कोलकाता/नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल बीजेपी में अंदरूनी खींचतान दिख रही है। पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी के अंदर खींचतान चरम पर पहुंची थी और कुछ महीनों पहले जब बीजेपी ने यहां अपना नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो उन्होंने कहा कि सबकुछ ठीक कर लिया जाएगा। हालांकि एक बीजेपी सांसद के बयानों से फिर ये चर्चा होने लगी है कि क्या बीजेपी के भीतर सबकुछ ठीक है?
पश्चिम बंगाल के बीजेपी सांसद अभिजीत गांगुली ने पिछले दिनों स्थानीय चैनलों को कई इंटरव्यू दिए और उनके बयानों ने खींचतान की तरफ साफ इशारा किया। गांगुली ने कहा कि केंद्र सरकार ममता बनर्जी और टीएमसी को सत्ता से बेदखल करने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रही है। उन्होंने ये भी कहा कि हिंदी बेल्ट के नेता यहां वोट नहीं दिला सकते और उत्तर भारत के नेता पश्चिम बंगाल के लोगों को और यहां की संस्कृति को समझते ही नहीं है।
ये बयान इसलिए ज्यादा चर्चा में आ रहा है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य की पहचान और अस्मिता बड़ा मुद्दा बना था। टीएमसी ने चुनाव में राज्य की अस्मिता को मुद्दा बनाया और बीजेपी को बाहरी पार्टी करार देते हुए अपना कैंपेन चलाया था। बीजेपी को 2021 के विधानसभा चुनाव से काफी उम्मीदें थी। पार्टी ने अपनी पूरी ताकत यहां झोंकी। तृणमूल कांग्रेस से कई लोग बीजेपी में शामिल हुए लेकिन बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले।
इसके बाद से ही पश्चिम बंगाल बीजेपी के नेताओं का एक दूसरे पर आरोप जड़ने का दौर शुरु हो गया। तृणमूल से आए लोग बीजेपी में वापस जाने लगे। तब बीजेपी ने यहां प्रदेश अध्यक्ष भी बदला। दिलीप घोष की जगह सुकांता मजूमदार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। लेकिन पार्टी नेताओं के बीच चल रही खींचतान कम होने की बजाय तेज ही हुई। दिलीप घोष भी पिछली कई मीटिंग्स में न बुलाने की बात कह चुके हैं।
कुछ हफ्ते पहले ही बीजेपी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के लिए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और त्रिपुरा के पूर्व सीएम और मौजूदा सांसद बिप्लव देव को जिम्मेदारी दी है। कुछ महीने पहले बीजेपी ने राज्यसभा सांसद समीक भट्टाचार्य को पश्चिम बंगाल का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। जिम्मेदारी संभालने के बाद जुलाई में उन्होंने कहा था कि बीजेपी में कोई गुटबाजी नहीं है। कुछ जगह पर कम्युनिकेशन गैप हो गया था। वह सारे ठीक हो जाएंगे। एक महीने के भीतर ही आपको नई बीजेपी देखने को मिलेगी।
पश्चिम बंगाल के बीजेपी सांसद अभिजीत गांगुली ने पिछले दिनों स्थानीय चैनलों को कई इंटरव्यू दिए और उनके बयानों ने खींचतान की तरफ साफ इशारा किया। गांगुली ने कहा कि केंद्र सरकार ममता बनर्जी और टीएमसी को सत्ता से बेदखल करने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रही है। उन्होंने ये भी कहा कि हिंदी बेल्ट के नेता यहां वोट नहीं दिला सकते और उत्तर भारत के नेता पश्चिम बंगाल के लोगों को और यहां की संस्कृति को समझते ही नहीं है।
ये बयान इसलिए ज्यादा चर्चा में आ रहा है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य की पहचान और अस्मिता बड़ा मुद्दा बना था। टीएमसी ने चुनाव में राज्य की अस्मिता को मुद्दा बनाया और बीजेपी को बाहरी पार्टी करार देते हुए अपना कैंपेन चलाया था। बीजेपी को 2021 के विधानसभा चुनाव से काफी उम्मीदें थी। पार्टी ने अपनी पूरी ताकत यहां झोंकी। तृणमूल कांग्रेस से कई लोग बीजेपी में शामिल हुए लेकिन बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले।
इसके बाद से ही पश्चिम बंगाल बीजेपी के नेताओं का एक दूसरे पर आरोप जड़ने का दौर शुरु हो गया। तृणमूल से आए लोग बीजेपी में वापस जाने लगे। तब बीजेपी ने यहां प्रदेश अध्यक्ष भी बदला। दिलीप घोष की जगह सुकांता मजूमदार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। लेकिन पार्टी नेताओं के बीच चल रही खींचतान कम होने की बजाय तेज ही हुई। दिलीप घोष भी पिछली कई मीटिंग्स में न बुलाने की बात कह चुके हैं।
कुछ हफ्ते पहले ही बीजेपी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के लिए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और त्रिपुरा के पूर्व सीएम और मौजूदा सांसद बिप्लव देव को जिम्मेदारी दी है। कुछ महीने पहले बीजेपी ने राज्यसभा सांसद समीक भट्टाचार्य को पश्चिम बंगाल का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। जिम्मेदारी संभालने के बाद जुलाई में उन्होंने कहा था कि बीजेपी में कोई गुटबाजी नहीं है। कुछ जगह पर कम्युनिकेशन गैप हो गया था। वह सारे ठीक हो जाएंगे। एक महीने के भीतर ही आपको नई बीजेपी देखने को मिलेगी।
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