमत इतनी ज्यादा चुकाना सही होगा।
भारतीय, अमेरिकियों की नौकरियां छीन रहे?
ट्रंप ने कहा कि यह फैसला अमेरिकी कामकागारों की सुरक्षा के लिए है। ट्रंप के मुताबिक, एच-1बी प्रोग्राम का दुरुपयोग हो रहा है और अमेरिकी कामगारों को नुकसान हो रहा है। ट्रंप और उनके समर्थकों की नजर में भारतीय इंजीनियर 'अमेरिकी नौकरियां छीन रहे हैं।' यही वजह है कि यह मुद्दा अमेरिका की राजनीति में ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ समर्थकों को लुभाने का हथियार बन रहा है।
अमेरिका खुद को नुकसान पहुंचा रहा है? लेकिन सवाल यह भी है कि क्या अमेरिका खुद को नुकसान पहुंचा रहा है? भारतीय इंजीनियर और प्रोफेशनल्स ने अमेरिकी कंपनियों की सफलता में बड़ी भूमिका निभाई है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, एप्पल से लेकर वॉलमार्ट और जेपी मॉर्गन तक, हर बड़ी कंपनी में भारतीयों का योगदान अहम है। अगर आगे भारतीय टैलेंट अमेरिका नहीं जाएगा तो इन कंपनियों के लिए योग्य लोग ढूंढना मुश्किल हो सकता है।
भारत-अमेरिका ट्रेड डीलएक और पहलू भारत-अमेरिका ट्रेड डील का है। भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर बातचीत तेज हो रही है। ऐसे में ठीक इसी समय पर एच-1बी वीजा पर यह बड़ा फैसला कहीं भारत पर दबाव बनाने का तरीका तो नहीं? भारत के लिए इस फैसले में एक छिपा संदेश भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार आत्मनिर्भर भारत की बात करते रहे हैं। अगर बेहतरीन भारतीय दिमाग देश में ही रहकर काम करें तो भारत को विकसित बनाने का सपना और तेजी से साकार हो सकता है। यह भारत के लिए एक अवसर भी बन सकता है कि उसका टैलेंट अमेरिका जाने के बजाय यहीं रहकर देश के लिए काम करे।
अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिएमार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का कहना है कि एच-1बी वीजा धारकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले इस अमेरिकी फैसले से हजारों कुशल भारतीय पेशेवरों पर सीधा और गंभीर असर पड़ेगा, उनके करियर में अड़चन आएगी। उनके परिवारों की आजीविका प्रभावित होगी। भारत सरकार को इस तरह की जबरदस्ती और अन्यायपूर्ण कार्रवाइयों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहिए। उसे अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए।
भारतीयों पर ट्रंप का निशाना साफबहरहाल, ट्रंप का निशाना साफ है। वे नहीं चाहते कि और अधिक भारतीय एच-1बी वीजा लेकर अमेरिका में काम करें। लगभग 72 फीसदी एच-1बी वीजा हर साल भारतीयों को मिलते हैं। 2024 में करीब 2.83 लाख भारतीयों को यह वीजा मिला। अब अगर किसी कंपनी को भारत से इंजीनियर रखना है तो उसे 1 लाख डॉलर चुकाने होंगे। औसतन एक भारतीय एच-1बी धारक की सैलरी अमेरिका में 65,000 डॉलर सालाना होती है। ऐसे में कंपनियां सोचेंगी कि क्या किसी को रखने की कीमत इतनी ज्यादा चुकाना सही होगा।
भारतीय, अमेरिकियों की नौकरियां छीन रहे?
ट्रंप ने कहा कि यह फैसला अमेरिकी कामकागारों की सुरक्षा के लिए है। ट्रंप के मुताबिक, एच-1बी प्रोग्राम का दुरुपयोग हो रहा है और अमेरिकी कामगारों को नुकसान हो रहा है। ट्रंप और उनके समर्थकों की नजर में भारतीय इंजीनियर 'अमेरिकी नौकरियां छीन रहे हैं।' यही वजह है कि यह मुद्दा अमेरिका की राजनीति में ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ समर्थकों को लुभाने का हथियार बन रहा है।
अमेरिका खुद को नुकसान पहुंचा रहा है? लेकिन सवाल यह भी है कि क्या अमेरिका खुद को नुकसान पहुंचा रहा है? भारतीय इंजीनियर और प्रोफेशनल्स ने अमेरिकी कंपनियों की सफलता में बड़ी भूमिका निभाई है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, एप्पल से लेकर वॉलमार्ट और जेपी मॉर्गन तक, हर बड़ी कंपनी में भारतीयों का योगदान अहम है। अगर आगे भारतीय टैलेंट अमेरिका नहीं जाएगा तो इन कंपनियों के लिए योग्य लोग ढूंढना मुश्किल हो सकता है।
भारत-अमेरिका ट्रेड डीलएक और पहलू भारत-अमेरिका ट्रेड डील का है। भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर बातचीत तेज हो रही है। ऐसे में ठीक इसी समय पर एच-1बी वीजा पर यह बड़ा फैसला कहीं भारत पर दबाव बनाने का तरीका तो नहीं? भारत के लिए इस फैसले में एक छिपा संदेश भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार आत्मनिर्भर भारत की बात करते रहे हैं। अगर बेहतरीन भारतीय दिमाग देश में ही रहकर काम करें तो भारत को विकसित बनाने का सपना और तेजी से साकार हो सकता है। यह भारत के लिए एक अवसर भी बन सकता है कि उसका टैलेंट अमेरिका जाने के बजाय यहीं रहकर देश के लिए काम करे।
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