रांची, 21 जुलाई (Udaipur Kiran) । उच्च शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा के उपयोग पर दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ रांची विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में सोमवार को हुआ। इसका आयोजन रांची विवि के आइक्यूएसी और आइकेएस ने संयुक्तए रूप से किया।
यूजीसी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को विकसित कर उच्चर शिक्षा में इसे शामिल करने का लक्ष्यश रखा है। इसी कड़ी में रांची विश्वविद्यालय में यह कार्यशाला आयोजित की गयी है। इसका उद्देश्य आधुनिक शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा के दर्शन, क्षेत्र और प्रासंगिकता से परिचित कराना है।
कार्यशाला में मुख्य अतिथि और वक्ता के रूप में डॉ अनुराग देशपांडे, यूजीसी आइकेएस डिविजन, पुणे युनिवर्सिटी के प्राध्यापक डॉ भरतदास यूजीसी ट्रेनर और कथा प्रथा के फाउंडर श्री श्री विश्वविद्यालय कटक ओडिशा, डॉ विनायक रजत भट्ट, आइकेएस के चाणक्याा युनिवर्सिटी बेंगलुरू, डॉ कुशाग्र राजेंद्र यूजीसी मास्टर ट्रेनर शामिल हैं।
कृषि उपज को करना होगा संरक्षित
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के डीएसडबल्यू डॉ सुदेश कुमार साहु ने कुलपति का स्वाेगत किया और सभी मुख्य अतिथियों को भी सम्मानित किया। डॉ स्मृति सिंह ने कार्यशाला की उपयोगीता पर प्रकाश डाला।
वहीं कुलपति डॉ डीके सिंह ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा का उपयोग उच्च शिक्षा में एक बड़ा बदलाव लायेगा। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने भारत को हर तरह के संसाधनों से परिपूर्ण बनाया है। इस कारण से हम भारतीय लापरवाह भी हुये हैं। इन संसाधनों का महत्व हमें इजरायल और चीन जैसे देशों को देख कर समझना चाहिये जहां भारत से बहुत कम संसाधन हैं और वे इसे संरक्षित करने में दिन-रात लगे हुये हैं। हमें इन देशों से सबक लेना चाहिए। उन्होंने विस्तार से देश की जैव विविधता के बारे में बताते हुये स्लाइड शो के माध्यम से देश की कृषि उपज और उन्हें संरक्षित करने की बात कही।
कुलपति ने कहा कि किसी भी क्षेत्र के वैज्ञानिक और शिक्षक भारतीय ज्ञान परंपरा के वाहक हो सकते हैं और उच्च शिक्षा के अध्यापन में इसका उपयोग किया जा सकता है।
भारत के समृद्ध ज्ञान की हमें नहीं है जानकारी
दिल्ली से आये डॉ अनुराग देशपांडेय ने कहा कि भारत में इतना समृद्ध ज्ञान है, पर हम भारतीयों को ही इसकी जानकारी नहीं है, जबकि विदेशों से लोग हम भारतीयों के संस्कृति और रहन-सहन को देखने आते हैं। दरअसल हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में हमें कभी भी अपने भारतीय ज्ञान परंपरा को जानने सीखने का अवसर ही नहीं मिलता है। अब यह खुशी की बात है कि यूजीसी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में समाहित किया है।
बेंगलुरू से आये डॉ विनायक रजत भट्ट ने कहा कि जो संस्कृत भाषा जानता है वह वेद जान लेगा यह भ्रम है। अपने वक्तव्य में उन्होंने वेदों के अध्ययन में आने वाली कठिनाई की बारीकियों को विस्तार से बताया। यूजीसी के मास्टेर ट्रेनर डॉ कुशाग्र राजेन्द्रर और डॉ भरतदास यूजीसी ट्रेनर और कथा प्रथा के फाउंडर ने भी अपने भारतीय ज्ञान परंपरा के उच्ची शिक्षा में उपयोग पर अपने विचार रखे।
कार्यक्रम का संचालन भारतीय ज्ञान परंपरा की यूजीसी की राष्ट्रीाय मास्टीर ट्रेनर तथा इस कार्यशाला की ऑर्गेजाइजिंग सेक्रेटरी डॉ स्मृति सिंह ने किया।
इस अवसर पर रांची विश्वसविद्यालय के कुलसचिव, प्रोक्टलर, डीएसडबल्यू सहित सभी वरीय पदाधिकारी, विभिन्न्ध विभागों के हेड, डीन, प्राध्यापक, रीसर्च स्कॉनलर सहित कई छात्र उपस्थित रहे।
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(Udaipur Kiran) / Vinod Pathak
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