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क्या आने वाली पीढ़ी देख पाएगी इस अनूठे मोर का स्वयंवर वाला डांस? टेंशन दे रही नई रिपोर्ट

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मोर...एक ऐसा पक्षी जिसकी सुंदरता निहारते निहारते हम थकते नहीं। जब यह पक्षी कहीं दिखाई देता है तो हम उसे अपने कैमरे में कैद करने से खुद को रोक नहीं पाते। अगर मैं आपको कहूं कि एक पक्षी जिसे "घास का मोर" कहा जाता है, उसकी संख्या पूरे विश्व में 150-200 ही है, तो क्या आप मानेंगे? हम में से अधिकतर लोगों को शायद इस पक्षी के बारे में पता भी न हो।



पक्षी लेसर फ्लोरिकन यानी घास का मोर (Lesser Floricans) संख्या पूरी दुनिया में तेजी से घट रही है। इस साल अगस्त में प्रजनन के मौसम के दौरान गुजरात और राजस्थान में जीवन 19 नर पक्षियों को देखा गया है। यह संख्या बहुत कम है। यह चिड़िया अपने सुंदर मानसून डांस में लिए जाने जाती हैं। लेकिन समय के साथ घास के इलाकों से जैसे यह गायब ही हो गई हैं।



तुरंत संरक्षण की जरूरतवाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के शोधकर्ता मोहिबउद्दीन ने बताया कि राजस्थान और गुजरात में सर्वे किया गया था, जिसमें इस पक्षी की संख्या 19 ही थी। यह गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजाति के लिए बहुत ही ज्यादा कम है। इसका मतलब यह है कि इस पक्षी को तुरंत संरक्षण की जरूरत है। वरना ऐसा भी समय आ सकता है जहां हमारे आगे की पीढ़ी को यह पक्षी देखने को भी न मिले।



स्वयंवर जैसा नृत्यमोहिबउद्दीन ने बताया कि यह पक्षी बहुत शर्मीले होते हैं, यही कारण है कि यह कम ही देखने को मिलते हैं। लेकिन बारिश के समय नर पक्षी बाहर आकर स्वयंवर जैसा नृत्य करते हैं, जिससे वह मादा पक्षी को अपनी ओर आकर्षित कर सकें। इस दौरान नर पक्षी घास में उछल-उछल कर नाचते हैं, जिससे बारिश के समय इन्हें देखना थोड़ा आसान हो जाता है। इनकी आबादी पिछले 36 सालों में 80% से ज्यादा घट चुकी है। 1982 में इनकी संख्या 4,374 थी, जो कि 2018 में घटकर 800 हो गई थी। 1982 से 2025 तक इनकी संख्या में बेहद गिरावट आई है।



गंभीर रूप से संकटग्रस्तआईयूसीएन ने 2021 में इस प्रजाति की घटती संख्या को देखकर इसे "गंभीर रूप से संकटग्रस्त" यानी critically endangered घोषित कर दिया था। मोहिबउद्दीन आगे बताते हैं कि इनके घोंसलों की जीवित रहने की दर सिर्फ 27% है। यह पक्षी खतरे में उड़ता नहीं है, छिपता है। इससे खेतों में अक्सर किसानों के हाथों मारे जाते हैं। इनके घोंसले, अंडे और पक्षी सभी प्रभावित होते हैं। बिजली की तारें, खेतों की बाड़ और कुत्ते भी इनके लिए खतरा बनते हैं।



संरक्षण प्रजनन केंद्रइन पक्षियों को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने 12 पक्षियों, 9 नर और 3 मादा पर ट्रैकिंग की। इससे पता चला कि अक्टूबर महीने में राजस्थान से करीब 1500 किलोमीटर तक दूरी तय कर के महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे इलाकों में पहुंचे थे। कुछ मामलों में ये एक रात में 200 किलोमीटर तक उड़ान भर चुके थे। इनका जीवित रहना भी बेहद मुश्किल है। इन पक्षियों की आयु दर केवल 53% है। जो कि बेहद कम दर है। इनकी सुरक्षा के लिए अजमेर में संरक्षण प्रजनन केंद्र बनाया गया है, ताकि कहीं और नहीं तो कम से कम इन्हें इस केंद्र पर ही बचाया जा सके। यहां अब तक 10 पक्षी हैं। अब तक लगभग 3000 छात्रों और 2500 स्थानीय लोगों को इस पक्षी के बारे में जागरूक किया गया है।



आबादी बचाने के लिए सुझावमोहिबउद्दीन सुझाव देते हुए कहते हैं कि घास के मैदान खड़े करना उतना भी मुश्किल नहीं क्योंकि 3 महीने में 20 तरह की घास उगाई जा सकती है। किसानों को भी इसके लिए प्रोत्साहित किया जाए। उनसे कहा जाए कि वह घोंसले वाली जगह कुछ समय खाली छोड़ दें, जिसके लिए उन्हें मुआवजा भी दिया जाए। साथ ही, इनका और अंडों का शिकार होने से भी वह बचाएं। जिससे इनकी आबादी बढ़ाई जा सके।

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